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बेंगलुरु और पुणे 'सुहावने मौसम' से तपिश वाले शहर में कैसे बदल गए? क्या हो बचाव का तरीका?

Urban Heat Effect: पिछले 50 सालों में पहली बार ऐसा हुआ कि बेंगलुरु में अप्रैल के महीने को कोई बारिश नहीं हुई.

गरिमा साधवानी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>बेंगलुरु और पुणे 'सुहावने मौसम' से तपिश वाले शहर में कैसे तब्दील हो गए?</p></div>
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बेंगलुरु और पुणे 'सुहावने मौसम' से तपिश वाले शहर में कैसे तब्दील हो गए?

फोटो- क्विंट हिंदी

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साल 2024 के अप्रैल महीने में कम से कम पिछले 41 वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ था जब बेंगलुरु (Bengaluru) में कोई बारिश नहीं हुई. दरअसल 25 अप्रैल को शहर का तापमान 38.5 डिग्री सेल्सियस था. यह 50 वर्षों में दूसरा सबसे गर्म दिन था.

बीते कुछ सालों में बेंगलुरु और पुणे सरीखे शहर तेजी से गर्म हो रहे हैं. इन शहरों के लिए साल भर 'सुहावना' मौसम होने का दावा किया जाता था.

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के 2 मई को जारी नोटिस के मुताबिक, पुणे में आने वाले दिनों में तापमान 40-42 डिग्री सेल्सियस के बीच रहेगा.

दोनों शहरों के लोगों ने हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर इस बारे में चर्चा की है कि बढ़ते तापमान की वजह से कैसे उन्हें एयर कंडीशनर या कूलर खरीदना या किराए पर लेना पड़ रहा है. इस तरह की चर्चाएं शायद ही पहले कभी दोनों महानगरों में इतनी चरम पर रही होगी.

लेकिन मौसम के मिजाज में यह बदलाव कैसे आया? और क्या यह सब अचानक हो रहा है? इसे समझने के लिए द क्विंट ने विशेषज्ञों से बात की है.

'द अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट': 'सुहावन मौसम वाले' शहरों की स्थिति

'परिसर' के पर्यावरण विशेषज्ञ और कार्यक्रम निदेशक रंजीत गाडगिल ने द क्विंट को बताया, "इसका व्यापक कारण निश्चित तौर पर जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग हैं लेकिन कई स्थानीय कारण भी हैं. यानी जिस तरह से हम शहरों के विकास कर रहे हैं उस पर भी नजर डालनी चाहिए."

मंथन अध्ययन केंद्र के साथ काम करने वाले पुणे स्थित पर्यावरण विशेषज्ञ श्रीपाद धर्माधिकारी रंजीत गाडगिल से सहमत हैं.

धर्माधिकारी कहते हैं, "गर्मियों के दौरान पिछले कुछ सालों में यहां गर्मी बढ़ रही है लेकिन यह पहली बार है जब हम गर्मी का खामियाजा भुगत रहे हैं. यहां सामान्य से बहुत पहले मौसम गर्म होना शुरू हो गया है."

बदलते मौसम की वजह को लेकर दोनों विशेषज्ञों ने कुछ बिंदु बताए हैं, उनका कहना है कि अगर इसे रोक नहीं गया तो ये कई गुना तक बढ़ सकता है.

  • निर्माण और गगनचुंबी इमारतों में इजाफा

  • शहरों में पानी और हरियाली के कमी

  • सड़कों पर वाहनों की संख्या में वृद्धि, इस वजह से सड़कों की वृद्धि

  • ऐसा शहर जहां पानी सतह के स्तर से नीचे नहीं जाता है (और इसलिए शहरों को ठंडा रखने में मदद नहीं करता है)

  • शहरों के अंदर ऊर्जा की खपत और उत्पादन में वृद्धि

  • शहरों का फैलाव और विकास

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दोनों विशेषज्ञ एक लगातार बढ़ते तापमान को लेकर एक अहम बिंदु की ओर ध्यान खींचते हैं, ये है 'द अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट'

संयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के अनुसार, "हीट आइलैंड शहरीकृत क्षेत्र हैं जो बाहरी क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा तापमान का अनुभव करते हैं."

धर्माधिकारी बताते हैं, "शहरी क्षेत्रों में हम कंक्रीटीकरण, निर्माण और ऊंची इमारतों में लगातार इजाफा देख रहे हैं. कंक्रीट दिन के दौरान गर्मी को अपने अंदर समा लेता है और शाम को इसे वापस वातावरण में छोड़ देता है. अब से पहले सूरज ढलने के बाद, ठंडी हवा चलती थी और गर्मी का कोई स्रोत नहीं होता था लेकिन शहरों में दिनभर की गर्मी शाम को बाहर निकलती है जिससे वातावरण गर्म हो जाता है."

इन चिंताओं को दूर करने के लिए क्या होना चाहिए आगे का रास्ता?

पुणे में गैर-लाभकारी संगठन 'प्रयास' के साथ अत्यधिक गर्मी के प्रभाव पर काम करने वाली ऋतु परचूरे द क्विंट को बताती हैं,

"बढ़ते तापमान के साथ, भारत दुनिया के सबसे कमजोर देशों में से एक है. अत्यधिक गर्मी स्वास्थ्य, कृषि, जल, परिवहन आदि सहित सभी क्षेत्रों को प्रभावित करती है."

ऋतु कहती है कि ग्लोबल वार्मिंग के किसी भी प्रभाव को कम करने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के शमन की पूरी जरूरत है.

लेकिन, थोड़े और स्थानीय स्तर पर बात करते हुए ऋतु कहती हैं, "आगे का रास्ता, गर्मी अनुकूलन के लिए एक बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण है. हमें दीर्घकालिक नीति बनाने और गर्मी को लेकर योजनाओं को लागू करने की आवश्यकता है."

हालांकि, वह आगे कहती हैं, "हमारी प्रतिक्रिया जो भी हो, यह संदर्भ विशिष्ट होनी चाहिए."

लेकिन इसका क्या मतलब है?

ऋतु का कहना है कि गर्मी को लेकर हम कितने संवेदनशील हैं ये कई कारकों पर निर्भर करती है. मसलन, इसके जोखिम, संवेदनशीलता, अनुकूली क्षमता, भौगोलिक स्थिति, सामाजिक-आर्थिक मापदंड, आयु, शीतलन आपूर्ति तक पहुंच जैसे विषय.

हमें यह पहचानने की जरूरत है कि बढ़ती गर्मी के निशाने पर कौन है और उनकी सुरक्षा के लिए गर्मी से निपटने के लिए नीतियों का बनाना जरूरी है.

बढ़ते तापमान और गर्मी से निपटने के लिए ऋतु परचूरे का अनुमान है, "सामुदायिक हितधारकों के साथ जुड़ना, उन्हें शिक्षित करना और उनके साथ सीखना भी अहम है."

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