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दिल्ली पुलिस (Delhi Police) ने बीजेपी सांसद और WFI के पूर्व अध्यक्ष प्रमुख बृजभूषण सिंह (Brijbhushan Sharan Singh) के खिलाफ 1500 पन्नों की चार्जशीट दायर की है. पुलिस के द्वारा बृजभूषण के होमटाउन में घूमकर करीब 200 लोगों से पूछताछ की गई और उनके बयान दर्ज किए गए. इसके अलावा 70-80 गवाहों से पूछताछ की गई.
इसका मतलब यह है कि दिल्ली पुलिस की जांच में कथित तौर पर पता चलता है कि बृजभूषण सिंह की वजह से एक महिला की इज्जत पर आंच आई, उन्होंने अश्लील टिप्पणी की, किसी का पीछा किया और आपराधिक धमकी भी दी. लेकिन उसे अभी तक बृजभूषण को गिरफ्तार नहीं किया गया है.
TOI की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली पुलिस ने पुष्टिकारक साक्ष्य की कमी का हवाला देते हुए बृजभूषण के खिलाफ POCSO केस रद्द करने की रिपोर्ट फाइल की है. नाबालिग के पिता ने कथित तौर पर पुलिस को दिए बयान से पलटते हुए दावा किया था कि उन्होंने बीजेपी सांसद के खिलाफ "झूठी शिकायत" दर्ज की थी.
बृजभूषण के ऊपर कथित तौर पर जिन अपराधों का आरोप लगाया गया है, उनमें से किसी में भी पांच साल से ज्यादा की सजा नही मिलती है.
TOI की रिपोर्ट के मुताबिक मामले में एक (अनाम) इनवेस्टिगेटर ने कहा-
इनवेस्टिगेटर ने कथित तौर पर कहा कि आरोपी जांच में शामिल हुए और उन्होंने सबूतों के साथ सहयोग किया.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने द क्विंट के साथ बातचीत में कहा
जस्टिस माथुर ने द क्विंट के साथ कुछ पहले हुई बातचीत में यह भी बताया था कि संज्ञेय अपराधों के मामलों में पुलिस उचित जांच करने, अपराध को आगे बढ़ने से रोकने, गवाही और सबूतों से छेड़छाड़ को रोकने के लिए आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है.
यह देखते हुए कि POCSO एक्ट के नियम सामान्य दंड संहिता की तुलना में कहीं ज्यादा कठोर हैं, पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज अंजना प्रकाश ने कहा कि
The Print की रिपोर्ट के मुताबिक 5 जून की एक रिपोर्ट में नाबालिग के पिता ने कहा था कि
8 जून को आई पीटीआई की एक रिपोर्ट में कहा गया कि नाबालिग के पिता ने दावा किया था कि उन्होंने बृजभूषण सिंह के खिलाफ "झूठी शिकायत" दर्ज की थी. उन्होंने कहा कि उनकी वास्तविक शिकायत, एशियन U17 चैंपियनशिप के ट्रायल के वक्त नाबालिग के साथ हुए भेदभाव या अन्याय से संबंधित थी.
हालांकि, उन्होंने मीडिया आउटलेट के स्पेसिफिक सवाल का जवाब नहीं दिया: कि क्या उन्हें बृज भूषण द्वारा धमकी दी गई थी या कथित रूप से फर्जी शिकायत दर्ज करने के लिए अन्य प्रदर्शनकारियों द्वारा दबाव डाला गया था? उन्होंने केवल इतना कहा कि मैं पहलवानों के प्रोटेस्ट का समर्थन करता हूं.
उनका इस तरह का बयान उस समय आया जब मीडिया में कई ऐसी रिपोर्टें आ रही थी, जिसमें तरह-तरह की बातें कही जा रही थीं.
जस्टिस माथुर ने कहा कि अगर अदालत यह मानती है कि जिन परिस्थितियों में पहले बयान को बदला गया है वे संदिग्ध हैं, तो वह फिर से जांच करने का निर्देश जारी कर सकती है. उनके मुताबिक चार्जशीट की जांच करने के लिए कोर्ट के पास पर्याप्त शक्ति और विवेक है.
जस्टिस माथुर के मुताबिक इसमें तीन संभावित स्थिति सामने आती है...
अगर अदालत को पता चलता है कि हां, POCSO एक्ट के तहत आरोप बनता है, तो वह POCSO अधिनियम के तहत आरोप तय कर सकती है.
अगर अदालत को लगता है कि मौजूद सबूतों को देखने के बाद कोई आरोप नहीं बनता है तो वह ऐसा कह सकती है.
अगर अदालत को लगता है कि आगे की जांच की जरूरत है, तो वो जांच एजेंसी को मामले में आगे की जांच करने का निर्देश दे सकती है.
जस्टिस माथुर के मुताबिक कोर्ट को सभी सबूतों की सही तरह से जांच करनी चाहिए और उसके आधार पर आरोप तय किए जाने चाहिए. उन्होंने कहा कि अदालत को यह भी देखना चाहिए कि कहीं किसी सबूत के साथ छेड़छाड़ तो नहीं की गई है.
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