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अगर किसी को डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr BR Ambedkar) के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटनाओं को बताना होगा तो 1927 में महाड सत्याग्रह, 1940 के दशक में भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने में अंबेडकर की भूमिका और 1956 में उनका बौद्ध धर्म में परिवर्तन जैसी घटना शामिल होंगी. पहली दो घटनाओं ने अंबेडकर को अपने काम में लगाए रखा था, क्योंकि वो वास्तविक समय में हो रही थीं, जबकि धर्म बदलने के मामले में उन्होंने विचार करने में दशक लगा दिए थे.
अंबेडकर ने 1930 के दशक में हिंदू धर्म छोड़ दिया था. उन्होंने कई मौकों पर सार्वजनिक रूप से धर्म छोड़ने के अपने इरादे की घोषणा की थी. उन्होंने 1935 में मुंबई में महारों की एक बैठक में अपना प्रसिद्ध भाषण 'मोक्ष का मार्ग' दिया था. ये वही लोग थे जिनके बीच उन्होंने जन्म लिया था. इस सम्मेलन के दौरान उन्होंने विस्तार से समझाया था कि उन्हें और उनकी जाति के लोगों को दूसरे धर्म में क्यों परिवर्तित होना चाहिए.
भले ही अंबेडकर ने अपने वास्तविक कंवर्जन (धर्मांतरण) से दो दशक पहले ये भाषण दिया हो, लेकिन इस भाषण की सामग्री उन 'धर्मांतरण विरोधी कानूनों' का विश्लेषण करने में उपयोगी है जो हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) शासित कुछ राज्यों द्वारा लाए गए हैं.
आखिर क्यों एक व्यक्ति जो जिस धर्म में पैदा हुआ है वो दूसरे धर्म में परिवर्तित होना चाहता है? इसके बारे में 1935 के अपने भाषण में अंबेडकर ने दो कारणों का प्रस्ताव दिया था :
(i) भौतिक या वित्तीय लाभ के लिए (ii) आध्यात्मिक कल्याण के लिए.
ये दोनों व्याख्याएं अंबेडकर के लिए समान रूप से मान्य थीं. उन्होंने कहा था कि "कुछ लोग भौतिक या वित्तीय लाभ के लिए धर्मांतरण के विचार का मजाक उड़ाते हैं और हंसते हैं. मुझे ऐसे लोगों को बेवकूफ कहने में कोई गुरेज नहीं है."
अंबेडकर ने फ्रांसीसी क्रांति के आदर्श वाक्य स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व (Liberty, Equality, Fraternity) को अपनी राजनीतिक विचारधारा में शामिल किया था. अपने सबसे महत्वपूर्ण काम जाति का विनाश (Annihilation of Caste) में इसका कई बार उल्लेख किया था. स्वायत्तता की धारणा स्वतंत्रता के सिद्धांत से अटूट रूप से जुड़ी हुई है और इसे अंबेडकर ने काफी भी दिया था. ये सब दिखाता है कि धर्मांतरण या कंवर्जेशन के मुद्दे पर उनका दृष्टिकोण कैसा था.
1930 के दशक में जब अंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ दिया, तब उनका बौद्ध धर्म में परिवर्तन एक पूर्व निर्धारित निष्कर्ष नहीं था. उन्होंने इस्लाम और ईसाई धर्म पर विचार किया, साथ ही साथ सिख धर्म में स्विच करने की संभावना भी तलाशी थी. हालांकि, उन्होंने अंततः महसूस किया कि बौद्ध धर्म उनके सिद्धांतों और दर्शन के साथ अच्छी तरह फिट बैठता है और बुद्ध द्वारा स्थापित ये प्राचीन धर्म उनके लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए सबसे प्रभावी माध्यम होगा.
पूरी प्रक्रिया के दौरान उन्होंने कभी भी अपने समर्थकों या अनुयायियों को हल्के में नहीं लिया. उन्होंने उनके साथ कई सम्मेलन और बैठकें कीं, कई सार्वजनिक जगहों/मंचो पर अपने विचारों और तर्कों का आदान-प्रदान किया. शुरू से लेकर अंत तक वो पूरी प्रक्रिया में बेहद पारदर्शी थे.
अपने अनुयायियों को उन्होंने कभी भी आत्म-जागरूक या स्वायत्त व्यक्तियों के अलावा कुछ नहीं माना. अनुसरण करने वालों को उन्होंने ठोस तर्क से राजी किया था न उन्हें अनुसरण करने के लिए मजबूर नहीं किया गया था.
'मोक्ष का मार्ग क्या है' भाषण के अंत में वे कहते हैं :
जब अंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में बौद्ध धर्म की दीक्षा स्वीकार की तो लाखों लोगों ने उनका अनुसरण किया, तब अंबेडकर के दो दशकों तक समझाने-बुझाने का फल मिला था.
भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 में कहा गया है कि एक व्यक्ति को राज्य के हस्तक्षेप के बिना अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म में परिवर्तित होने की स्वतंत्रता है. हालांकि, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों द्वारा हाल ही में लाए गए 'धर्मांतरण विरोधी कानून' इस अनुच्छेद या आर्टिकल का उल्लंघन कर रहे हैं साथ ही अंबेडकर के सबसे प्रिय सिद्धांत 'स्वतंत्रता' के खिलाफ भी हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार के अधिनियम के अनुसार, जो कोई भी किसी अन्य धर्म में परिवर्तित होने का इरादा रखता है, उसे 60 दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट को एक हलफनामा प्रस्तुत करना होगा, जिसमें उनकी मंशा यानी अपने धर्मांतरण के इरादे की घोषणा करनी होगी. वहीं जो व्यक्ति धर्मांतरण समारोह या कार्यक्रम का आयोजन करेगा उसे भी 30 दिन पहले एक हलफनामा जमा करना होगा. इसके अलावा, पुलिस के माध्यम से मजिस्ट्रेट धर्मांतरण के बारे में पूछताछ करेगा कि कहीं ये कानून का उल्लंघन तो नहीं है.
एक्ट में ये भी कहा गया है कि किसी व्यक्ति को 'आकर्षण' जिसे उपहार, आसान पैसा, नकद या वस्तु में भौतिक लाभ, रोजगार, एक बेहतर जीवन शैली, आदि के रूप में परिभाषित किया गया है, के माध्यम से धर्मांतरण के लिए लुभाया नहीं जाएगा. इस कानून के अनुसार विवाह के समय भी धर्म परिवर्तन प्रतिबंधित है.
क्या सरकार को ये तय करना चाहिए कि किस वजह से कोई व्यक्ति दूसरे धर्म में जाना चाहता है? इसके साथ ही आध्यात्मिक कल्याण, जिसे किसी भी तरह से परिभाषित करना और मापना मुश्किल है, क्या इसको वित्तीय या भौतिक लाभ की तुलना में एक उच्च आदर्श माना जाना चाहिए?
धर्म बदलने वाला व्यक्ति धर्मांतरण के मकसद और धार्मिक परिवर्तन से वो क्या चाहते हैं इसके लिए फैसला करने वाला वो खुद सबसे अच्छा जज है. नतीजतन, अगर उन्हें लगता है कि उन्हें किसी भी तरह से बरगलाया गया है या धर्मांतरण के लिए मजबूर किया गया है, तो ऐसे में इन्हें ही शिकायत दर्ज करने के लिए अधिकृत एकमात्र 'पीड़ित पक्ष' होना चाहिए.
अंबेडकर, जिनका स्वयं का धर्म परिवर्तन साथी दलितों की मुक्ति के उद्देश्य से एक सामाजिक कार्य था. किसी व्यक्ति के धर्म परिवर्तन के निर्णय के पीछे की सभी प्रेरणाओं से सहमत हो सकता है या नहीं भी हो सकता, लेकिन वो निश्चित रूप से उनमें से हर एक के साथ खड़े होंगे. अंबेडकर द्वारा प्रस्तुत की गई स्वतंत्रता की धारणा में किसी भी व्यक्ति को कोई भी धर्म चुनने और उसका पालन करने की स्वतंत्रता शामिल है.
जब अंबेडकर ने यह घोषणा की थी कि "मैं पैदा एक हिंदू के रूप में हुआ था... लेकिन मैं एक हिंदू के तौर पर मरूंगा नहीं." तब हिंदू धर्म को त्यागने के उनके फैसले पर उनकी आलोचना करने के लिए कई आलोचक आगे आए थे. उनमें से एक थे कांग्रेस नेता एमके गांधी. 1936 में, गांधी ने सीएफ एंड्रयूज को लिखा :
सरकार का रवैया जोकि धर्मांतरण विरोधी कानूनों में देखा जा सकता है वो गांधी के रूप में रियायती और संरक्षण देने वाला है, क्योंकि दोनों ही लोगों को एक एजेंसी के तौर पर इनकार करते हैं और उन्हें स्वतंत्र विचार के लिए सक्षम स्वायत्त व्यक्तियों के रूप में मानने से इनकार करते हैं. वहीं क्लॉज ये कहता है कि अगर ये साबित होता है कि 'धर्मांतरित' व्यक्ति नाबालिग, महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है तो सजा बढ़ जाएगी.
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