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NIA द्वारा भीमा कोरेगांव हिंसा में 16 आरोपियों के खिलाफ मुख्य सबूत के रूप में प्रयोग 24 फाइलों में से 22 फाइलों को हिंसा के बाद प्लांट किया गया था .यह बात अमेरिकी डिजिटल फॉरेंसिक कंपनी आर्सेनल की दूसरी जांच रिपोर्ट में सामने आई है.
कोर्ट ऑर्डर के बाद रोना विल्सन के वकील को पुलिस द्वारा नवंबर 2019 में विल्सन के कंप्यूटर की इलेक्ट्रॉनिक कॉपी दी गई थी. उसके बाद उन्होंने इसे जांच के लिए अमेरिकी फॉरेंसिक कंपनी आर्सेनल को दिया था.
NIA के अनुसार यह 24 फाइलें यह सिद्ध करती है कि ये आरोपी प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवाद) के सदस्य हैं और इन्होंने आपस में फंड ट्रांसफर ,संगठन में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने, सरकार द्वारा दमन और माओवादी गुरिल्ला लड़ाकू के तस्वीर साझा किए थे. इन्हें तब से भारत राज्य के प्रति साजिश के आरोप में 2 साल से ज्यादा समय से जेल में बिना बेल(कवि वरवर राव बेल पर हैं)और ट्रायल के रखा गया है.
दूसरी रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि प्राइमरी इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस फैब्रिकेटेड है क्योंकि 24 में से 22 फाइलों को हिंसा के बाद प्लांट किया गया है. इस कारण उनका प्रयोग कोर्ट में सबूत के रूप में नहीं हो सकता क्योंकि विलसन के कंप्यूटर को टैम्पर्ड किया गया था.
दूसरी रिपोर्ट के अनुसार ये 22 फाइलें कभी भी विल्सन (या जिसने भी विलसन के कंप्यूटर को हैंडल किया था) के द्वारा बनाया, खोला या इस्तेमाल नहीं किया गया था .बल्कि हैकर ने एक सॉफ्टवेयर के माध्यम से उसे प्लांट किया था .
1जनवरी 2018 को सवर्ण बहुल पेशवा की सेना पर दलित बहुल अंग्रेजों की सेना के विजय के 200 में वर्षगांठ पर एल्गर परिषद का आयोजन किया गया था. यह आयोजन पुणे से 20 किलोमीटर दूर भीमा कोरेगांव में हुआ था. इस आयोजन के बाद दलितों और हिंदू दक्षिणपंथियों के बीच भयंकर हिंसा और आगजनी की घटना हुई. हिंसा में एक व्यक्ति की मौत भी हुई.
हिंसा के बाद पहले पुणे पुलिस ने और बाद NIA में 16 शिक्षाविदों ,वकील और कलाकारों को माओवादी संबंधों और हिंसा को प्रायोजित करने के आधार पर गिरफ्तार किया था.
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