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निजीकरण के विरोध में बैकों की हड़ताल, कई सेवाओं पर पड़ा असर

जरूरी लेन-देन की सेवाओं पर पड़ा असर, लाखों कर्मचारियों ने लिया हिस्सा

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भारत
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जरूरी लेन-देन की सेवाओं पर पड़ा असर, लाखों कर्मचारियों ने लिया हिस्सा
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जरूरी लेन-देन की सेवाओं पर पड़ा असर, लाखों कर्मचारियों ने लिया हिस्सा
(फोटो- PTI)

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बैंक कर्मचारियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शन तेज कर दिया है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण और अपनी तमाम मांगों को लेकर सरकारी बैंकों के लाखों कर्मचारी दो दिनों की हड़ताल पर हैं. सोमवार 15 मार्च को बैंकों की इस हड़ताल का असर कई सेवाओं पर दिखा. 9 अलग-अलग यूनियनों का नेतृत्व करने वाले भारतीय बैंक कर्मचारी संघ ने 15 और 16 मार्च को हड़ताल बुलाई थी.

कई जरूरी सेवाओं पर पड़ा असर

इस हड़ताल को लेकर बैंक यूनियनों का कहना है कि ये पूरी तरह से सफल रही है. यूनियनों का दावा था कि इस हड़ताल में कुल 10 लाख बैंक कर्मचारी हिस्सा लेंगे. फाइनेंशियल एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग सभी बैंकिंग सेवाएं इस हड़ताल से प्रभावित हुईं. बैंक यूनियन के नेताओं से बातचीत के आधार पर रिपोर्ट में बताया गया है कि, कैश निकासी से लेकर जमा करने और बिजनेस सेवाएं भी हड़ताल के चलते प्रभावित रहीं.

कई जगहों पर बैंक की शाखाएं नहीं खोली गईं, इसके चलते कोई भी नया चेक स्वीकार नहीं किया गया. जिससे करोड़ों रुपये के लेन-देन पर असर पड़ा.

देश के कई शहरों में हड़ताल करने वाले बैंक कर्मचारियों ने विरोध के तौर पर रैलियां भी निकालीं. पहले दिन की हड़ताल के बाद बैंक यूनियनों ने कहा है कि अगर सरकार अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करती है तो प्रदर्शन को तेज किया जाएगा. साथ ही अनिश्चितकालीन हड़ताल की भी चेतावनी दी.

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बेनतीजा रही थी सरकार से बातचीत

इससे पहले एआईबीईए के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने बताया था कि, "बैंक यूनियनों और केंद्रीय वित्त मंत्रालय के बीच 4, 9 और 10 मार्च को हुई सुलह बैठक विफल रही." इसीलिए 15-16 मार्च को हड़ताल बुलाई गई. यूनियनों ने ये भी कहा था कि, अगर सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने पर सहमत हो जाती है तो वे अपनी हड़ताल पर पुनर्विचार करेंगे. हालांकि इसके बाद सरकार की तरफ से कोई बातचीत नहीं की गई.

वित्त मंत्री सीतारमण ने किया था ऐलान

बता दें कि पिछले महीने पेश किए गए केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपनी विनिवेश योजना के हिस्से के रूप में दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी. इससे पहले, सरकार ने वर्ष 2019 में आईडीबीआई बैंक में अपनी बहुलांश हिस्सेदारी एलआईसी को बेचकर उसका निजीकरण कर चुकी है और इसके साथ ही पिछले चार वर्षो में सार्वजनिक क्षेत्र के 14 बैंकों का विलय किया गया है.

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