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बुलंदशहर में सोमवार सुबह एक पगलाई वहशी भीड़ ने पुलिस इंस्पेक्टर को पीट-पीटकर जान से मार डाला. इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह का कुसूर सिर्फ इतना था कि वो पूरी ईमानदारी के साथ अपनी ड्यूटी पर था, पुलिस की वर्दी पहनते वक्त उसने खाकी की आन-बान और शान बचाने की जो कसम खाई थी वो सिर्फ उसे पूरा कर रहा था.
इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह खुद तो चले गए लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि उस शहीद इंस्पेक्टर ने कई जानों को बचा लिया. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि अगर उस वक्त पशुओं का कंकाल लेकर भीड़ बुलंदशहर के रोड पर बैठी रहती तो ये मामला इतना बड़ा सांप्रदायिक रूप लेता कि आसपास के कितने घर जलते इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.
आपकोे बता दें कि जिस वक्त ये मामला हुआ उस वक्त घटनास्थल से 45-50 किलोमीटर दूर मुसलमानों का इज्तिमा कार्यक्रम खत्म हुआ था जिसे अटैंड करने के लिए लाखों मुसलमान मौजूद थे. कार्यक्रम खत्म होने के बाद मुसलमान उसी रास्ते से अपने-अपने घर लौट रहे थे. ऐसे में अगर भीड़ वहां बैठी ही रहती और वहां से अगर मुस्लिम समुदाय के लोग गुजरते तो बड़ा दंगा हो सकता था. ऐसे में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह ने सड़क पर तमाशा करती भीड़ को हटाने की कोशिश की और उसी झड़प में वो अपनी जान गंवा बैठे.
3 दिसंबर, 2018 की सुबह तकरीबन 10 बजे बुलंदशहर में स्याना नाम का गांव है. गांव के जंगलों और खेतों में महुआ और चिंगरावटी गांव के लोगों को जानवरों का कंकाल दिखा. लोगों को शक हुआ कि शायद गाय मारी गई है. उन्होंने स्याना पुलिस चौकी को खबर की. पुलिस मौके पर पहुंची तो 50-60 से ज्यादा की भीड़ जमा थी. लोग नाराज थे और पुलिस उन्हें कार्रवाई और जांच का आश्वासन दे रही थी. लेकिन भीड़ में कुछ लोग लगातार पुलिस को भला बुरा कहते रहे और धीरे-धीरे माहौल बिगड़ने लगा.
ऐसे में पुलिस को हवाई फायरिंग करनी पड़ी. इसके बाद भीड़ में कुछ दंगाई-शरारती लोगों ने पुलिस पर भी बैकफायर कर दिया .दनादन तमंचे दागे जाने लगे और किसी बदमाश की एक गोली मौके पर हालात को काबू करने की कोशिश कर रहे सुबोध कुमार सिंह को जा लगी. वो मौके पर ही गिर गए. इसके बाद उनके साथी पुलिस वालों ने उन्हें गाड़ी में अस्पताल ले जाने की कोशिश की और सड़क पर खड़ी भीड़ से बचकर वो खेतों में से गाड़ी ले जाने लगे. “मारो...मारो” के नारों के साथ भीड़ ने गाड़ी पर पथराव किया और घायल सुबोध कुमार सिंह की पीट-पीटकर जान ले ली.
इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के बेटे से जब रिपोर्टर पूछता है कि आपको पिता आपको क्या बनाना चाहते थे तो वो तुरंत जवाब देता है- “एक अच्छा नागरिक, एक ऐसा नागरिक जो किसी धर्म के नाम पर उत्पात न मचाए.”.
सुबोध सिंह के अभिषेक सवाल पूछ रहे हैं कि इस हिंदू-मुस्लिम के झगड़े ने मेरे पिता की जान तो ले ली लेकिन अब आगे जाकर और किस-किस के पिता मरेंगे?
शहीद इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की पत्नी रजनी को यकीन ही नहीं हो रहा कि अब उनके सुहाग इस दुनिया में नहीं हैं. वो सोमवार रात बेसुध हालत में जिला अस्पताल में लगातार बस यही दोहरा रही थीं कि, “आप मुझे उनके पास जाने दो, वह बिल्कुल सही हो जाएंगे. मुझे छूने तो दो उनको, कहां हैं वह. देखो मुझे उनके पास जाना है. मैं हाथ जोड़ती हूं, बस एक मिनट के लिए जाने दो. मैं उनको छूऊंगी बस और वो ठीक हो जाएंगे. बेशक मुझे कुछ भी हो जाएगा, लेकिन वह ठीक हो जाते हैं. मेरा विश्वास मानो...”
सुबोध कुमार की पत्नी को समझ नहीं आ रहा कि ये सब हो कैसे गया. वो लगातार यही दोहरा रही हैं कि उनके सिर्फ छूने भर से ही सुबोध कुमार सिंह ठीक हो जाएंगे.
2015 में नोएडा के पास दादरी में मोहम्मद अखलाक लिंचिंग मामले में सुबोध कुमार सिंह जांच अधिकारी थे. बता दें कि घर में गाय का मांस रखने की अफवाह के बाद भीड़ ने मोहम्मद अखलाक और उनके बेटे पर घर में घुसकर हमला कर दिया था, जिसमें अखलाक को काफी चोटें आईं. उन्हीं चोटों की वजह से अखलाक की मौत हो गई थी. इस केस में इंस्पेक्टर सुबोध गवाह नंबर-7 थे.
अखलाक केस की जांच में सुबोध कुमार सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और तय समय पर सभी जरूरी सबूत भी इकट्ठा कर लिए थे. अखलाक वाला मामला गांव जारचा कोतवाली के तहत आता है. उस समय जारचा में सुबोध कुमार ही प्रभारी थे. उनकी अगुवाई में ही पुलिस की टीम ने बिसाहड़ा कांड में गिरफ्तारियां की थीं. इसी के आधार पर बिसाहड़ा कांड की चार्ज शीट तैयार हुई थी. चार्जशीट के अनुसार वह बिसाहड़ा कांड में गवाह नंबर-7 हैं.
हालांकि उन पर जांच के दौरान पारदर्शिता न बरतने के आरोप लगे, जिसकी वजह से उन्हें केस के बीच में ही वाराणसी ट्रांसफर कर दिया गया था. इस वक्त सुबोध कुमार के काम को लेकर भी काफी राजनीति हुई थी.
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