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बिहार चुनाव नतीजों के बाद ये साफ हो गया था कि इस बार बीजेपी बिहार सरकार में बड़े भाई की भूमिका में रहने वाली है, कयास तो यहां तक लगाए जाने लगे कि बीजेपी कहीं अपने मुख्यमंत्री पद की दावेदारी न ठोकने लगे. लेकिन इन कयासों को खुद पीएम मोदी ने विराम दिया. बिहार चुनाव जीतने के बाद धन्यवाद कार्यक्रम में पीएम मोदी ने सार्वजनिक मंच से साफ कर दिया कि NDA के नेतृत्व वाली इस सरकार में नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे. लेकिन इस बार अखाड़े की जगह मुख्यमंत्री का पद नहीं था बल्कि उपमुख्यमंत्री के दो पद थे. बीजेपी में संगठन के अंदर ही इस पद के लिए कुछ और दावेदार दिखते हैं.
जिस तरह पहले से ही कयास लगाए जा रहे थे वैसा ही हुआ, और सुशील मोदी को इस बार उपमुख्यमंत्री नहीं बनाया गया. तारकिशोर प्रसाद को इस बार बीजेपी ने सुशील मोदी की जगह दी है. वैश्य समाज से आने वाले तारकिशोर प्रसाद की बीजेपी संगठन के अंदर अच्छी पकड़ मानी जाती है. वे कटिहार से चौथी बार विधायक बने हैं. तारकिशोर को पार्टी की तरफ से भी विधायक दल का नेता चुना गया है. तारकिशोर शांत स्वभाव के हैं लेकिन पार्टी का पक्ष मजबूती के साथ रखते हैं.
रेणु देवी ने बिहार की पहली महिला उपमुख्यमंत्री बनकर इतिहास रच दिया है. वो बेतिया से लगातार पांचवीं बार चुनकर आई हैं. रेणु अति पिछड़ा वर्ग के तहत नोनिया समुदाय से आती हैं और बिहार बीजेपी की महिला विंग में काफी लंबे वक्त से काम करती रही हैं और उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है.
सुशील मोदी का बिहार सरकार से पत्ता कटने के बाद नीतीश कुमार की गुमसुम प्रतिक्रिया रही. सुशील मोदी के उपमुख्यमंत्री ना बनने का सवाल पत्रकारों ने नीतीश कुमार से पूछा तो उन्होंने कहा कि-
साफ है कि उपमुख्यमंत्री पद के नाम फाइनल करने में बीजेपी ने अपनी मनमर्जी से फैसला लिया है और नीतीश कुमार के बयान से भी यही संकेत मिल रहा है. बीजेपी अपने बड़े भाई के रोल में आ चुकी है और भले ही नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हों लेकिन अपनी पसंद से दो मुख्यमंत्री चुनकर बीजेपी ने जिस तरह से सरकार का गठन किया है वो ये संकेत देता है कि सरकार की लगाम बीजेपी के पास रहने वाली है.
अगला सवाल उठता है कि क्या बिहार बीजेपी के आंतरिक समीकरण क्या कहते हैं. सुशील मोदी जो 2005 के बाद लगातार बीजेपी की तरफ से उपमुख्यमंत्री रहे. मुख्यमंत्री की रेस में भी जिनका नाम गाहे बगाहे आता रहा क्या उनको पद न दिए जाने से पार्टी में कोई रोष तो नहीं है? और उपमुख्यमंत्री पद के दूसरे दावेदारों का सीवी कितनी दमदार थी? और क्या पदों के बंटवारे में बीजेपी जातीय समीकरण साध पाई है?
बीजेपी ने डिप्टी सीएम के दोनों पद पिछड़ी जाति (एक OBC, एक EBC) से आने वाले नेताओं को दिए हैं और माना जा रहा है कि बीजेपी ऐसा करके पिछड़ी जाति के वोटरों को साधना चाहती है. लेकिन राजनीतिक गलियारों और पार्टी के अंदर चर्चा है कि अगर पिछड़ी जाति के ही नेता तो उपमुख्यमंत्री बनाना था तो पटना साहिब सीट से लगातार सातवीं बार जीतने वाले नंदकिशोर यादव को डिप्टी सीएम क्यों नहीं बनाया गया.
अति पिछड़ा वर्ग से आने वाली रेणु सिंह को बीजेपी ने दूसरा डिप्टी सीएम बनाया गया है. लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि अगर अति पिछड़ा वर्ग से ही बीजेपी को कोई नाम चुनना था तो ज्यादा अहम दावेदारी डॉ प्रेम कुमार की भी बनती थी. डॉ प्रेम कुमार बिहार की गया सीट से लगातार 30 सालों से जीतते आ रहे हैं. प्रेम कुमार चंद्रवंशी समाज से आते हैं और उन्हें ही EBC पॉलिटिक्स का शिल्पकार माना जाता है. पिछली नीतीश सरकार में भी वो कृषि और पशुपालन मंत्री रह चुके हैं. जब नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ करीब 2 साल के लिए सरकार बनाई थी तो प्रेम कुमार बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी थे. तो इस तरह से कई लोगों का मानना है कि डिप्टी सीएम पद के लिए प्रेम कुमार की दावेदारी ज्यादा प्रबल थी.
अगड़ों के प्रतिनिधित्व भी एक अहम बिंदू है, जिसको लेकर विचार किया जाना चाहिए था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछड़ा वर्ग से आते हैं. एक उपमुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग से और एक उपमुख्यमंत्री अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं. तो ऐसे में कइयों का मानना ये भी है कि तीन में से एक पद कम से कम किसी सामान्य वर्ग के नेता को दी जानी चाहिए थी.
हालांकि मंगल पांडे को सुशील मोदी का करीबी माना जाता है. मंगल पांडे को चुनाव लड़ने और लड़ाने का भी अच्छा अनुभव है. लेकिन फिर भी बीजेपी ने उन्हें बतौर उपमुख्यमंत्री नहीं चुना.
हो सकता है चुनाव नतीजे आने के बाद से जिस साइलेंट वोटर के जुमले को बार-बार दोहराया जा रहा है और एनडीए की जीत के पीछे महिला वोटों की लामबंदी को अहम माना जा रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने एक उपमुख्यमंत्री महिला बनाने का फैसला किया हो.
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