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Bilkis Bano: "CBI ने विरोध किया- सरकार की सहमति से छूटे थे दोषी", SC में हलफनामा

Gujarat Government ने कहा, जेल में सभी 11 दोषियों का व्यवहार अच्छा पाया गया था.

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>Bilkis Bano: "CBI ने विरोध किया- सरकार की सहमति से छूटे थे दोषी", SC में हलफनामा</p></div>
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Bilkis Bano: "CBI ने विरोध किया- सरकार की सहमति से छूटे थे दोषी", SC में हलफनामा

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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बिलकिस बानो गैंग रेप (Bilkis Bano Case) मामले में गुजरात सरकार ने सोमवार, 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में जवाब दाखिल किया है. राज्य सरकार ने कहा कि इस मामले में सभी 11 दोषियों को रिहा करने का फैसला किया गया क्योंकि वो 14 सालों से अधिक दिनों से जेल में बंद थे और इतने दिनों में उनका व्यवहार अच्छा पाया गया और केंद्र सरकार से भी इसकी सहमति मिली थी.

रिहाई पर CBI ने किया था विरोध

गुजरात सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि 1992 की नीति के मुताबिक जेल के महानिरीक्षक को एक दोषी की जल्द रिहाई के लिए जिला पुलिस अधिकारी, जिला मजिस्ट्रेट, जेल अधीक्षक और सलाहकार बोर्ड समिति से राय लेना जरूरी है. इसके बाद जेल के महानिरीक्षक को नॉमिनल रोल की कॉपी और फैसले की कॉपी के साथ अपनी राय देने और सरकार को सिफारिश भेजना होता है.

किसने करवाई दोषियों की रिहाई?

राज्य सरकार ने कहा कि रिहाई से पहले उसने कई अधिकारियों की राय मांगी थी. पुलिस अधीक्षक, सीबीआई, स्पेशल क्राइम ब्रांच, स्पेशल सिविल जज (सीबीआई), सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट- ग्रेटर बॉम्बे, पुलिस अधीक्षक- दाहोद, कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट- दाहोद, जेल अधीक्षक- गोधरा उप-जेल, जेल सलाहकार समिति और अतिरिक्त महानिदेशक कारागार- अहमदाबाद से इस पर राय मांगी गई थी.

गुजरात सरकार ने बताया कि पुलिस अधीक्षक और सीबीआई को छोड़कर सभी अधिकारियों ने दोषियों की रिहाई करने की सिफारिश की थी. इसके अलावा राज्य ने केंद्र सरकार को अपनी सिफारिश सौंपी और इस पर केंद्र ने सहमति दी थी.

राज्य सरकार ने यह भी कहा कि पुलिस अधीक्षक, सीबीआई, मुंबई की स्पेशल क्राइम ब्रांच और स्पेशल सिविल जज (सीबीआई), सिटी सिविल और सेशन कोर्ट, ग्रेटर बॉम्बे ने पिछले साल मार्च में कैदियों की रिहाई का विरोध किया था.

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याचिका के जवाब में गुजरात सरकार ने दिया हलफनामा

सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार द्वारा ये हलफनामा उस याचिका के जवाब में दायर किया गया है, जिसमें CPM नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल और प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा ने 11 रेपिस्टों को रिहा करने के फैसले को चुनौती दी है. राज्य सरकार ने कहा कि इन याचिकाओं में कोई दम नहीं है और न ही कानून के मुताबिक इस तरह की याचिका दायर की जा सकती है, क्योंकि याचिकाकर्ता मामले के पीड़ित नही हैं और वो तीसरा पक्ष अजनबी हैं.

"फैसले से सरकार ने दिया है संदेश"

एडवोकेट और सोशल एक्टिविस्ट वृंदा ग्रोवर ने क्विंट से बात करते हुए कहा कि गुजरात सरकार का बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के 13 सदस्यों की हत्या के दोषी 11 लोगों को रिहा करने का फैसला शक्ति के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है. इस फैसले ने भारत की महिलाओं, विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं को निराश किया है.

इस फैसले के साथ सरकार ने एक संदेश दिया है कि राज्य में मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ किए गए अपराधों के लिए खड़ा नहीं होगा.

संदेश यह है कि यदि यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और सामूहिक बलात्कार की टारगेट मुस्लिम महिलाएं हैं,  तो ऐसे अपराध दंडमुक्त हैं और राज्य उन महिलाओं के लिए खड़ा नहीं होगा.
वृंदा ग्रोवर, एडवोकेट और सोशल एक्टिविस्ट

उन्होंने आगे सवाल करते हुए कहा कि क्या मौजूदा सरकार का एक भी ऐसा बयान आया, जिसमें दोषी ठहराए गए लोगों का स्वागत करने के तरीके की निंदा की गई हो? यह एक ऐसी सरकार है जो सोशल मीडिया पर जरूरत से ज्यादा बोलती है.

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