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कानूनी मसले निपटाने के लिए भारतीय कंपनियों की पसंद सिंगापुर क्यों?

रिलायंस-फ्यूचर डील में अमेजन भी सिंगापुर आर्बिट्रेशन सेंटर गया था

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कानूनी विवाद निपटाने के लिए भारत में कारोबार करने वाली कंपनियों की पहली पसंद बन गया है सिंगापुर. अमेजन, वोडाफोन, केयर्न एनर्जी, ये सब सिंगापुर में ही अपने मामले निपटा रहे हैं. खास बात ये है कि बहुत सारी भारत की ही हैं, जो वहां विवाद निपटाने के लिए जा रही हैं. सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (SIAC) ने 2020 में रिकॉर्ड 1080 केस फाइलिंग देखी. इनमें सबसे ज्यादा केस भारत से फाइल किए गए थे. सवाल ये है कि आखिर क्यों सिंगापुर विवाद निपटारे के लिए पहली पसंद बन गया है.

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हॉन्गकॉन्ग में चीन के बढ़ते प्रभाव की वजह से कंपनियां अब अपने कॉन्ट्रैक्ट्स में सिंगापुर को आर्बिट्रेशन की जगह दे रही हैं. हाल-फिलहाल में भारत में रिलायंस इंडस्ट्रीज और फ्यूचर ग्रुप के बीच हुई डील पर अमेजन ने भी सिंगापुर आर्बिट्रेशन सेंटर का ही दरवाजा खटखटाया था.

क्यों सिंगापुर बना केंद्र?

सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (SIAC) में 2019 में 479 और 2018 में 402 नए केस फाइल हुए थे. लेकिन पिछले साल ये आंकड़ा डबल से भी ज्यादा हो गया. हॉन्गकॉन्ग, जापान और स्विट्जरलैंड समेत 60 अधिकारक्षेत्रों की पार्टियों ने विवादों में 850 करोड़ डॉलर का आर्बिट्रेशन किया.

ओवरसीज कस्टमर के तौर पर भारत, अमेरिका और चीन ने सबसे ज्यादा केस फाइल किए.  

SIAC की सीईओ लिम सेओक हुई ने अपने बयान में कहा. "हम 2020 में सावधानीपूर्ण योजना और परिश्रम से नए मील के पत्थर छुए."

सिंगापुर आर्बिट्रेशन के मामले में बड़ा नाम बनकर क्यों उभरा है, इसका जवाब देश में स्थित लॉ फर्म Rajah & Tann के वकील जोनाथन युएन ने दिया.

“सिंगापुर अमेरिका और चीन के बीच बैलेंस करता है. दोनों के साथ दोस्ताना संबंध रखते हुए वो दोनों पक्षों के लिए निष्पक्ष देश के तौर पर देखा जाता है. लोग न्यू यॉर्क या चीन नहीं जाना चाहते हैं लेकिन दोनों पक्षों को सिंगापुर जाने में कोई दिक्कत नहीं.” 
जोनाथन युएन
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भारत के मामले इतने ज्यादा क्यों?

भारत सिर्फ इसी साल नहीं, बल्कि पिछले साल भी सिंगापुर आर्बिट्रेशन सेंटर में केस फाइल करने के मामले में सबसे आगे रहा था. भारत में बिजनेस कर रहीं ज्यादातर विदेशी कंपनियां भारत से बाहर ही विवाद सुलझाने की कोशिश करती हैं. रिलायंस-फ्यूचर डील में अमेजन का सिंगापुर जाना इसी सिलसिले की एक कड़ी है.

द इकनॉमिस्ट की रिपोर्ट कहती है कि भारत संबंधित आर्बिट्रेशन के मामले पेरिस स्थित इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स, लंदन और हेग में भी बढ़े थे. लेकिन सिंगापुर इस मामले में पसंदीदा जगह बनी रही.

2017 में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने भारत सरकार के खिलाफ 160 करोड़ डॉलर के विवाद के लिए सिंगापुर को ही चुना था. सरकार ने कंपनी पर सरकारी फील्ड से गलत तरीके से गैस निकालने का आरोप लगाया था. रिलायंस की जीत हुई थी और उसे 80 लाख डॉलर मुआवजा मिला था.  
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ज्यादातर कंपनियां विदेश में आर्बिट्रेशन का केस स्मूथ प्रोसेस के लिए ही फाइल करती हैं. साथ ही विदेशी कंपनियां आर्बिट्रेशन सेंटर की निष्पक्षता को भी ध्यान में रखती हैं. भारत में कोर्ट केस का फैसला आने में लगने वाला समय और इस पूरी प्रक्रिया की जटिलता विदेश में आर्बिट्रेशन को सुलभ विकल्प बनाती हैं.

पिछले दिनों आर्बिट्रेशन के कुछ मामलों में भारत सरकार ने चैलेंज करने का फैसला किया है. लेकिन आर्बिट्रेशन को खारिज करने का मतलब निकाला जा सकता है कि दुनिया में ये संदेश देना कि भारत निवेश के लिए अच्छी जगह नहीं है. आर्बिट्रेशन के फैसले के खिलाफ अपील करना एक महंगी प्रक्रिया है और इससे निवेशकों के बीच भी खराब छवि बनने का डर है. पीएम मोदी चीन से निवेशकों को लुभाकर भारत लाना चाहते हैं, लेकिन निवेश के साथ-साथ विवाद के मामले में आर्बिट्रेशन की संभावना भी बढ़ती है. ऐसे में हो सकता है आने वाले समय में सिंगापुर आर्बिट्रेशन सेंटर में भारत से मामलों का आंकड़ा बढ़ता दिख जाए.

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