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भीमा कोरेगांव केस: शोमा सेन को 6 साल बाद जमानत, UAPA की धारा 43D(5) से कैसे मिली राहत?

Bhima Koregaon case: छह जून 2018 को शोमा सेन को पुणे पुलिस ने माओवादियों से लिंक रखने के आरोप में गिरफ्तार किया था.

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद केस  में शोमा कांति सेन को मिली जमानत</p></div>
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भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद केस में शोमा कांति सेन को मिली जमानत

(फोटो: क्विंट हिंदी द्वारा एडिटेड)

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भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद केस (Bhima Koregaon-Elgar Parishad Case) में नागपुर यूनिवर्सिटी की पूर्व प्रोफेसर शोमा सेन (Shoma Sen) को शुक्रवार, 5 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत मिली. वो पिछले छह साल से जेल में बंद थीं. बता दें कि छह जून 2018 को शोमा सेन को पुणे पुलिस ने माओवादियों से लिंक रखने के आरोप में UAPA यानी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था.

सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत

जस्टिस अनिरुद्ध बोस और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने जमानत देते हुए निर्देश दिया कि सेन ट्रायल कोर्ट की अनुमति के बिना महाराष्ट्र नहीं छोड़ेंगी, अपना पासपोर्ट सरेंडर करेंगी, NIA को अपना पता बताएंगी, केवल एक मोबाइल नंबर का उपयोग करेंगी जिसकी जानकारी NIA को देंगी.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, सेन को ये सुनिश्चित करना होगा कि उनका फोन चौबीसों घंटे सक्रिय और चार्ज रहे, लोकेशन (GPS) ऑन रखना होगा, और फोन को NIA जांच अधिकारी के साथ पेयर करना होगा, जिससे की उनके सही लोकेशन की जानकारी मिलती रहे. कोर्ट ने इसके साथ ही उन्हें हर 15 दिन में एक बार उस पुलिस स्टेशन के SHO को रिपोर्ट करने के लिए भी कहा, जिसके अधिकार क्षेत्र में वो रहेंगी.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इनमें से किसी भी शर्त या ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए शर्तों का उल्लंघन करने पर एजेंसी ट्रायल कोर्ट से संपर्क किए बिना जमानत रद्द करने की मांग कर सकता है.

जमानत देते हुए कोर्ट ने क्या कहा?

NIA ने सेन की जमानत का विरोध नहीं किया था, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को उन्हें जमानत दे दी थी. कोर्ट ने यह भी कहा कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत जमानत देने की कड़ी शर्तें उनके मामले में लागू नहीं होती हैं. बेंच ने उनकी 'बढ़ती उम्र', 'बीमारियों', आरोप तय करने में देरी और हिरासत की अवधि पर भी गौर किया.

"याचिकाकर्ता पर धारा 43(D)(5) के तहत प्रतिबंध लागू नहीं होना चाहिए. हमने नोट किया है कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (जो NIAकी ओर से पेश हुए) ने कहा कि हिरासत की अब आवश्यकता नहीं है. 1967 का अधिनियम 43(D)(5) लागू नहीं होता... उनकी उम्र अधिक है और इस स्तर पर मुकदमे में देरी का असर उनके स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है. उन्हें जमानत पर रिहा होने के विशेषाधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए."

अधिनियम के संदर्भ में कोर्ट ने कहा, "अपीलकर्ता को जिन कृत्यों के लिए विभिन्न गवाहों द्वारा जिम्मेदार ठहराया गया है, उससे या फिर अभियोजन पक्ष की ओर से पेश सबूतों पर गौर करने के बाद, हमें प्रथम दृष्टया अपीलकर्ता द्वारा कोई आतंकवादी कृत्य करने का प्रयास नहीं दिखता है.”

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UAPA की धारा 43(D)(5) क्या है?

UAPA की धारा 43(D)(5) के मुताबिक, जिस शख्स पर आतंकवाद से संबंधित आरोप लगे हों उसे जमानत पर या निजी मुचलके पर तब तक रिहा नहीं किया जा सकता जब तक कि जमानत याचिका पर सरकारी वकील का पक्ष सुन न लिया जाए.

इस धारा के तहत अगर अदालत यह मान ले कि जो आरोप लगाए गए हैं वो पहली नजर में (सुनवाई से पहले ही) सही हो सकते हैं तो ऐसी स्थिति में जमानत पर रिहाई नहीं हो सकती.

कानून के जानकारों का मानना है कि धारा 43(D)(5) की वजह से न्याय की प्रक्रिया ही सजा बन जाती है.

बता दें कि भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी स्टेन स्वामी (Father Stan Swamy) ने साल 2021 में अपनी मौत से दो दिन पहले UAPA की धारा 43डी (5) की संवैधानिक वैधता को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. स्वामी ने याचिका में कहा था, "इस प्रावधान से UAPA के तहत जमानत मिलना लगभग असंभव हो जाता है क्योंकि इसमें न्यायिक तर्क के लिए बहुत कम जगह है."

शोमा सेन कौन हैं?

66 वर्षीय शोमा सेन अंग्रेजी की प्रोफेसर थीं. गिरफ्तारी के समय वो नागपुर की आरटीएम यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी डिपार्टमेंट की हेड थी. वे महिलाओं, आदिवासियों और दलितों के अधिकारों के मुद्दों पर लिखती रही हैं. उनके लेख प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, सेन 'कमेटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स' की सदस्य हैं. वे मानवाधिकार के क्षेत्र में काम कर रही कई संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं. उन्होंने 'अत्याचार की शिकार' महिला राजनीतिक बंदियों का मामला उठाया है और उन्हें कानूनी सहायता दी है.

सेन को 6 जून, 2018 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वो हिरासत में हैं. NIA सेन पर आरोप लगाया था कि वो "सीपीआई (माओवादी) का एक सक्रिय सदस्य हैं और उन्होंने अन्य आरोपी व्यक्तियों के साथ मिलकर लोकतंत्र और राज्य को हिंसक रूप से उखाड़ फेंकने की साजिश रची थी".

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