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केंद्र सरकार ने रविवार को 13 राज्यों के राज्यपाल बदल दिए. इसमें फागू चौहान का भी नाम शामिल है. वो अभी तक बिहार (Bihar) के राज्यपाल थे और उनका ट्रांसफर मेघालय कर दिया गया. चौहान की जगह अब तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को बिहार का नया गवर्नर बनाया गया है.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को हिमाचल से बिहार भेजकर उनका प्रमोशन किया गया है तो वहीं, फागू चौहान को मेघालय जैसे छोटे प्रदेश की जिम्मेदारी तक देकर डिमोट किया गया है. अब सवाल है कि इसके पीछे की वजह क्या है?
फागू चौहान को 29 जुलाई, 2019 को बिहार का राज्यपाल बनाया गया था. वो 2.7 साल तक बिहार के गवर्नर रहे. राज्यपाल बनने से पहले तक वो उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की घोसी सीट से लगातार छह बार विधायक रहे. उनकी पहचान पूर्वी यूपी में बीजेपी के पिछड़े वर्ग के बड़े नेता के तौर पर होती थी. बिहार का जब उनको राज्यपाल बनाया गया था तो उस वक्त प्रदेश में NDA की सरकार थी.
बीजेपी फागू चौहान को गवर्नर बनाकर बिहार में पिछड़ों को अपने साथ जोड़ना चाहती थी. क्योंकि एक साल बाद राज्य विधानसभा के चुनाव होने थे, ऐसे में पार्टी ने बिहार में जातीय समीकरण को देखते हुए चौहान को वहां भेजा था. दूसरा फागू चौहान की बेदाग छवि भी अहम थी.
फागू चौहान को जिस मकसद से बिहार भेजा गया था, वो उसको पूरा नहीं कर पा रहे थे और उल्टा विवादों में घिर गए थे. वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र बताते हैं कि फागू चौहान को बिहार का राज्यपाल इसलिए बनाया था ताकि वो अति पिछड़ी जातियों को बीजेपी के लिए लामबंद कर पाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उनके कार्यकाल में बहुत सारी यूनिवर्सिटी (मगध, दरंभगा,भागलपुर और मुजफ्फरपुर) में गड़बड़ी हुई. उन्होंने कई यूनिवर्सिटी में अपने पसंद के लोगों को VC बनाया, जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और वो जेल गए.
पुष्यमित्र कहते हैं कि बिहार में महागठबंधन की सरकार आने के बाद से बीजेपी को ऐसे राज्यपाल की जरूरत थी जो सरकार को कठघरे में खड़ा कर पाए, पर फागू चौहान ऐसा नहीं कर सकते हैं क्योंकि खुद उन पर सवाल उठ रहे थे.
उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार का कद काफी मजबूत है और बीजेपी उनको चारों तरफ से घेरना चाहती है. पार्टी जानती थी कि ये तभी संभव है जब एक निर्विवाद व्यक्ति को राज्यपाल बनाया जाए, जिसमें राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर फिट बैठते हैं.
दूसरा, नए राज्यपाल गोवा से आते हैं और बिहार के प्रभारी विनोद तावड़े महाराष्ट्र से हैं. ऐसे में दोनों का तालमेल अच्छा रहेगा. इसके अलावा राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर का राजनीतिक ट्रैक रिकॉर्ड बहुत शानदार रहा है. गोवा में मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर के निधन के बाद आर्लेकर सीएम बनने की रेस में भी थे. इसके अलावा राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर RSS के करीबी माने जाते हैं.
इस पूरे मसले पर पटना यूनिवर्सिटी के पॉलिटिकल साइंस विभाग के प्रोफेसर राकेश रंजन का मानना है कि बिहार में राज्यपाल बदलने से बहुत प्रभाव नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा कि बिहार में कास्ट पॉलिटिक्स हावी है लेकिन बीजेपी के पास सभी जातीय के नेता हैं और उनकी जमीन पर पकड़ है. नीतीश कुमार से अलग होने के बाद बिहार में बीजेपी मजबूत ही हुई है और अब उसके पास खुला मैदान है, जहां वो मजबूती से बैटिंग कर सकती है. उन्होंने कहा कि जेडीयू से जो भी वोट छटकेगा वो बीजेपी को ही मिलेगा.
वहीं, नाम न छपने की शर्त पर बीजेपी के एक नेता ने बताया कि फागू चौहान पर यूनिवर्सिटी में घोटाले का आरोप है जिससे पार्टी की छवि खराब हो रही थी. नए राज्यपाल पिछड़ी जातीय से आते हैं और निर्वाद होने के साथ उनका लंबा राजनीतिक अनुभव हैं. बिहार में निर्वाद व्यक्ति की जरूरत थी जो महागठबंधन सरकार को काउंटर कर सके.
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Published: 15 Feb 2023,07:20 AM IST