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जमात के लिए 29 विदेशियों के खिलाफ FIR रद्द करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि इन सभी को ‘बलि का बकरा’ बनाया गया है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कड़ा रुख दिखाते हुए कहा कि महामारी के समय सरकार बलि का बकरा ढूंढती है और जमात में शामिल इन विदेशी लोगों के साथ भी ऐसा ही हुआ है.
मार्च में निजामुद्दीन मरकज में हुए कार्यक्रम में शामिल सैकड़ों लोगों के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद बड़ा विवाद खड़ा हो गया था.
बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच के जस्टिस टीवी नलवड़े और जस्टिस एमजी सेवलिकर ने तीन अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये कड़ी प्रतिक्रिया दी. Live Law के मुताबिक, कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा:
कोर्ट ने कहा कि अपडेटेड वीजा मैन्युअल में भी विदेशी टूरिस्टों के धार्मिक स्थानों पर जाने और धार्मिक गतिविधियों में शामिल होने को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है. कोर्ट ने कहा:
तंजानिया, घाना, इंडोनेशिया और अलग-अलग देशों के याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वो सरकार की तरफ से जारी वैध वीजा पर भारत आए थे. एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग और कोरोना वायरस टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद ही उन्हें एयरपोर्ट छोड़ने की अनुमति दी गई.
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने अहमदनगर जिले में आने के बाद इसकी जानकारी डीएसपी को दी थी. कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण मूवमेंट बंद हो जाने के बाद मस्जिद में उन्हें रहने की जगह दी गई. याचिका में कहा गया है कि मरकज में भी सभी ने फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन किया.
दूसरी ओर, अहमदनगर डीएसपी ने जवाब दाखिल किया, जिसमें उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता इस्लामिक धार्मिक जगहों पर जाते पाए गए और इसलिए उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया.
कोर्ट ने इस पूरे मामले पर मीडिया की कवरेज की भी आलोचना की और इसे प्रोपगेंडा बताया. कोर्ट ने कहा कि दिल्ली मरकज में आने वाले विदेशियों के खिलाफ प्रिंट और इलेकट्रॉनिक मीडिया में बड़ा प्रोपगेंडा चलाया गया और इस तरह की तस्वीर पेश करने की कोशिश की गई कि भारत में COVID-19 वायरस फैलाने के पीछे इन विदेशियों का हाथ है.
‘अतिथि देवो भव:’ की परंपरा को याद करते हुए जस्टिस नलवड़े ने कहा, “मामले की परिस्थितियां सवाल खड़ा करती हैं कि हम वाकई अपनी महान परंपरा और संस्कृति के मुताबिक काम कर रहे हैं या नहीं. COVID-19 से पैदा हुई स्थिति के दौरान, हमें अधिक सहिष्णुता दिखाने और अपने मेहमानों के प्रति अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है.”
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