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मोदी के लेफ्ट-TMC 'मैच फिक्सिंग' के इशारे के पीछे है एंटी ममता वोट

तृणमूल कांग्रेस भी ठीक इसी रणनीति पर काम कर रही है लेकिन वो बीजेपी की तरह जोर नहीं लगा रही हैं

इशाद्रिता लाहिड़ी
पॉलिटिक्स
Published:
पश्चिम बंगाल में कुछ हफ्तों बाद चुनाव होने वाले हैं
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पश्चिम बंगाल में कुछ हफ्तों बाद चुनाव होने वाले हैं
(Photo: Quint Hindi)

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पश्चिम बंगाल में आने वाले कुछ हफ्तों बाद चुनाव होने वाले हैं और राज्य में सियासी सरगर्मी बढ़ती जा रही है. 7 फरवरी को भारतीय जनता पार्टी ने बंगाल में रैली की और खुद प्रधानमंत्री ने जनता को संबोधित किया. पीएम मोदी ने अपने भाषण के दौरान कई सारे खेल से जुड़ी शब्दावली के जरिए टीएमसी और ममता सरकार पर तंज कसे. पीएम मोदी के भाषण से कई सारे राजनीतिक संकेत भी मिलते हैं.

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए पीएम मोदी ने कहा कि जिस तरह से फुटबॉल में बहुत ज्यादा फाउल करने पर 'रेड कार्ड' दिखाया जाता है, इसी तरह ममता बनर्जी को 'राम कार्ड' दिखाया जाएगा.

पीएम मोदी ने भाषण के दौरान दावा किया कि टीएमसी, कांग्रेस और लेफ्ट के बीच 'मैच फिक्सिंग' चल रही है. इस आरोप के बाद से राज्य की सियासत में खलबली मच गई है. पीएम मोदी ने कहा-

बंगाल में हमारी लड़ाई टीएमसी के साथ तो है ही लेकिन उनके छुपे हुए दोस्तों के साथ भी है. आपने खेल में मैच फिक्सिंग के बारे में सुना होगा. टीएमसी भी कांग्रेस और लेफ्ट के साथ मिलकर मैच फिक्सिंग कर रही है. वो दिल्ली में दरवाजे के पीछे मिलते हैं और योजनाएं बनाते हैं.
पीएम मोदी

पश्चिम बंगाल राज्य के विधानसभा चुनाव में पहली ही चुनावी रैली कर रहे पीएम मोदी ने ये दिलचस्प दांव क्यों खेला है, अगर ये समझना है तो आपको राज्य के पिछले 4 चुनावों में पार्टियों का वोट शेयर देखना होगा. हम आपके लिए 2011, 2016 के विधानसभा चुनावों और 2014, 2019 के लोकसभा चुनाव का विश्लेषण करते हैं-

'एंटी ममता वोट' का है सारा खेल

2011 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में टीएमसी और कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ था, इसी के बाद बंगाल में लेफ्ट का 34 साल पुराना किला टूट गया था. चुनाव में टीएमसी को 39 फीसदी वोट मिले थे, वहीं कांग्रेस को भी 9 फीसदी के करीब वोट मिले थे. लेकिन दूसरी तरफ लेफ्ट के पास करीब 41 फीसदी का वोट शेयर था. तब 2011 में बीजेपी राज्य में न के बराबर थी और उसे करीब 4 फीसदी वोट मिले थे.

2014 के लोकसभा चुनाव में भयानक मोदी लहर के बावजूद टीएमसी का वोट शेयर करीब 1 परसेंट बढ़ गया. राज्य में कांग्रेस का वोट शेयर भी बढ़कर करीब साढ़े 9 फीसदी हो गया. लेकिन लेफ्ट और बीजेपी के वोट शेयर में भारी फर्क देखने को मिला. बीजेपी को 17 फीसदी वोट मिले तो लेफ्ट का वोट गिरकर 23 फीसदी पर आ गया.

साफ है कि 2011 के मुकाबले 2014 के चुनाव में बीजेपी को 13 फीसदी वोटों का फायदा हुआ. वहीं लेफ्ट को करीब 8 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ. साफ है कि बीजेपी को बढ़त लेफ्ट के गिरते हुए वोट शेयर से मिली.
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2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर करीब 7 परसेंटेज पॉइंट गिरकर 10 परसेंट पर आ गया, वहीं टीएमसी का वोट शेयर करीब 5 परसेंट बढ़ा. कांग्रेस और लेफ्ट दोनों ने राज्य में मिलकर चुनाव लड़ा और दोनों को क्रमशः 12 और 36 फीसदी वोट मिले. दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस और टीएमसी दोनों ने अपने लोकसभा चुनाव से बेहतर प्रदर्शन किया.

लेफ्ट के वोट शेयर में हल्का सा इजाफा हुआ तो वहीं बीजेपी का वोट शेयर थोड़ा सा गिरा. नतीजों से ये संकेत मिला कि राज्य विपक्ष में मोदी की बजाय लेफ्ट के विपक्ष के रूप में देखना चाहता है.

लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव नतीजों ने ये साबित कर दिया कि बीजेपी बंगाल की एक बड़ी शक्ति बन चुकी है. पिछले सारे आंकड़ों को पीछे छोड़ते हुए बीजेपी ने राज्य में करीब 41 परसेंट वोट हासिल किए. वहीं टीएमसी को थोड़े से ज्यादा करीब 43 परसेंट वोट ही मिले. कांग्रेस, लेफ्ट ने एक बार फिर बहुत बुरा प्रदर्शन किया.

यहां भी आंकड़ों में साफ दिखा कि कांग्रेस और लेफ्ट का वोट शेयर बीजेपी को ट्रांसफर हुआ है. यहां पर बीजेपी साफतौर पर बंगाल में लेफ्ट-कांग्रेस के मुकाबले एक बेहतर विपक्ष के रूप में उभरी.

लेफ्ट-कांग्रेस-टीएमसी के साथ आने से बीजेपी को फायदा क्यों होगा?

अब 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की कोशिश होगी कि एंटी ममता वोट को एकजुट किया जाए. बीजेपी ये बताना चाहती है कि राज्य में त्रिकोणीय चुनाव होने की बजाय, लेफ्ट+टीएमसी बनाम बीजेपी हो रहा है, इससे बीजेपी मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर खुद को स्थापित करना चाहती है.

तृणमूल कांग्रेस भी ठीक इसी रणनीति पर काम कर रही है लेकिन वो बीजेपी की तरह जोर नहीं लगा रही हैं. ममता बनर्जी ने कई सारी रैलियों में 'राम-बाम' के गठजोड़ का जिक्र किया है. ममता का इशारा लेफ्ट और बीजेपी पर है. इससे भी टीएमसी की कोशिश है कि वो बीजेपी+लेफ्ट के खिलाफ टीएमसी की लड़ाई दिखा सके.

राजनीतिक विश्लेषक बिश्वनाथ चक्रवर्ती बताते हैं कि 'अगर बीजेपी को ये विधानसभा चुनाव जीतना है तो बीजेपी को टीएमसी के वोट शेयर में सेंध लगानी होगी और साथ ही 2019 के चुनाव के अपने वोट शेयर को बरकरार रखना होगा. इसलिए अब पीएम मोदी के रणनीति होगी कि ऐसी छवि बनाई जाए कि टीएमसी और लेफ्ट की आपसी सांठ-गांठ है. तो इससे बीजेपी मुख्य विपक्षी पार्टी दिखेगी और बीजेपी को फायदा हो सकता है.'

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