advertisement
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की बजाए घर में नजरबंद रखने का आदेश दिया है. अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी.
भीमा कोरेगांव मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने तीन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तार कर लिया था. जबकि दो की गिरफ्तारी पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है. इन गिरफ्तारियों से देश में बड़े पैमाने पर मानवाधिकार से जुड़े लोगों और बुद्धिजीवियों ने नाराजगी जताई थी.
इन गिरफ्तारियों को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनौती दी गई थी और सुप्रीम कोर्ट ने असाधारण फैसला लेते हुए सुनवाई के लिए मामला 5 जजों की बेंच को सौंप दिया. दोनों पक्षों की तीखी दलीलों के बाद अगली सुनवाई 6 सितंबर को तय की गई है. लेकिन तब तक पुलिस इन कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार नहीं कर सकेगी उन्हें घर में ही नजरबंद रखा जाएगा
पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार वामपंथी विचारकों की तरफ से अपना पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पुलिस की एफआईआर में गिरफ्तार लोगों का कहीं कोई जिक्र नहीं है. उन्होंने कोर्ट को बताया कि पांचों विचारकों के ऊपर किसी भी तरह की मीटिंग करने का आरोप भी नहीं है है.
उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि यह मामला संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार जीने के अधिकार से जुड़ा है. लिहाजा, इन विचारकों की गिरफ्तारी पर रोक लगाई जाए.
मानवाधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबड़े ने कहा-
मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने कहा-
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएम खानविलकर की बेंच ने की. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, ‘असहमति हमारे लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है. अगर आप प्रेशर कुकर में सेफ्टी वॉल्व नहीं लगाएंगे तो वो फट सकता है.’
सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने गिरफ्तारी पर नाराजगी जताई. उन्होंने कहा, ‘ये बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि इन लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है. इसका सीधा-सीधा मतलब है कि आप विरोधी विचारधारा वाले लोगों को खामोश करना चाहते हैं. ये लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक चीज है.’
कोर्ट ने आरोपियों को अंतरिम राहत देते हुए अगली सुनवाई तक गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है. तब तक सभी आरोपी नजरबंद रहेंगे.
महाराष्ट्र सरकार ने पांच वामपंथी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर पुणे पुलिस का बचाव किया. सरकार ने अपने बयान में कहा कि यह कार्रवाई ‘नक्सली गतिविधियों से उनके संबंधों' के ‘सबूत' पर आधारित है.
महाराष्ट्र सरकार में गृह राज्य मंत्री दीपक केसरकर ने कहा कि कार्यकर्ताओं के खिलाफ छापेमारी से पहले सारी प्रक्रियाओं का पालन किया गया. पुणे पुलिस ने कई राज्यों में कुछ जाने-माने वामपंथी कार्यकर्ताओं के घरों पर छापा मारा और उनमें से पांच को गिरफ्तार किया.
इनमें कवि वरवर राव को हैदराबाद से, कार्यकर्ता वेरनॉन गोंजाल्विस और अरूण फरेरा को मुंबई से, ट्रेड यूनियन से जुड़ीं और वकील सुधा भारद्वाज को फरीदाबाद से और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया. ये छापेमारी पुणे में पिछले साल 31 दिसंबर को आयोजित एल्गार परिषद कार्यक्रम की जांच के सिलसिले में की गई. इस कार्यक्रम के बाद कोरेगांव-भीमा गांव में दलितों और अगड़ी जाति के समूहों के बीच हिंसा हुई थी.
केसरकर ने कहा कि प्रोफेसर साईबाबा (माओवादियों से कथित संबंध के लिये 2014 में गिरफ्तार दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर) इस बात के उदाहरण हैं कि बुद्धिजीवी देश के खिलाफ अपने दिमाग का इस्तेमाल कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि नक्सल आंदोलन देश में प्रतिबंधित है और किसी को भी इससे सहानुभूति नहीं रखनी चाहिये.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)