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"यह बजट महिलाओं, युवाओं और वंचित समुदायों के लिए एक 'अमृत काल' भविष्य देता है..." केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार, 1 फरवरी को अपने भाषण में कहा.
लेकिन, इस 'अमृत काल' में स्वास्थ्य कहां आता है?
"निश्चित रूप से केंद्रीय बजट से स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत उम्मीदें थीं," पब्लिक हेल्थ और पॉलिसी एक्सपर्ट, डॉ चंद्रकांत लहरिया फिट को बताते हैं. हालांकि, इसके बाद से विशेषज्ञों ने बजट के प्रति स्वास्थ्य के लिए आवंटन को लेकर अपनी निराशा व्यक्त की है.
इससे पहले कि हम इस बात पर चर्चा करें कि बजट में क्या कमी रह गई है, यहां पर स्वास्थ्य के संबंध में बजट 2023 में कही गई बातों का विवरण दिया गया है.
इस वर्ष स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के लिए कुल आवंटन रु 89,155 करोड़ है, जो पिछले साल के आवंटन, रु 86,200 करोड़, की तुलना में 0.34 प्रतिशत अधिक है.
इसमें रु 2980 करोड़ स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के लिए बजट अनुमान भी शामिल है - जो कि 2022-23 के संशोधित अनुमान 2775 करोड़ रुपये से थोड़ा अधिक है, लेकिन पिछले साल के 3,200 करोड़ रुपये के अनुमान से अभी भी कम है.
फिट से बात करते हुए स्वास्थ्य अर्थशास्त्री और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ, भुवनेश्वर (IIPHB) में एडिशनल प्रोफेसर डॉ सरित कुमार राउत ने कहा कि राष्ट्रीय डिजिटल मिशन में उच्च आवंटन एक अच्छा कदम है, "इससे इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड, रोगी के इतिहास और क्लिनिकल रिकॉर्ड को ट्रैक करने में मदद मिलेगी."
डॉ. लहरिया के अनुसार, 2047 तक सिकल सेल रोग और एनीमिया को खत्म करने के पहल की घोषणा अच्छी है, "लेकिन यह अभी बहुत दूर है".
"भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में अब इंटरवेंशन की आवश्यकता है," वह कहते हैं.
हिमांशु सिक्का, लीड - हेल्थ, न्यूट्रिशन एंड वॉश, आईपीई ग्लोबल (एक अंतरराष्ट्रीय विकास कन्सल्टन्सी फर्म), ने कहा, "महामारी के लिए तैयारी, एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टन्स (एएमआर), मानसिक स्वास्थ्य और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए जरूरी फोकस इस बजट में नहीं देखा गया है."
हालांकि, डॉ लहरिया के अनुसार, केंद्रीय बजट स्वास्थ्य इनिशिएटिव की घोषणा करने के बारे में नहीं है.
पैसों की कमी
विशेषज्ञ बताते हैं कि स्वास्थ्य क्षेत्र को आवंटित धनराशि 2023-24 के लिए केंद्र सरकार के कुल व्यय का सिर्फ 2% है.
डॉ. सरित कुमार राउत, एडिशनल प्रोफेसर, आईआईपीएचबी(IIPHB) बताते हैं, "हेल्थ रिसर्च के लिए आवंटन भी 2023-24 BE में 2022-23 BE की तुलना में 3200 करोड़ रुपये से घटाकर 2980 करोड़ रुपये कर दिया गया है."
डॉ. चंद्रकांत लहरिया के अनुसार, दो प्रमुख लक्ष्यों को पूरा करने के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए अधिक आवंटन महत्वपूर्ण है.
'महामारी के वर्षों' ने भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की कई कमजोरियों को सामने लाया और इन कमियों को पूरा केवल बेहतर वित्तीय आवंटन के माध्यम से किया जा सकता है.
विशेषज्ञ उन प्रमुख कार्यक्रमों की ओर भी इशारा करते हैं, जिनकी घोषणा पिछले साल के बजट में की गई थी, जिन्हें अभी भी अच्छी तरह से लागू करने की आवश्यकता है और उसके लिए धन की भी आवश्यकता है.
अधूरे पहल
हिमांशु सिक्का कहते हैं, ''इस बार, पिछले बजट में घोषित कुछ प्रमुख योजनाओं को तेजी से इम्प्लमेंट करने पर कम ध्यान दिया गया है.''
उदाहरण के लिए, आयुष्मान भारत के तहत योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन काफी हद तक स्थिर है. सिक्का कहते हैं, “यह चिंताजनक है क्योंकि पिछले वर्षों में भी वास्तविक व्यय बजटीय व्यय से काफी कम रहा है.”
जबकि पिछले साल के बजट में आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन के लिए आवंटन लगभग 4800 करोड़ रुपये था, इस बजट में इसे कम कर लगभग 2000 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
पब्लिक हेल्थ को झटका लग सकता है
"राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम है लेकिन केंद्र इस कार्यक्रम पर अधिक ध्यान नहीं देता है और इस वर्ष केंद्र का योगदान वास्तव में 2022-23 में 37800 करोड़ रुपये से घटकर 36785 करोड़ रुपये हो गया है," डॉ रवि दुग्गल, एक स्वतंत्र रिसर्चर और स्वास्थ्य कार्यकर्ता फिट को बताते हैं.
दूसरी ओर, उनका कहना है कि बजट में प्रस्तावित 'पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप को मजबूत करने के लिए' कार्यक्रम सार्वजनिक स्वास्थ्य को और कमजोर कर सकते हैं.
“PMJAY एक समस्याग्रस्त बजट आइटम है. इसे बड़ा आवंटन प्राप्त होता है, लेकिन खर्च आमतौर पर हर साल आवंटन का आधा होता है. उदाहरण के लिए, 2021-22 में बजट 7500 करोड़ रुपये था, लेकिन वास्तविक खर्च केवल 3116 करोड़ रुपये था. और हम नीति आयोग के आंकड़ों से जानते हैं कि PMJAY का 78% पैसा निजी अस्पतालों में जाता है."
पिछले तीन वर्षों में, कोविड महामारी के कारण, स्वास्थ्य हमारे जीवन का केंद्र बन गया, लेकिन अब जबकि COVID-19 भारत में एंडेमिक हो गया है, विशेषज्ञों को डर है कि स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं एक बार फिर से पीछे रह जाएंगी.
"स्वास्थ्य पर भारत का सार्वजनिक खर्च दुनिया में सबसे कम में से एक रहा है, यह अब NHA इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार GDP का सिर्फ 1.3% है. महामारी के खतरों को देखते हुए, हर कोई स्वास्थ्य में उच्च आवंटन की उम्मीद करेगा, खास कर सार्वजनिक स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए सिस्टम पर," डॉ सरित कुमार राउत, एडिशनल प्रोफेसर, IIPHB कहते हैं.
उन्होंने कहा, "इन्फ्रास्ट्रक्चर, विकास और सामाजिक विकास पर केंद्रित एक संतुलित नजरिया होना चाहिए था."
डॉ. चंद्रकांत लहरिया कहते हैं, ''प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं और पेरिफेरल स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए हमें और अधिक धन की आवश्यकता है.''
डॉ रवि दुग्गल सहमत हैं, कहते हैं:
डॉ. दुग्गल के अनुसार, भविष्य में कुछ दूसरे पहल जो नागरिकों की मदद कर सकती हैं, वे हैं:
जिला स्तर पर अधिक शिक्षण अस्पताल ताकि लोगों को उनके निवास स्थान के करीब टर्शीएरी देखभाल (tertiary care) उपलब्ध हो सके.
जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों, विशेषज्ञों और नर्सों के भारी रिक्त पदों को भरने के लिए कदम.
यह आश्वासन देना कि सभी सार्वजनिक सुविधाओं में मुफ्त दवाएं और निदान उपलब्ध हैं, क्योंकि इससे निजी खर्च को कम करने में काफी हद तक मदद मिलेगी.
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