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सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के लापता जवान मिल गए हैं. भारत-बांग्लादेश सीमा के बेहरामपुर सेक्टर जम्मू के लिए निकली विशेष ट्रेन में बटालियन में से 9 जवान लापता हो गए थे. जीआरपी में इस बारे में एफआईआर दर्ज कराई गयी थी. इस खबर पर काफी हंगामा भी मचा,लेकिन अब उनके मिल जाने से अधिकारियों ने राहत की सांस ली है. दरअसल, इन जवानों के गायब होने और मिलने का किस्सा काफी रोचक है. आप भी इसे जानकर हैरान रह जाएंगे.
भारत-बांग्लादेश सीमा पर तैनात बीएसएफ की 83वीं बटालियन को बेहरामपुर सेक्टर से जम्मू जाने का आदेश जारी हुआ. इस आदेश के बाद पश्चिम बंगाल के कासिम बाजार रेलवे स्टेशन से जम्मू के लिए 25 जून को विशेष ट्रेन चली. ट्रेन संख्या 00315 में कुल 4 यूनिट ऑफिसर, 72 एसओ और 468 जवान यानी कुल मिला कर 545 लोग सवार थे.
जब यह विशेष ट्रेन मुगलसराय पहुंची तो कुल 9 जवान लापता मिले.उसके बाद मुगलसराय में इस बाबत एफआईआर दर्ज कराई गई. ऑफिसर इंचार्ज दिनेश कुमार ने धनबाद स्टेशन से जब ट्रेन चली तो जवानों की गिनती शुरू की. तो पता चला कि जवान वर्धमान और धनबाद रेलवे स्टेशन के बीच ही कहीं लापता हुए थे. उन्होंने इसकी सूचना बड़े अधिकारियों को दी और ट्रेन जब उत्तर प्रदेश के मुगलसराय स्टेशन पर पहुंची तो वहां जीआरपी में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करायी गयी.
मामला बीएसएफ का था इसलिए रेलवे पुलिस तुरंत हरकत में आ गयी. मुगलसराय रेलवे थाना के सब इंस्पेक्टर जेके यादव के मुताबिक, जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी सुराग मिलते चले गए. जब सभी 9 गायब जवानों के बारे में जानकारी मिल गयी तो जीआरपी के अधिकारियों और कर्मचारियों की जान में जान आयी. सभी जवान अपने-अपने घर में पाए गए. ये पूरा मसला बिना अधिकृत सूचना या छुट्टी लिये ट्रेनों से उतर कर घर जाने का था. उन सभी जवानों को तुरंत ट्रेन में आकर रिपोर्ट करने का आदेश दिया गया है.
दरअसल, विशेष ट्रेन जब कासिम बाजार रेलवे स्टेशन से जम्मू के लिए निकली तो उसमें सभी जवान थे. लेकिन जैसे-जैसे ट्रेन आगे बढ़ती गई जवान कम होते गए. सूत्रों के मुताबिक, जब भी कोई बटालियन निकलती है तो ऐसा अक्सर होता है. इसकी एक वजह ये है कि विशेष ट्रेन को यात्रा पूरी करने में आम ट्रेनों के मुकाबले तीन-चार गुना अधिक समय लगता है. मतलब अगर कोई यात्री ट्रेन कासिम बाजार स्टेशन से जम्मू पहुंचे में दो दिन का समय लेती है तो बटालियन को ले जाने वाले विशेष ट्रेन को 5-6 दिन लग जाते हैं. इन्हें जगह-जगह रोका जाता है और नियमित ट्रेनों-मालगाड़ियों के गुजरने के बाद ही रवाना किया जाता है. चूंकि यात्रा में बहुत समय लगता है कि इसलिए इनमें खाने-पीने-सोने की अस्थाई, मगर भरपूर इंतजाम होता है.
अमूमन ऐसी ट्रेनों में जो जवान सवार होते हैं, रास्ते में उनमें से कुछ का गांव-घर पड़ता है. जिनका गांव-घर रास्ते में पड़ता है वो अपने साथियों को बता कर वहां उतर जाते हैं और मोबाइल से उनके संपर्क में रहते हैं. दो-तीन दिन घर में बिता कर किसी दूसरी ट्रेन से गंतव्य के बीच अपनी बटालियन की विशेष ट्रेन को पकड़ लेते हैं. इस तरह जब स्पेशल ट्रेन गंतव्य पर पहुंचती है तो सभी जवान उसमें मौजूद होते हैं. जवानों की इस हरकत को रूट बंक का नाम दिया जाता है और सभी अधिकारी कर्मचारी इसके बारे में जानते हैं.
सूत्रों के मुताबिक, ऐसा अक्सर ही होता है. लेकिन चूंकि इस बार बटालियन जम्मू कश्मीर जारी रही थी और मीडिया को एफआईआर की जानकारी मिल गई तो हल्ला-हंगामा मच गया और जवानों की खोजबीन की औपचारिकता पूरी की गई. इन मामलों में बिरले ही सजा होती है क्योंकि इन पर सुनवाई बीएसएफ की अपनी अदालत में होती है. बीएसएफ की अदालतों में रूट बंक करने वाले जवानों को चेतावनी या फिर कोई मामूली सजा देकर छोड़ दिया जाता है.
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