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18 दिन तक चले कर्नाटक के रण में बीजेपी ने एक बार फिर बाजी मार ली है. कर्नाटक के सियासी बिसात पर कांग्रेस-जेडीएस को मात मिलने के पीछे जिस शख्स का नाम सबसे पहले लिया जा रहा है वो हैं बुकंकरे सिद्दालिंगप्पा येदियुरप्पा.
जी हां, वही बीएस येदियुरप्पा जिन्होंने 2012 में बीजेपी छोड़कर अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बना ली थी. वही येदियुरप्पा जिन्होंने दक्षिण भारत में पहली बार बीजेपी का कमल खिलाया था. पहली बार बीजेपी को कर्नाटक में सत्ता का स्वाद चखाया था.
कर्नाटक में एक बार फिर बीजेपी ने वापसी की है. बीएस येदियुरप्पा ने शुक्रवार को चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
इससे पहले कर्नाटक विधानसभा में हुए फ्लोर टेस्ट में जेडीएस-कांग्रेस की सरकार गिर गई थी. फ्लोर टेस्ट में कांग्रेस-JDS के पक्ष में 99 और बीजेपी के पक्ष में 105 वोट पड़े थे.
कहते हैं कि कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा एक ऐसा नाम है जिसके बिना बीजेपी का अस्तित्व अधूरा है. कर्नाटक चुनाव में बीजेपी ने बिना देरी किए येदियुरप्पा को अपना सीएम कैंडिडेट बना दिया था. सिर्फ सीएम उम्मीदवार ही नहीं बल्कि अमित शाह ने भी येदियुरप्पा की उम्मीदवारी का ऐलान करते हुए कहा था कि येदियुरप्पा अगले पांच साल तक सीएम बने रहेंगे.
बीएस येदियुरप्पा अपने मजबूत किले शिकारीपुरा से चुनाव मैदान में ताल ठोकते रहे हैं. वो अबतक 7 बार शिकारीपुरा से चुनाव जीत चुके हैं.
बता दें कि लिंगायत समाज से आने वाले येदियुरप्पा का जन्म 27 फरवरी 1943 को मांड्या जिले के बुक्कनकेरे में हुआ था. कर्नाटक के तुमकुर जिले में एक जगह है येदियुर. वहीं संत सिद्ध लिंगेश्वर का बनाया हुआ शिव मंदिर है जिसके नाम पर येदियुरप्पा का नाम रखा गया था.
उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई मांड्या के पीईएस कॉलेज से की. जिसके बाद 1965 में वो मांड्या से शिकारीपुरा आ गए, जहां उन्होंने वीरभद्र शास्त्री राइस मिल में नौकरी कर ली. यहीं उन्होंने वीरभद्र शास्त्री की बेटी मैत्रादेवी से शादी कर ली. येदियुरप्पा आरएसएस से भी अपने जवानी के दिनों से जुड़े रहे हैं.
साल 1972 में येदियुरप्पा को शिकारीपुरा तालुका जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया. लेकिन उसके बाद 1975 में आपातकाल के दौरान उन्हें शिमोगा और बेल्लारी में करीब 45 दिनों तक जेल में रहना पड़ा. यहीं से उनकी राजनीति में नया मोड़ आया और फिर 1977 में उन्हें जनता पार्टी का सचिव बनाया गया.
येदियुरप्पा चुनाव दर चुनाव लिंगायत समाज से लेकर कर्नाटक की जनता पर पकड़ बनाते गए. साल 2007 में कर्नाटक में राजनीतिक उलटफेर हुआ. कांग्रेस की सरकार गिरा दी गई और सत्ता में जेडीएस-बीजेपी गठबंधन आ गया. समझौते के तहत पहले कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने, लेकिन जब उनके हटने और येदियुरप्पा के सीएम बनने की बारी आई तो वो अड़ गए. और वहां राष्ट्रपति शासन लग गया.
सीएम बनने के तीन साल दो महीने में ही उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा. जमीन घोटाले से लेकर खनन घोटाले तक में उनका नाम आया.
लेकिन 2013 में मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के बाद जनवरी 2014 में पार्टी में दोबारा उनकी वापसी हुई. जहां 2013 के विधानसभा चुनावों में येदियुरप्पा के अलग होने का खामियाजा बीजेपी को सत्ता गंवाकर भुगतना पड़ा वहीं 2014 में बीजेपी में वापसी के बाद लोकसभा चुनाव में अच्छे खासे वोट बटोरे.
2018 में बीजेपी ने दोबारा येदियुरप्पा पर ही दांव खेला और उन्हें सीएम पद का उम्मीदवार बनाया. येदियुरप्पा एक बार फिर कर्नाटक में बीजेपी का कमल खिलाने में कामयाब हुए.
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