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लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में कथित उपद्रव करने के आरोपियों की सार्वजनिक फोटो लगाने के मामले पर आज इलाहाबाद हाईकोर्ट फैसला सुनाएगा. रविवार को सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पोस्टर लगाए जाने पर सरकार और जिला प्रशासन पर सख्त टिप्पणी कर अपनी नाराजगी जाहिर की थी. साथ ही सुनवाई पूरी करते हुए कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.
हाईकोर्ट ने रविवार को सुनवाई करते हुए लखनऊ के पुलिस कमिश्नर और जिलाधिकारी को तलब किया और पूछा कि किस नियम के तहत आरोपियों की फोटो सार्वजनिक जगह पर लगाई गई है.
बता दें कि 19 दिसंबर, 2019 को लखनऊ में नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए थे. इसी दौरान हिंसा भड़की. इस दौरान कुछ उपद्रवियों द्वारा कुछ जगहों पर तोड़-फोड़ की गई थी. इसके बाद जिला प्रशासन ने इनकी पहचान करने का दावा किया था. बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में भी लिया गया था.
हिंसक घटनाओं में सार्वजनिक सम्पत्ति के नुकसान पहुंचा जिसकी की भरपाई के लिये 57 लोगों के नाम , पते और फोटो वाली होर्डिंग जिला प्रशासन ने जगह-जगह लगवाई थी.
इस मामले पर जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने शुक्रवार को बताया था,
इन होर्डिंग में सामाजिक कार्यकर्ता सदर जाफर की तस्वीर भी है. सदफ ने प्रशासन के इस कदम को निहायत आपत्तिजनक बताया है. उन्होंने कहा कि किसी को उस इल्जाम के लिए इस तरह कैसे जलील किया जा सकता है, जो अभी अदालत में साबित नहीं हुआ है. यह हिंदुस्तान है, अफगानिस्तान नहीं. हमें अदालत से जो जमानत मिली है, उससे संबंधित आदेश में लिखा है कि हमारे खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं. फिर सरकार आखिर किस हक से हमें रुसवा कर रही है.
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