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‘जो दिखता है, वो होता नहीं और जो होता है वो दिखता नहीं.’ ये डायलॉग कई बार सुना है और बिहार की सियासत में काफी फिट भी बैठ रहा है. दरअसल, 2 महीने के इंतजार के बाद आखिरकार नीतीश सरकार ने कैबिनेट का विस्तार कर दिया.
भारतीय जनता पार्टी के शाहनवाज हुसैन समेत कुल 17 मंत्रियों ने पद की शपथ ली. और इस कैबिनेट विस्तार में बीजेपी के 9 और जेडीयू के 8 मंत्री बने. जैसे ही ये खबर आई कि नीतीश के मंत्री कम हैं और बीजेपी के ज्यादा, फिर क्या था हम सबने कहना शुरू किया कि बीजेपी बनी ‘सीनियर’. लेकिन क्या ये सच है? जवाब है नंबर के हिसाब से हां, और पावर के हिसाब से न.
आइए इस बात को समझते हैं. जब नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तब नीतीश कुमार समेत कुल 14 मंत्री थे. इनमें दो उपमुख्यमंत्री भी शामिल हैं, जो बीजेपी के कोटे से हैं. लेकिन बाद में जेडीयू कोटे के एक मंत्री मेवालाल चौधरी को आरोपों के बाद इस्तीफा देना पड़ा था. अब नीतीश सरकार के कैबिनेट विस्तार के बाद कुल 31 मंत्री हो गए हैं. बीजेपी से 15, जेडीयू से 13, एक जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा से, एक मुकेश सहनी की वीआईपी और एक नीतीश कुमार की तरफ से इंडिपेंडेंट विधायक.
मतलब जो दिख रहा है, वो हुआ नहीं और जो हुआ है वो दिख नहीं रहा था.
बीजेपी ने नीतीश के सामने एक और एक्सपेरिमेंट किया, वो है शाहनवाज हुसैन. बीजेपी की तरफ से ये पहली बार है जब किसी मुस्लिम या अल्पसंख्यक समुदाय के नेता को मंत्री बनाया गया है. बीजेपी ने सैयद शाहनवाज हुसैन को विधान परिषद के रास्ते बिहार की राजनीति में एंट्री कराई फिर नीतीश सरकार के मंत्रीमंडल में.
अब 'नीतीश सबके हैं', कहने वाली पार्टी JDU कहां पीछे रहने वाली थी, नीतीश कुमार की पार्टी से एक भी मुस्लिम विधायक चुनकर नहीं आए, लेकिन नीतीश ने बीएसपी के एकलौते विधायक और वो भी मुसलमान को अपने पाले में कर लिया. नीतीश ने जमा खान को अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय मिला है. मतलब यहां भी नीतीश बीजेपी के संदेश पर अपना संदेश दे रहे हैं.
वहीं बीजेपी के पास वित्त, वाणिज्य कर, नगर विकास एवं आवास, स्वास्थ्य, कृषि विभाग, राजस्व एवं भूमि सुधार, उद्योग मंत्रालय है.
शाहनवाज हुसैन को उद्योग मंत्री बनाया गया है. वही उद्दोग जिसे लेकर बिहार के पूर्व सीएम और बीजेपी के राज्यसभा से सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि बिहार में समुंद्र नहीं है इसलिए उद्दोग लगना मुश्किल हैं. साथ ही बिहार के हेल्थ सिस्टम पर चमकी बुखार से लेकर कोरोना के दौरान सवाल उठते रहे हैं. ये दोनों ही विभाग बीजेपी के कोटे में आया है.
बीजेपी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने फॉर्मूले पर पूरी तरह राजी नहीं करा पाई. बिहार में बीजेपी के जानकार बताते हैं कि बीजेपी का फॉर्मूला था कि सीटों की संख्या के आधार पर कैबिनेट में भी बंटवारा हो, मतलब बीजेपी के 74 विधायक और नीतीश के सिर्फ 43 को ही आधार बनाया जाए. लेकिन जेडीयू 50-50 फार्मूले पर अडिग रही. जिस वजह से कैबिनेट विस्तार में करीब दो महीने की देरी हुई.
पटना के रहने वाले एक अखबार के सीनियर पत्रकार बताते हैं, 'बीजेपी नीतीश कुमार को नाखुश नहीं कर सकती है. नीतीश के पास आरजेडी से मिलने का ऑप्शन भी है और बीजेपी के साथ भी निभा सकती है, लेकिन बीजेपी के पास नीतीश के सिवा कोई ऑप्शन नहीं है. इसलिए बीजेपी ज्यादा सीट लाकर भी नीतीश के सामने जूनियर ही रहेगी.'
कुल मिलाकर नीतीश संख्या नहीं बल्कि स्ट्रेटेजी से सरकार चलाते आए हैं. इसलिए बीजेपी बड़ा भाई कहलाकर भी नीतीश के सामने बैकफुट पर है.
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