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कहते हैं मोहब्बत में बड़ी ताकत होती है. यह पत्थर को पानी बना देती है और कंटीली जमीन को राख! और जब ये मोहब्बत अपने गांव, अपने पड़ोसियों के लिए हो, तो और भी अनमोल हो जाती है. ऐसी ही एक कहानी है बिहार में गया के लौंगी भुइयां की.
‘मोहब्बत’ का मतलब अपने किसी प्रिय की याद में केवल आगरा का ‘ताजमहल’, उक्रेन का ‘स्वालो नेस्ट कैसल’, फ्लोरिडा का ‘कोरल कैसल’, मलेशिया का ‘केल्लेस कैसल’, ऑस्ट्रिया का ‘मीरबेल पैलेस’ और जापान का ‘कोदैजी टेम्पल’ जैसी बड़ी-बड़ी इमारतें ही खड़ी करना नहीं होता. बल्कि मोहब्बत का मतलब अपने आसपास रहनेवाले की ज़िन्दगी का ख्याल करना भी होता है. यही चीज बिहार के दो मजदूरों द्वारा खून-पसीना बहाकर किए गए निर्माण, इन्हें दुनिया के महान "मोनुमेंट्स ऑफ लव" अर्थात "प्यार के स्मारक" से अलग करती है.
दशरथ मांझी की कहानी तो सब जानते हैं. अब नई कहानी. बिहार के गया जिले में बांके बाजार प्रखंड की सीमा पर जंगल में बसे कोठीलवा गांव निवासी लौंगी भुइयां की कहानी. जिन्होंने अपने समाज के लिए जीवन के 20 साल नहर खोदने में लगा दिए. लौंगी बेहद ही गरीब परिवार से आते हैं जो अपने परिवार की जीविका बकरी चराकर या दूसरे के खेतों में मजदूरी करके करते थे. पड़ोस के जंगल में बकरी को चराने ले जाते लौंगी जब आसपास के नवयुवकों और ग्रामीणों को सर पर झोला उठाए काम की तलाश में गांव से बाहर जाते देखते तो उनका कलेजा फटने लगता था. वो चाह के भी कुछ नहीं कर सकते थे.
उन्होंने अपने गांव वालों से बात की, स्थानीय प्रतिनिधियों से बात की लेकिन किसी से उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया. सो उन्होंने सब खुद ही करने की ठानी, और हाथ में कुदाल, खंती और कुल्हाड़ी लिए एक दिन निकल पड़े अपने मिशन पर.
आज नहर का पानी गांव के पास एक तालाब में जमा हो रहा है. स्थानीय बताते हैं कि इस नहर के बन जाने के बाद आसपास की लगभग 500 एकड़ परती पड़ी जमीन की सिंचाई होगी जिससे लोगों के जीवन में खुशशहाली आएगी. लौंगी के इस काम की कद्र करते हुए स्थानीय लोगों ने इस तालाब का नाम "लौंगी तालाब" रखा है.
स्थानीय मुखिया विष्णुपद पासवान कहते हैं, "ऐसा जीवट आदमी मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा. अपना घर-परिवार छोड़कर दिनभर मिट्टी काटता रहता था. लोग कहते थे कि पागल हो गया है. लेकिन उसने वह कर दिखाया है जो हम सपने में भी नहीं सोच सकते थे. आज चारों तरफ खुशी का माहौल है. हर दिन लोग लौंगी को खोजने आते हैं".
मशहूर उद्योगपति और महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने तो लौंगी द्वारा खोदे गए नहर की तुलना "ताजमहल और (मिस्र के) पिरामिड" तक से कर दी है. महिंद्रा कहते हैं, (फोटो- क्विंट हिंदी)
गया के ही दूसरे शख्स दशरथ मांझी की कहानी तो और भी दिल को झखझोर देनेवाली है. गया के गेहलौर गांव के रहनेवाले मांझी बहुत ही गरीब परिवार से आते थे. वो अपना परिवार चलने के लिए मजदूरी करते थे तो उनकी पत्नी फाल्गुनी देवी सर पे पोटली लिए उन्हें रोज दोपहर खाना पहुंचाने जाती थीं. ऐसे ही एक दिन खाना पहुंचाने के दौरान फाल्गुनी गेहलौर पहाड़ी के दर्रे में गिर गईं और घायल हो गईं. समय पर उचित इलाज के अभाव में एक दिन उनकी मौत हो गई. ये घटना 1959 के आसपास की है.
तभी मांझी ने संकल्प लिया वो इस पहाड़ी को काटकर रोड बनाकर ही रहेंगे ताकि किसी और की जान समय पर इलाज के अभाव में न जाए. 1960 से 1982 के बीच मांझी रोज सुबह पहाड़ी पर जाते और देर शाम तक उसे एक छोटी सी छेनी और हथोड़ी के सहारे काटते रहते. लोगों ने उन्हें पागल कहा लेकिन उनपर तो अपनी पत्नी की मौत का बदला लेने का जुनून सवार था.
2007 में 78 साल की उम्र में मांझी का निधन कैंसर से हो गया लेकिन वो आज भी समाज के लिए एक मिसाल हैं.
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