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बजट 2023: ''जलवायु पर जरूरत से ज्यादा प्रतिबद्धता, लेकिन ये ठीक''- राघव बहल

द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल ने समझाया है कि भारत के लिए ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देने का महत्व क्या है?

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>Budget 2023: ग्रीन एनर्जी में बड़ा निवेश भारत के लिए सही या गलत?</p></div>
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Budget 2023: ग्रीन एनर्जी में बड़ा निवेश भारत के लिए सही या गलत?

(ग्राफिक- क्विंट हिंदी) 

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केंद्र सरकार ने बुधवार 1 फरवरी को केंद्रीय बजट 2023 में नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy)  को 35,000 करोड़ रुपये आवंटित किए. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट की सात प्राथमिकताओं में से एक 'हरित विकास' (Green Growth) को सर्वोपरी रखा है.

उन्होंने कहा कि ये सात सिद्धांत एक दूसरे से जुड़े हैं और अमृत काल के माध्यम से भारत का मार्गदर्शन करने वाले 'सप्तऋषि' के रूप में काम करेंगे. हरित विकास इन सात प्राथमिकताओं में 5वां है.

3 फरवरी को द क्विंट के 'डिकोडिंग बजट विद राघव बहल' के सेशन में द क्विंट के एडिटर इन चीफ राघव बहल ने समझाया है कि भारत के लिए ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देने का महत्व क्या है?

भारत ने अब तक क्या किया?  

ग्लोबल ग्रीन फ्रंट पर भारत कहां खड़ा है? बजट 2023 में रिन्यूएबल एनर्जी के लिए 35,000 करोड़ और नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को 97,000 करोड़ रुपए के आवंटन के क्या मायने हैं? इसका जवाब राघव बहल विस्तार से देते हुए कहते है कि,

"जब जलवायु के मुद्दों की बात आती है तो भारत ने जरूरत से ज्यादा प्रयास किया है. याद रखें कि भारत दुनिया में सबसे कम प्रति व्यक्ति प्रदूषक है."

हम जनसंख्या के मुताबिक एक तरह से पहले से ही दुनिया के सबसे हरे-भरे देश हैं. यह अवास्तविक लग सकता है, हमारे अपने आस-पास के प्रदूषण को देखते हुए, लेकिन सांख्यिकीय रूप से हम प्रति व्यक्ति के आधार पर 130 करोड़ लोग हैं, जो दुनिया के सबसे कम प्रदूषक वाले देशों में शमिल हैं.

हम अपने आर्थिक विकास के बहुत शुरुआती चरण में भी हैं. हमारी प्रति व्यक्ति आय बमुश्किल ढाई हजार डॉलर है, जबकि विकसित देश अमेरिका 60 हजार डॉलर, जापान 40-50 हजार डॉलर, यूरोप 40 हजार डॉलर, चीन 10 हजार डॉलर, ये सभी देश विकसित देश हैं और इन सभी देशों ने उस विकास बिंदु तक पहुंचने के लिए बहुत ज्यादा प्रदूषणकारी रास्ता अपनाया है.
राघव बहल
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पिछली और इस सरकार के दृष्टिकोण में क्या फर्क?

जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर इस सरकार और पिछली सरकारों के दृष्टिकोण का फर्क बताते हुए राघव बहल कहते हैं कि, "पिछली सरकारों का इन विकसित देशों को लेकर यह मानना था कि आप लोगों ने 100 साल तक दुनिया को प्रदूषित किया और विकास के इतने उच्च स्तर पर पहुंच गए. हम आपके विकास के स्तर का बमुश्किल 5-10 फीसदी पर हैं, फिर आप हम पर यह मानक क्यों थोप रहे हैं? जबकि हम पहले से ही प्रति व्यक्ति दुनिया में सबसे कम प्रदूषक हैं."

"अब आप या तो यह तर्क दे सकते हैं कि हम कब तक इतिहास की बुराइयों को ठीक करने की कोशिश करते रहेंगे. अगर पश्चिमी देशों को इस दुनिया को प्रदूषित करने और विकसित होने में 150 साल लिए हैं तो क्या हम भी इसी तरह का तर्क दें कि हम विकसित होने के लिए 100 साल तक प्रदूषण करते रहेंगे."

लेकिन, इसके उलट इस सरकार ने वैश्विक नेताओं के साथ मिलकर इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया कि नहीं, हम विकसित भी होंगे और प्रदूषण भी कंट्रोल करेंगे. इस मामले में भारत ने एक समझदार कदम उठाया है कि हम 'जैसे को तैसे' वाला काम नहीं करेंगे.

कार्बन न्यूट्रल के लिए जो बन पड़ेगा वो करेंगे. यह भारत की एक बड़ी कमिटमेंट है. भारत और अन्य देशों का ग्रीन हाइड्रोजन में बड़ा निवेश इसी की ओर एक कदम है. रिन्यूएबल, सोलर एनर्जी, ग्रीन हाइड्रोजन में निवेश इसी दिशा में उठाए जा रहे बेहतर कदम हैं. यह भारत के भविष्य, इंसानियत के लिए और दुनिया के लिए बेहतर और जरूरी कदम है. आप यह कह सकते हैं कि हम ज्यादा भुगतान कर रहें हैं, लेकिन शायद इसकी जरुरत है. यह किसी भी तरह से नेगेटिव नहीं है.

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