Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019‘सृजन’ पर बढ़ा हंगामा, 10 फैक्ट के साथ समझें घोटाले का पूरा खेल

‘सृजन’ पर बढ़ा हंगामा, 10 फैक्ट के साथ समझें घोटाले का पूरा खेल

बैंक के तौर पर आॅथोराइज्ड नहीं होने के बावजूद ये संस्था इस काम को किसकी इजाजत से कर रही थी?

कौशिकी कश्यप
भारत
Updated:
बिहार का सृजन घोटाला 700 करोड़ का है, जो भागलपुर में सृजन नाम के एक एनजीओ से जुड़ा है
i
बिहार का सृजन घोटाला 700 करोड़ का है, जो भागलपुर में सृजन नाम के एक एनजीओ से जुड़ा है
(Photo: PTI)

advertisement

बिहार विधानसभा के मानसून सत्र के तीसरे दिन भी सृजन घोटाले को लेकर आरजेडी ने जमकर हंगामा किया. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बिहार विधानसभा परिसर में ही धरने पर बैठ गए. इससे पहले सदन में जोरदार हंगामा हुआ. हंगामा के कारण बिहार विधानसभा की कार्यवाही स्थगित कर दी गई.

तेजस्वी यादव ने सृजन घोटाले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का इस्तीफा मांगा है. उनकी पार्टी पिछले 3 दिनों से सीएम के इस्तीफे की मांग को लेकर हंगामा कर रही है.

आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव ने ट्वीट कर सृजन घोटाला मामले में नीतीश कुमार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं. लालू ने कहा कि पता चला है कि अब तक घोटाले की सीबीआइ जांच शुरू नहीं की गई है, एेसा इसलिए किया गया है, क्योंकि नीतीश अभी सृजन घोटाले के सबूत नष्ट करवा रहा है.

इस घोटाले ने बिहार में विपक्ष की राजनीति को धार दे दी है. जानिए इस चर्चित सृजन घोटाले के खेल को 10 प्वाइंट में समझें-

1. बिहार का 700 करोड़ का सृजन घोटाला. घोटाला जुड़ा है भागलपुर में सृजन नाम के एक एनजीओ से. संस्था का पूरा नाम है सृजन महिला विकास सहयोग समिति. इसकी शुरुआत मनोरमा देवी ने साल 1993-94 में की थी.

2. दो सिलाई मशीन, 1 कमरे से शुरू हुए काम ने 20 साल में 6000 सदस्यों और 60 स्टाफ वाले को-आॅपरेटिव सोसायटी का रूप ले लिया. साल 1996 में सहकारिता विभाग में को-ऑपरेटिव सोसायटी के रूप में सृजन संस्था को मान्यता मिल गई.

3. इस घोटाले के सिलसिले में दस एफआईआर हुई हैं, जिनमें से नौ एफआईआर बिहार के भागलपुर में और एक सहरसा जिले में दर्ज हुई है. मामले में 12 लोगों की गिरफ्तारी हुई और उनके अकाउंट्स से लेन-देन पर रोक लगा दी गई.

4. एक आरोपी महेश मण्डल की जेल में मौत के बाद इस घोटाले को दूसरा व्यापम घोटाला भी बताया जा रहा है. हालांकि राज्य सरकार ने 18 अगस्त को इस घोटाले की सीबीआई जांच कराने का फैसला लिया.

5. बिहार के भागलपुर से चलने वाले इस पूरे घोटाले की मास्टरमाइंड मनोरमा देवी थीं, जिनका इस साल फरवरी में निधन हो गया. मनोरमा देवी की मौत के बाद उनकी बहू प्रिया और बेटे अमित कुमार ने इस घोटाले को चालू रखा. अमित भागलपुर में एक फाइनेंस कोचिंग सेंटर के मालिक हैं. फिलहाल, पुलिस इनकी तलाश में जुटी है.

6. बिहार में जेडीयू-बीजेपी की सरकार में साल 2007-2008 में भागलपुर के सबौर में सृजन को-ऑपरेटिव बैंक खुल जाने के बाद घोटाले का खेल शुरू हुआ. भागलपुर ट्रेजरी के पैसे को सृजन को-ऑपरेटिव बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करने और फिर वहां से सरकारी पैसे को बाजार में लगाया जाने लगा.

7. जांच में ये बात सामने आई कि सरकार से मिली राशि को सरकारी बैंक में जमा करने के बाद तत्काल अवैध रूप से या तो जाली दस्तखत या बैंकिंग सिस्टम का दुरुपयोग कर ट्रांसफर कर लिया जाता था.

घोटाले के लिए दो तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा था-

  1. फर्जी थर्ड पार्टी डिपॉजिट के जरिए गवर्नमेंट फंड सीधे सृजन के अकाउंट में जमा कराए जाते थे.
  2. फर्जी सिग्नेचर के जरिए डुप्लीकेट चेक जमा कराए जाते थे.
सृजन घोटाले में गिरफ्तार आरोपी महेश मंडल की मौत(फोटो: Twitter)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

8. इस सरकारी राशि के अवैध ट्रांसफर में सृजन की सचिव मनोरमा देवी के अलावा, सरकारी पदाधिकारी और कर्मचारी और दो बैंको- बैंक ऑफ बडौदा और इंडियन बैंक के अधिकारी और उनके कर्मचारी शामिल होते थे.

मृत आरोपी महेश मंडल बैंक, सरकार और सृजन के बीच कड़ी के रूप में काम करने वालों में से एक था. उसका काम मनोरमा देवी को ओरिजनल बैंक स्टेटमेंट मुहैया कराना होता था. ताकि जब भी किसी लाभार्थी को चेक से सरकारी राशि का भुगतान किया जाए तो उसके पहले ही अपेक्षित राशि सृजन की ओर से सरकारी अकाउंट में जमा करा दी जाए.

जिला प्रशासन से संबंधित बैंक अकाउंट्स के पासबुक में एंट्री भी फर्जी तरीके से की जाती थी. अकाउंट स्टेटमेंट को बैंकिंग सॉफ्टवेयर से तैयार न कर फर्जी तरीके से तैयार किया जाता था. इस तरह डिपार्टमेंटल ऑडिट में भी अवैध निकासी पकड़ में नहीं आ पाती थी.

9. इस मामले में राशि का गबन न करके संगठित तरीके से सरकारी रकम मनोरमा देवी के एनजीओ सृजन के अकाउंट में भेजी जाती थी और फिर इस पैसे का इस्तेमाल निजी फायदे के लिए किया जाता था. मनोरमा देवी उन पैसों का इस्तेमाल मार्केट में लोगों को ऊंची ब्याज दर पर देने के लिए करती थीं या अपने मनपसंद लोगों को जमीन, व्यापार या बाकी धंधों में निवेश के लिए देती थी. स्वयं सहायता समूह के नाम पर कई फर्जी ग्रुप बनाकर उनके खाते खोले गए. इन खातों को जरिया बनाकर नेताओं और नौकरशाहों का कालाधन सफेद किया जाने लगा. संस्था के जरिए पब्लिक फंड को प्राइवेट अकाउंट में ट्रांसफर करने का खेल चल रहा था.

सृजन संस्था के पास बैंक चलाने का अधिकार नहीं था, क्योंकि ऐसा करने के लिए आरबीआई की ओर से लाइसेंस और इजाजत नहीं दी गई थी. को आॅपरेटिव सोसायटी कानून साफ तौर पर कहता है कि इनके जरिए अधिकतम 50,000 रुपये का लेन-देन किया जा सकता है. सवाल यहीं उठता है- बैंक के तौर पर आॅथोराइज्ड नहीं होने के बावजूद ये संस्था इस काम को किसकी इजाजत से कर रही थी?

10. सरकार की नाक के नीचे इतना बड़ा घोटाला काफी दिन से चल रहा था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मनोरमा देवी के कुछ राजनेताओं से करीबी संबंध रहे हैं जिनमें बीजेपी के अब निलंबित नेता विपिन शर्मा, पूर्व सांसद शाहनवाज हुसैन और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह शामिल हैं. इन लोगों की नजदीकी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ये उनके आधिकारिक कार्यक्रमों के अलावा निजी कार्यक्रम में नियमित रूप से शामिल होते थे. मनोरमा देवी की बहू प्रिया झारखण्ड कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अनादि ब्रह्मा की बेटी हैं जो पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय के करीबी माने जाते हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 23 Aug 2017,04:39 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT