Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019दुनिया के 91 गरीब देशों को आखिर अकेले कैसे कोरोना वैक्सीन दे भारत?

दुनिया के 91 गरीब देशों को आखिर अकेले कैसे कोरोना वैक्सीन दे भारत?

एस्ट्रोजेनेका-सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन के कितने हिस्से पर भारत का कानूनी अधिकार है?

क्विंट हिंदी
भारत
Updated:
एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर वैक्सीन बना रहा है सीरम इंस्टीट्यूट
i
एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर वैक्सीन बना रहा है सीरम इंस्टीट्यूट
(फोटो: iStock)

advertisement

भारत में सीरम इंस्टीट्यूट एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन बना रहा है. लेकिन यह वैक्सीन अमीर देशों के लिए नहीं, इन वैक्सीन को दुनिया के सबसे गरीब 92 देशों में पहुंचना चाहिए था. सीरम इंस्टीट्यूट और ब्रिटेन की एस्ट्राजेनेका के बीच यही करार हुआ था.

लेकिन द गार्डियन अखबार में छपा अचल प्रभला और लीना मेंघाने का एक लेख बताता है कि निकट भविष्य में इन गरीब देशों की उम्मीदों को झटका लगा सकता है.

बात ऐसी है कि विदेशी शोध से बनी इस वैक्सीन की सभी खुराकों पर भारत अकेले दावा नहीं कर सकता. वैक्सीन से जुड़े शोध में भारत सरकार का कोई बहुत बड़ा निवेश भी नहीं है. लेकिन हाल में भारत पर "वैक्सीन राष्ट्रवाद" के आरोप लग रहे हैं. तो क्या यहां भारत दूसरे देशों के लिए अपनी जमीन पर बनाई जाने वाली वैक्सीन पर अधिकार जमा रहा है?

एस्ट्राजेनेका और सीरम के बीच करार

एक साल पहले ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट ने कहा था कि वे अपनी वैक्सीन का खुला उत्पादन करवाना चाहते हैं, मतलब कोई भी निर्माता, कहीं भी इस वैक्सीन का निर्माण कर सकेगा. लेकिन गेट्स फाउंडेशन की सलाह पर ऑक्सफोर्ड ने अपना रास्ता बदलते हुए एस्ट्राजेनेका के साथ करार कर लिया, जो ब्रिटेन स्थित एक मल्टीनेशनल फार्मास्यूटिकल समूह है.

इसी एस्ट्रोजेनेका ने बाद में पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट के साथ एक समझौता किया. इस समझौते के तहत सीरम इंस्टीट्यूट को "गावी" से मदद पाने वाले 92 देशों के लिए वैक्सीन तैयार करनी थी. गावी एक गठबंधन है, जिसको गेट्स फाउंडेशन और अमीर देशों का समर्थन प्राप्त है. यही संगठन गरीब देशों के लिए वैक्सीन उपलब्ध कराने का काम कर रहा है.

आज की स्थिति यह है कि एस्ट्रोजेनेका की जितनी भी वैक्सीन बनाई जा रही है, उसका ज्यादातर हिस्सा सीरम इंस्टीट्यूट ही बना रहा है. कुछ हिस्सा साउथ कोरिया की एस के बॉयोसाइंस में भी बन रहा है.

SII के सीईओ अदार पूनावाला (फोटो: ट्विटर)

गावी में भारत भी शामिल था. आबादी के लिहाज से हमें सीरम द्वारा बनाई जाने वाली कुल वैक्सीन का 35 फीसदी हिस्सा मिलना था. बाकी हिस्सा निर्यात किया जा सकता था. फिर भी 50 फीसदी घरेलू उपयोग पर एक मौखिक सहमति बन गई. बाकी 50 फीसदी को दूसरे गरीब देशों को निर्यात किया जाना था.

गरीब देशों के पास भारत के अलावा नहीं है दूसरा विकल्प

बता दें इन गरीब देशों के पास कहीं और से अपनी आपूर्ति पूरी करने का विकल्प उपलब्ध नहीं है. क्योंकि पश्चिमी देशों की फार्मास्यूटिकल कंपनियां बमुश्किल ही अपनी मांग की पूर्ति कर पा रही हैं. ऐसे में निर्यात के बारे में तो सोचा भी नहीं जा सकता.

इस बीच कुछ देश चीन और रूसी वैक्सीन की तरफ भी मुड़े. लेकिन इस दौरान गावी की कोवैक्स फेसिलिटी (जो गरीब देशों के लिए वैक्सीन इकट्ठा करता है) ने सिर्फ पश्चिमी देशों और भारत के साथ ही वैक्सीन आपूर्ति के करार किए.

मतलब पश्चिमी देश की कंपनियां आपूर्ति कर नहीं पा रही हैं, चीन और रूस के साथ समझौते मौजूद नहीं हैं. ऐसे में पूरी जिम्मेदारी भारत पर आ जाती है. ऊपर से भारत दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता भी रहा है.

गरीब देशों की जरूरत और भारत की घरेलू मांग में टकराव

पिछले महीने से भारत में कोरोना की दूसरी लहर कहर ढा रही है. मजबूर होकर भारत सरकार को अपने घरेलू टीकाकरण अभियान का विस्तार कर 34.5 करोड़ लोगों को इसमें शामिल करना पड़ा.

भारत ने वैक्सीन के सभी निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया. भारत में सीरम के अलावा भारत बॉयोटेक की कोवैक्सिन को भी मंजूरी मिली है. लेकिन यह बहुत कम मात्रा में उत्पादित हो रही है. जैसे-जैसे नई वैक्सीन आएंगी, सीरम इंस्टीट्यूट की वैक्सीन पर भार कम होता जाएगा.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

लेकिन मौजूदा दौर में सीरम इंस्टीट्यूट पर 91 देशों को मदद पहुंचाने या भारत की घरेलू जरूरतों की पूर्ति करने में से एक के चुनाव करने की चुनौती है.

अब तक सीरम इंस्टीट्यूट 2.8 करोड़ डोज तैयार कर चुका है, जिनमें से एक करोड़ डोज भारत के खाते में आईं. दूसरी सबसे बड़ी शिपमेंट नाइजीरिया गई, जहां 40 लाख डोज पहुंचाई गईं. जिससे वहां की एक फीसदी आबादी को कवर किया जा सकता है.

लेकिन अब जब भारत सरकार ने घरेलू जरूरत के लिए 10 करोड़ डोज तैयार करने का आदेश दिया है, तो इससे नाइजीरिया जैसे देशों को सीरम इंस्टीट्यूट की तरफ से वैक्सीन आपूर्ति जुलाई तक के लिए टल जाएगी. इतना ही नहीं, निकट भविष्य में भारत को करीब 50 करोड़ वैक्सीन खुराकों की जरूरत होगी, ऐसे में दूसरे गरीब देशों को और ज्यादा वक्त तक इंतजार करना पड़ सकता है.

क्या होना था समाधान

गार्डियन के लेख में इस घालमेल का समाधान भी बताया गया है. सीरम इंस्टीट्यूट के समझौते में एक करार था, जिसके जरिए गावी मंच के देशों से अलग, अमीर देशों को भी कुछ परिस्थितियों में वैक्सीन सप्लाई की जा सकती थी. इसी के तहत ब्रिटेन जैसे अमीर देशों को वैक्सीन सप्लाई की गई, जबकि वहां की आपूर्ति दूसरे तरीकों से भी हो सकती थी. ऐसे में अमीर देशों को आपूर्ति से बचा जाना चाहिए था.

दूसरा उपाय बताया गया है कि एस्ट्राजेनेका और कोवैक्स को कई देशों के कई सारे निर्माताओं को वैक्सीन बनाने के अधिकार देने चाहिए थे. सीरम इंस्टीट्यूट को इतनी बड़ी जिम्मेदारी अकेले देकर सिर्फ भारत सरकार को ही गरीब देशों के भले के लिए जिम्मेदार नहीं बनाया जाना चाहिए था.

पढ़ें ये भी: कानूनी मसले निपटाने के लिए भारतीय कंपनियों की पसंद सिंगापुर क्यों?

सोर्स: द गार्डियन

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 03 Apr 2021,03:07 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT