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अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के आधार स्तंभों में से एक थे. आज अटल जी की पुण्यतिथी है. उन्हाेंने बीजेपी में प्राण फूंकने का काम किया था. कांग्रेस के तिलिस्म को ताेड़ने में उनकी अहम भूमिका थी, वे पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने थे, जिन्होंने पांच साल तक सरकार चलाई थी. लेकिन इन सब उपलब्धियों के बावजूद उन्हाेंने कभी किसी पर व्यक्तिगत हमले नहीं किए, लोकतंत्र को धूमिल करने का काम नहीं है. थोपने की राजनीति नहीं की. वहीं आज बीजेपी भले ही अपने सुनहरे काल में चल रही हो लेकिन "अटल विचार" कहीं न कहीं खोती जा रही है. आइए जानते हैं कैसे आज की बीजेपी "अटल विचार" से उलट चल रही है...
70 के दशक के अंत में जब साउथ ब्लॉक से भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का चित्र हटा दिया गया था तब तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उसे फिर से लगवाया था. इस बारे में अटल जी ने खुद संसद में बताया था, उन्होंने कहा था कि ‘‘मैं विदेश मंत्री बना, मैंने देखा कि वह चित्र गैलरी से गायब है. तब मैंने पूछा कि वह (चित्र) कहां गया? मुझे कोई जवाब नहीं मिला. उस चित्र को फिर से वहां लगा दिया गया.’’ यह चित्र वाजपेयी के अधिकारियों ने ये सोचकर हटवा दिया था कि शायद इसे देखकर वाजपेयी खुश नहीं होंगे. वाजपेयी ने यह भी कहा था कि ’’कांग्रेस के मित्र हो सकता है इस पर विश्वास न करें, लेकिन मैंने कहा था कि नेहरू का एक चित्र साउथ ब्लॉक में लटका है. मैं जब भी वहां से जाउंगा उसे देखूंगा.’’
राजीव गांधी के हत्या के बाद 1991 की बात है जब अटल बिहारी वाजपेयी ने एक इंटरव्यू के दौरान यह कहकर सबको चौंका दिया था कि, "अगर आज मैं जिंदा हूं, तो राजीव गांधी की वजह से." दरअसल राजीव गांधी 1984 से 1989 के दौरान जब देश के प्रधानमंत्री थे, तब वाजपेयी किडनी की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे. ऐसे में उन्हें अमेरिका जाने की सलाह दी गई, लेकिन तब वाजपेयी की माली हालत इतनी मजबूत नहीं थी कि वे इतना बड़ा खर्च वहन कर पाते.
लेकिन वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी तो कांग्रेस को और उनके नेताओं को केवल कोसने का काम करते हैं. उनका पूरा साथ पार्टी के प्रवक्ता और कार्यकर्ता भी देते हैं. ऐसे में आज की बेजेपी को अटल जी से शालीनता और दूसरों की इज्जत करने का पाठ सीखना होगा.
आज की बीजेपी सबका साथ-सबका विकास के नारे पर जोर देती है. लेकिन अगर सही मायने में देखा जाए तो अटल बिहारी वाजपेयी से इनको सबका साथ सीखना चाहिए. फिर चाहे किसानों का साथ हो या मुसलमानों का...
1980 के भाषण में वाजपेयी ने तत्कालीन सरकार द्वारा की फसल की कम कीमतों को तय करना और उसे कम दाम पर बेचने पर मजबूर करने की आलोचना की थी. उन्होंने कहा था कि चूंकि छोटे पैमाने पर किसानों को अपनी फसल को उचित भंडारण नहीं मिलता है. इस कारण उन्हें एक चौथाई मूल्य पर बेचना पड़ता था और इसी वजह से किसान आंदोलन कर रहे हैं. मूल भाषण इस प्रकार था.
आज आंदोलनकारियों को आंदोलनजीवी शब्द से नवाजा जा रहा है. जो लोग बीजेपी की बात नहीं मांगते उनसे देशभक्ति का सबूत मांगा जाता है.
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी कविता क्षमा याचना में लिखा है कि
क्षमा करो बापू! तुम हमको,
बचन भंग के हम अपराधी,
राजघाट को किया अपावन,
मंज़िल भूले, यात्रा आधी।
जयप्रकाश जी! रखो भरोसा,
टूटे सपनों को जोड़ेंगे।
चिताभस्म की चिंगारी से,
अन्धकार के गढ़ तोड़ेंगे।
ये पंक्तियां बापू के सम्मान में लिखी गई हैं. लेकिन आज की बेजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर बापू के हत्यारे नाथूराम गोडसे का समर्थन करती दिखती हैं. ऐसे में पार्टी उनकी आलोचना तो करती है लेकिन उन पर कोई एक्शन नहीं लिया जाता.
2014 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस समय बीजेपी के जिन 482 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था, उनमें से सिर्फ 7 मुस्लिम थे इनमें से कोई भी नहीं जीता. वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने कुल 6 मुस्लिम उम्मीदवार ही चुनावी मैदान में उतारे थे. भाजपा के इन मस्लिम उम्मीदवारों में से एक भी चुनाव न जीत सका.
आज की बेजेपी सरकार पर सत्ता का दुरुपयोग करने, संवैधानिक निकायों की शक्तियों को कम करने जैसे आरोप लगाए जा रहे हैं. जो किसी भी मजबूत लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.
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