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दलितों के लिए हक के लिए और सामाजिक कुरीतियों को दूर करने की लड़ाई लड़ने वाले बाबा साहब अंबेडकर की आज 131वीं जयंती है. बाबा साहब अंबेडकर ने जिस भारत का सपना देखा था, वो शायद अभी भी अपनी मंजिल से काफी दूर है. आज भी समाज में दलितों के साथ दुर्व्यवहार और उनके खिलाफ अपराध की घटनाएं आए दिन देखने को मिलती हैं. दलितों की आवाज को सभी तक पहुंचाने के लिए कई प्रकाशन लगातार काम कर रहे हैं, जिनके बारे में मुख्य धारा में बातचीत कम ही होती है. बाबा साहेब अंबेडकर की 131वीं जयंती पर इनमें क्या लिखा गया, देखिए.
ऑस्कर तक अपना नाम कर चुके खबर लहरिया ने अपने एक आर्टिकल में पूछा, "अंबेडकर जयंती: बाबा साहब की मूर्ति खंडित कर क्या हासिल कर रहे लोग?"
ये हेडलाइन हाल के दिनों में सामने आई उन तमाम घटनाओं से संबंधित है, जहां अंबेडकर की मूर्ति तोड़ी गई.
मार्च में ही मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में कुछ लोगों ने अंबेडकर की प्रतिमा को तोड़ दिया था. पिछले कुछ सालों में इस तरह की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं.
दलितों के लिए काम करने वाली वेबसाइट द मूकनायक ने एक ओपिनियन आर्टिकल में लिखा, "डॉ. अंबेडकर को मानने वाले पहले किताब उठाएंगे, न कि फूल और माला."
'द मूकनायक' ने अपने आर्टिकल में लिखा, "जिस प्रकार गांधी ने देश में आंदोलन करने से पहले देश का दौरा किया और अपने आप को और अपने समर्थकों को लंबी लड़ाई के लिए तैयार किया, उसी प्रकार अंबेडकर ने देश में आंदोलन करने से पहले खुद को शिक्षित किया और अपने समर्थकों को भी शिक्षित किया. अगर आप आज भी डॉक्टर अंबेडकर को फॉलो करना चाहें तो आप सबसे पहले किताबें उठाएंगे. ना कि फूल और माला."
दलितों की परेशानियों को दिखाने वाली एक अन्य वेबसाइट, दलित टाइम्स ने लिखा, "इस अंबेडकर जयंती, सिर्फ बाबा साहब को याद मत कीजिए, उनके जैसा बनिए."
आर्टिकल में लिखा है, "जब हम बाबासाहेब की पूजा करते हैं, तो हम उनका और उनकी विरासत का नुकसान करते हैं. ऐसा क्यों है? डॉ अंबेडकर निश्चित रूप से भक्ति, सम्मान और प्रशंसा के हकदार हैं. लेकिन किसी को देवता मानने का मतलब है कि आप उनकी मानवता को लूट रहे हैं और आप दूसरों को, उनके नक्शेकदम पर चलने, न्याय के लिए लड़ने की उनकी विरासत को आगे बढ़ाने से रोक रहे हैं. इस अंबेडकर जयंती, हमें सिर्फ बाबा साहब की पूजा नहीं करनी चाहिए, हमें बाबा साहब बनना चाहिए. अब भारत में ऐसा लगता है कि हर व्यक्ति अपना राजा बनना चाहता है. राजनीति में बहुत अहंकार है, स्वार्थ है, बहुत कुछ अच्छा तभी करना है, जब कैमरे चल रहे हों."
अन्य वेबसाइट दलित दस्तक ने अपने एडिटोरियल की हेडलाइन दी, "बढ़ती ही जा रही है डॉ. अंबेडकर की स्वीकृति." इस आर्टिकल में पब्लिकेशन ने लिखा है कि कैसे आर्थिक और सामाजिक विषमता मोदी राज में बढ़ गई.
इसमें लिखा है, "मोदी- राज में जो आर्थिक विषमता रॉकेट की गति से बढ़नी शुरू हुई, उसका दुखद परिणाम 22 जनवरी, 2018 को प्रकाशित ऑक्सफाम की रिपोर्ट में सामने आया. उस रिपोर्ट से पता चला है कि टॉप की 1% आबादी अर्थात 1 करोड़ 3o लाख लोगों का 73 प्रतिशत सृजित धन-दौलत पर कब्जा हो गया है. इसमें मोदी सरकार के विशेष योगदान का पता इसी बात से चलता है कि सन 2000 में 1% लोगों के पास 37 प्रतिशत दौलत थी, जो बढ़कर 2016 में 58.5 प्रतिशत तक पहुंच गयी. अर्थात 16 सालों में टॉप के एक प्रतिशत वालों की दौलत में 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. किन्तु उनकी 2016 की 58.5 प्रतिशत दौलत सिर्फ एक साल के अन्तराल में 73% हो गयी अर्थात सिर्फ एक साल में 15% का इजाफा हो गया. टॉप के इन लोगों में 99 प्रतिशत जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के लोग होंगे, यह बात दावे के साथ कही जा सकती है."
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