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भीमा कोरेगांव केस: फादर स्टेन को 'मौत', क्या हिंदुत्ववादी आरोपियों को सजा मिली?

Bhima Koregaon केस में आरोपी संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे के खिलाफ मामला कहां पहुंचा?

हिमांशी दहिया
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p> Bhima Koregaon केस में संभाजी भिड़े ,मिलिंद एकबोटे पर आरोप&nbsp;</p></div>
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Bhima Koregaon केस में संभाजी भिड़े ,मिलिंद एकबोटे पर आरोप 

(Photo: Kamran Akther/The Quint)

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भीमा कोरेगांव (Bhima Koregaon) में हिंसा भड़कने के एक दिन बाद 2 जनवरी 2018 को पुणे के शिकरापुर पुलिस स्टेशन में हिंदुत्ववादी संगठन शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान और समस्त हिंदु अघाड़ी के नेता संभाजी भिड़े (Sambhaji Bhide) और मिलिंद एकबोटे (Milind Ekbote) के खिलाफ कथित तौर पर दलित विरोधी हिंसा के लिए साजिश रचने के आरोप में FIR दर्ज की गई थी.

अब तीन साल बीत जाने के बाद भी जहां एक ओर मिलिंद एकबोटे पुणे की एक सेशन कोर्ट द्वारा दी गई जमानत में बाहर हैं और 88 वर्षीय संभाजी भिड़े को पूछताछ के लिए बुलाया जाना बाकी है.

वहीं दूसरी ओर फादर स्टेन स्वामी सहित 16 अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में ठूंस दिया गया और उसी मामले (भीमा कोरेगांव) में उन पर UAPA के तहत आरोप लगाए गए. बीते 5 जुलाई को स्टेन स्वामी ने जहां इस दुनिया को अलविदा कह दिया वहीं 15 अन्य जमानत या ट्रायल के अंतहीन इंतजार में उलझे हुए हैं.

कौन हैं संभाजी भिड़े, उन्हें कौन सी बातें जांच से बचाती हैं? 

पुणे में रहने वाली अनीता सावले एक एंटी कास्ट एक्टिविस्ट यानी कि जाति विरोधी कार्यकर्ता हैं. इन्होंने ही भिड़े और एकबोटे के खिलाफ FIR दर्ज कराई थी. बीते तीन वर्षों में उन पर शिकायत वापस लेने के लिए दबाव बनाया गया और जान से मारने तक की धमकी भी दी गई.

द क्विंट से बात करते हुए उन्होंने कहा है कि "2 जनवरी 2018 को शिकरापुर पुलिस स्टेशन में मैंने अपनी शिकायत में दो लोगों का नाम दर्ज करवाया था. यह काफी चौंकाता है कि एकबोटे को पहले गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन बाद में उन्हें जमानत दे दी गई. वहीं संभाजी भिड़े को अब तक पूछताछ के लिए भी नहीं बुलाया गया है."

अब अनीता सावले की ओर से 1 जनवरी 2018 को हुई भीमा कोरेगांव हिंसा में संभाजी भिड़े और उनके संगठन शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान की भूमिका की न्यायिक जांच के संबंध में मांग करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में एक रिट प्रिटिशिन दायर की गई है. सावले कहती हैं कि कोविड-19 संकट के कारण इसमें देरी हो रही है.

इस मामले में जांच से अब तक भिड़े क्यों मुक्त हैं? इस सवाल का जवाब है महाराष्ट्र में प्राप्त उन्हें राजनीतिक समर्थन. सांगली के पत्रकार दत्ता खंडागले, जिन्होंने दक्षिणपंथी नेता के उदय को भलीभांति देखा है, कहते हैं कि सभी दलों ने वर्षाें से भिड़े को संरक्षण देने का काम किया है.

"संभाजी भिड़े को भाजपा, कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के लोकप्रिय नेताओं का समर्थन प्राप्त है. भिड़े और उनके संगठन का वोटर्स के एक निश्चित वर्ग पर काफी प्रभाव है और उन मतदाताओं को लुभाने के लिए ये राजनीतिक दल उनके खिलाफ किसी भी प्रकार से एक्शन लेने से बचते हैं."
दत्ता खंडागले, पत्रकार

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र के रायगढ़ में एक सभा को संबोधित किया था. इस कार्यक्रम में पीएम मोदी ने भिड़े के साथ मंच साझा करते हुए दावे के साथ कहा था कि वह भिड़े को व्यक्तिगत तौर पर वर्षों से जानते हैं.

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द क्विंट से बात करते हुए खंडागले आगे कहते हैं कि "भिड़े का संगठन दशकों से मराठा राजा छत्रपति शिवाजी के नाम पर युवाओं का ध्रुवीकरण कर रहा है." उन्होंने कहा कि "भिड़े का संगठन मुख्य रूप से 16 से 22 वर्ष के युवाओं को टारगेट करता है और धर्म के नाम पर समाज का ध्रुवीकरण करता है. युवाओं को कट्‌टरपंथी बनाया जा सके, इसके लिए वे शिवाजी महाराज के साथ अफजल खान, औरंगजेब और मुगलों को जोड़ते हुए इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं."

"भिड़ेजी गुरुजी" के नाम से लोकप्रिय संभाजी भिड़े शायद ही विवादों से अछूते रहे हों. 2008 में उन्होंने आशुतोष गोवारिकर की फिल्म "जोधा अकबर" के खिलाफ होने वाले विरोध का नेतृत्व किया था, सिनेमाघरों में तोड़फोड़ की थी और फिल्म की स्क्रीनिंग रोकने का काम किया था. इसके लिए उन पर मामला भी दर्ज किया गया था.

यह भी माना जाता है कि महाराष्ट्र के सांगली में 2009 की अशांति में भिड़े ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उस समय एक मुस्लिम युवक द्वारा भगवान गणेश की मूर्ति पर कथित तौर पर पत्थर फेंकने के बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी.

2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ देशव्यापी विरोधों के बीच भिड़े के संगठन ने पूरे महाराष्ट्र में इस अधिनियम के समर्थन में रैलियां की थीं.

बीजेपी-शिवसेना के पूर्व पार्षद और दंगा के आरोपी मिलिंद एकबोटे जमानत पर हैं बाहर

2018 में एक्टिविस्ट अनीता सावले द्वारा FIR दर्ज कराने के बाद पुणे की ग्रामीण पुलिस ने एकबोटे को आईपीसी (IPC) की धारा 307, 143, 148 और 295 के तहत गिरफ्तार किया गया. ये धाराएं हत्या और दंगा करने के प्रयास जैसे मामलों लिए दर्ज की गई थीं.

इसके बाद उन्होंने एक अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी जिसे पहले पुणे सेशन कोर्ट और बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया था.6 फरवरी 2018 को पुणे सेशन कोर्ट ने मिलिंद एकबोटे के नाम गिरफ्तारी वारंट जारी किया. जिसके बाद एकबोटे की तरफ से जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया, जोकि अगले दिन ही उन्हें दे दी गई.

हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने बाद में (मार्च 2018 में) मिलिंद एकबोटे की अंतरिम जमानत को इस आधार पर खारिज कर दिया था क्योंकि वे जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करने में विफल हो गए थे. इसके बाद उन्हें पुणे ग्रामीण पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, लेकिन एक महीने बाद ही उन्हें अप्रैल में 25 हजार रुपये के बॉन्ड पर जमानत दे दी गई.

समस्त हिंदू अघाड़ी और हिंदू एकता मंच जैसे संगठनों की तरह ही संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे जैस कई नेता विवादों से घिरे रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने खुद को "गौरक्षक" के तौर पर प्रस्तुत किया है और वेलेंटाइन डे के खिलाफ वार्षिक विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व करके समूचे महाराष्ट्र में लोकप्रियता हासिल की है.

एकबोटे राजनीतिक तौर पर एक पार्षद के रूप में शिवसेना और भाजपा दोनों से जुड़े रहे हैं. लेकिन 2002 में टिकट न मिलने से वे इन पार्टियों से दूर हो गए.

द क्विंट ने महाराष्ट्र के एक अंबेडकरवादी राजनीतिक संगठन "रिपब्लिकन युवा मोर्चा" के नेता राहुल दाम्बले से बात की. दाम्बले का कहना है कि एकबोटे और उनके संगठन ने भीमा कोरेगांव में दलित विरोधी हिंसा के लिए उपजाऊ जमीन तैयार की थी.

"भीमा कोरेगांव में तनाव तब बढ़ा जब घटना से कुछ दिनों पहले कुछ दक्षिणपंथी समूहों ने गोपाल गोविंद "महार" की समाधि को अपवित्र किया था. उस घटना के बाद 50 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी, जिनमें मिलिंद एकबोटे का नाम भी शामिल था."
राहुल दाम्बले

गोपाल गोविंद "महार" एक दलित मजदूर थे. ऐसा मानना है कि इनके द्वारा ही छत्रपति शिवाजी के पुत्र छत्रपति संभाजी का अंतिम संस्कार किया था.

दाम्बले कहते हैं कि ज्यादातर लोग स्मारक पर हुई हिंसा का जिक्र करते हैं, लेकिन बहुत कम लोग ही इस घटना पर प्रकाश डालते हैं. उन्होंने एकबोटे और उनके हिंदुत्वावादी संगठनों पर अपने व्यापक सोशल मीडिया प्रभाव का उपयोग करके भीड़ जुटाने और अफवाह फैलाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि यह दुष्प्रचार किया गया और अफवाह फैलायी गई कि "दलितों ने शिवाजी महराज की समाधि को अपवित्र किया है."

बता दें कि एकबोटे के खिलाफ दंगा, घुसपैठ और अन्य अपराधों के 12 मामले दर्ज हैं, जिनमें से उन्हें पांच में दोषी ठहराया गया है.

(क्विंट ने शिकरापुर पुलिस और पुणे ग्रामीण पुलिस के अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन वे टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं हैं. जैसे ही हमारी उनसे बात होगी, इस आर्टिकल को अपडेट किया जाएगा.)

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