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फादर स्टेन का गुनाह तो साबित नहीं कर पाए, उनकी मौत का गुनहगार कौन?

गिरफ्तारी से पहले Stan Swamy ने क्विंट से कहा था- "सरकार मुझे रास्ते से हटाने की कोशिश कर रही है."

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(यह आर्टिकल/वीडियो मूल रूप से 8 जुलाई 2021 को प्रकाशित हुआ था, और अब आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की दूसरी पुण्यतिथि पर पुनः प्रकाशित किया जा रहा है.)

आदिवासी अधिकारों के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा देने वाले फादर स्टेन स्वामी (Stan Swamy) अब इस दुनिया में नहीं हैं. साल 2018 में हुए भीमा कोरेगांव (Bhima Koregaon) हिंसा से जुड़े मामले में गिरफ्तार स्टेन स्वामी का 84 साल की उम्र में निधन हो गया.

84 साल के बुजुर्ग और बीमार जमानत मांगते रह गए, लेकिन हुकूमत ने इंकार कर दिया. फादर स्टेन स्वामी न कोर्ट से मई में कहा था कि मुझे जमानत दे दीजिए, यही हाल रहा तो मैं मर जाऊंगा और वही हुआ. लेकिन इंसाफ की मूर्ति के पत्थर कानों से टकरा कर ये गुहार नीचे गिर गई. जूडिशियल सिस्टम की क्रूरता देखिए जो शख्स वेंटिलेटर पर है उसे मेडिकल ग्राउंड पर जमानत दी जाए या नहीं इसपर हाईकोर्ट में 6 जुलाई को सुनवाई होनी थी, लेकिन फादर स्टेन एक पहले यानी 5 जुलाई को ही आजाद हो गए. उनका निधन हो गया. इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

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साल 2020 में गिरफ्तारी से एकदम पहले स्टेन ने क्विंट से बात की थी. जिसमें स्टेन स्वामी ने कहा था कि वो कभी भीमा कोरेगांव गए ही नहीं. उनके लैपटॉप में हिंसा या माओवादियों से जोड़े डॉक्यूमेंटस गलत तरीके से जोड़े गए.

कोरेगांव हिंसा मामले में एक और आरोपी रोना विल्सन

ठीक इसी तरह भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में एक और आरोपी रोना विल्सन ने भी बॉम्बे हाई कोर्ट में अर्जी लगाई थी और कहा था कि उनके कंप्यूटर में साजिश रचने के डॉक्यूमेंट्स को कथित रूप से प्लांट किया गया है.

इस मामले में पुणे कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने नवंबर 2019 में रोना विल्सन के कंप्यूटर की इलेक्ट्रॉनिक कॉपी दी. जिसे जांच के लिए अमेरिका के आर्सेनल डिजिटल फोरेंसिक लैब भेजा गया था, जिसकी रिपोर्ट में पाया गया कि हैकर ने किसी सॉफ्टवेयर की मदद से हिंसा के बाद रोना विल्सन के कंप्यूटर में 10 फाइलों को प्लांट किया था. हालांकि NIA आर्सेनल की रिपोर्ट को पहले ही ऑथेंटिक मानने से इंकार कर चुका है.

चलिए आपको स्टेन की गिरफ्तारी, उनके काम और जमानत न मिलने से पहले की पूरी कहानी बताते हैं.

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भीमा कोरेगांव का इतिहास

हर साल पहली जनवरी को भीमा कोरेगांव में दलित समुदाय बड़ी संख्या में जुटकर उन दलितों को श्रद्धांजलि देते हैं, जिन्होंने 1818 में पेशवा की सेना के खिलाफ लड़ते हुए अपनी जान दी थी.

भीमा कोरेगांव की लड़ाई 1 जनवरी, 1818 को ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और पेशवाओं के नेतृत्व वाली मराठा सेना के बीच हुई थी. महाराष्ट्र के कोरेगांव में एक दलित जाति है- महार. कहा जाता है कि पेशवाओं यानी ब्राह्मणों ने उस वक्त, महारों के खिलाफ, एक मार्शल लॉ लागू किया हुआ था. इस अत्याचारी कानून के मुताबिक, महारों को कमर में झाड़ू और गले में मटका बांधने का आदेश दिया गया. इसी के खिलाफ लड़ाई हुई. इस लड़ाई में मराठाओं की हार हुई और जीत का सेहरा ईस्ट इंडिया कंपनी की महार रेजिमेंट के सिर बंधा. ब्रिटिश सेना में शामिल दलितों (महार) ने ब्राह्मणों (पेशवा) को हराया था.

ठीक 200 साल बाद एक जनवरी, 2018 को पुणे के भीमा-कोरेगांव में हमेशा की तरह दलित समाज के लोग जीत का जश्न मनाने के लिए जुटे थे. इसी दौरान हिंसा हुई. पुलिस ने कई आरोपियों के संबंध नक्सलियों से होने का आरोप लगाया.

कुछ दिनों बाद एफआईआर फाइल की गई और दावा किया गया कि 31 दिसंबर 2017 में हुए एलगार परिषद में हिंसा की योजना बनाई गई थी. पुणे पुलिस ने देश के अलग-अलग हिस्सों में छापे मारकर कई गिरफ्तारियां की. कहा गया कि प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रची जा रही थी. हालांकि इस आरोप को एफआईआर में नहीं डाला गया.

UAPA के तहत स्टेन स्वामी पर हुआ था केस दर्ज

इसी हिंसा को लेकर NIA ने ट्राइबल राइट्स एक्टिविस्ट स्टेन स्वामी को अक्टूबर 2020 में रांची से गिरफ्तार किया. NIA ने स्टेन स्वामी पर UAPA के तहत केस दर्ज किया. स्वामी ने गिरफ्तारी से पहले कहा था

"सरकार मुझे रास्ते से हटाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा था कोरोना का वक्त है. मुझे मुंबई आने के लिए कहा जा रहा है. मैं 83 साल का हूं. मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है. लेकिन उनकी कोई दलील नहीं मानी गई."

यही नहीं जब उन्हें जेल में रखा गया तब उन्हें कोरोना हुआ. 10 दिन बाद उन्हें अस्पताल में एडमिट किया गया.

पार्किंसन के मरीज स्टेन

जेल में स्टेन स्वामी की हालत इतनी नाजुक थी कि वो खुद से पानी या चाय का गिलास नहीं पकड़ सकते थे. पार्किंसन की वजह से उनके हाथ लगातार हिलते थे. इसे लेकर उन्होंने एनआईए से सिपर या स्ट्रॉ मुहैया कराने की मांग की थी. जिससे वो आसानी से पानी या चाय पी सकें. लेकिन उन्हें सिपर नहीं दिया गया. जब स्वामी के वकील ने कोर्ट में ये बात उठाई तो एनआईए ने जवाब देने के लिए 20 दिन का वक्त मांगा. लेकिन इसके बाद जवाब में एनआईए की तरफ से कहा गया कि, हमारे पास स्वामी के लिए स्ट्रॉ और सिपर नहीं हैं.

NIA का कहना था कि स्टेन स्वामी अभी जुडिशियल कस्टडी में हैं तो ये उनके और जेल प्रशासन के बीच का मामला है. इसके बाद कोर्ट ने 26 नवंबर 2020 को जेल प्रशासन को स्ट्रॉ और सिपर उपलब्ध कराने के निर्देश दिए.

अपनी मौत से करीब एक महीने पहले बॉम्बे हाईकोर्ट से स्टेन स्वामी ने कहा था,

“मैं केवल एक चीज का अनुरोध करता हूं कि अंतरिम जमानत के लिए विचार किया जाए. मेरी हालत खराब हो गई है. मैं रांची जाना चाहता हूं. अगर हालात ऐसे ही चलते रहे तो जल्द यहीं मौत हो जाएगी.”

और आखिर मौत हो ही गई.

अब सवाल है कि स्टेन गुनहगार थे या नहीं ये जांच एजेंसी साबित नहीं कर पाई, अपनी बेगुनाही स्टेन साबित करने के लिए भी रहे नहीं. अगर स्टेन बेगुनाह हैं तो इस तकलीफ, इस दर्द भरी मौत के लिए जिम्मेदार कौन होगा? फादर स्टेन की मौत के बाद जांच एजेंसियां और सरकार अपनी आत्मा में झाकेंगी?

इस मामले में की और आरोपी हैं...बुजुर्ग भी, बीमार भी- प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलो, महेश राउत, एक्टिविस्ट अरुण फरेरा, रोना विल्सन, वरवर राव, गौतम नवलखा, वर्नोन गोंजाल्विस, सामाजिक कार्यकर्ता और वकील सुधा भारद्वाज, एकैडमिक आनंद तेलतुम्बडे, वकील सुरेंद्र गाडलिंग, दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू, कबीर कला मंच के सदस्य सागर गोरखे, रमेश मुरलीधर, ज्योति राघोबा जगताप, सुधीर धवले, पूर्व प्रोफेसर शोमा सेन.

क्या इन लोगों को इंसाफ मिलेगा? क्या जल्द से जल्द जांच पूरी होगी? क्या सिर्फ आरोप के आधार पर किसी को सालों जेल में सड़ते छोड़ देना इंसाफ है? क्या किसी आरोप में जेल में बंद लोगों को सही इलाज नहीं मिलना चाहिए? सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे तो हम पूछते रहेंगे जनाब ऐसे कैसे?

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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