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सीबीआई के बारे में मंगलवार दिनभर अमंगल खबरें करने के बाद रात को मैं दफ्तर से निकला. घर जाते वक्त कार के रेडियो पर गाना बज रहा था, ‘जब रात है ऐसी मतवाली, तो सुबह का आलम क्या होगा...’
जबरन छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर जिस तरह एक-दूसरे पर मिसाइल दाग रहे थे, उससे सबको लग रहा था कि पीएम नरेंद्र मोदी को कुछ फैसला लेना होगा. विपक्ष बार-बार आरोप लगा रहा था कि राकेश अस्थाना पीएम मोदी के करीबी हैं, इसलिए उन पर सरकार का हाथ है.
लेकिन देर रात तक सरकार के अंदर बैचेनी भरी शांति थी. रात गहराई, तो सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा ने एक तीर और चलाया, अस्थाना को सभी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया.
दोपहर होते-होते सीबीआई पर सरकार के एक्शन पर काफी धुंआ फैल चुका था. सरकार की तरफ से कोई ऑफिशियल बयान नहीं आया था. कैबिनेट बैठक के फैसलों के बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस का ऐलान हुआ और बताया गया कि इसमें कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के साथ वित्तमंत्री अरुण जेटली भी बैठेंगे. मतलब साफ हो गया कि सीबीआई पर पूछे गए सवालों के जवाब जेटली ही देंगे.
जेटली से कई कड़े सवाल भी पूछे गए. आलोक वर्मा को क्यों छुट्टी पर भेजा गया? क्या राकेश अस्थाना को बचाने के लिए ये सब किया गया? क्या सरकार के पास ऐसा करने का अधिकार है?
सरकार को अब तो कुछ करना ही था. वित्तमंत्री अरुण जेटली ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दलील दी कि सुबह का इंतजार नहीं किया जा सकता था. रात को ही फैसला लेना था. रात को करीब दो बजे कार्मिक सचिव बीएस शर्मा को जगाया गया और सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने की चिट्ठी तैयार हो गई.
स्पेशल डायरेक्टर अस्थाना पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे. इसलिए उनको भी जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया. आधी रात को सीबीआई को दो टॉप ऑफिसर पैदल हो गए. उनकी गाड़ियां, ड्राइवर और दफ्तर सब कुछ चला गया.
लेकिन इसके साथ ही सीबीआई की साख भी गई थी, सरकार की नीयत पर भी सवाल उठे थे. शायद सरकार में बैठे लोगों ने सोचा होगा कि इससे कुछ तो बचेगा. इसी सिद्धांत में नए अंतरिम डायरेक्टर नागेश्वर राव नियुक्त कर दिए गए.
रात दो बजे के आसपास नागेश्वर राव दफ्तर पहुंचे. यकीनन सरकार ये अहसास भी कराना चाहती थी कि उसने कुछ किया है, इसलिए एक झटके में राव ने उन सभी अफसरों के तबादलों की चिट्ठियों पर दस्तखत करने शुरू किए, जो आलोक वर्मा के साथ अहम मामलों की जांच कर रहे थे.
आलोक वर्मा सुबह-सुबह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. दलील दी कि उनका दो साल का कार्यकाल था, कोई ऐसे कैसे उन्हें हटा सकता है. उनकी तरफ से दलील थी कि उनकी नियुक्ति स्पेशल कमेटी ने की है, जिसमें प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और विपक्ष के नेता शामिल हैं, इसलिए यही कमेटी उनकी छुट्टी कर सकती है. अब शुक्रवार, 26 अक्टूबर को पता लग जाएगा उनके अधिकारों के बारे में सुप्रीम कोर्ट क्या सोचता है.
विपक्ष कह रहा है कि सरकार राकेश अस्थाना को बचा रही है. राहुल गांधी ने कहा कि चौकीदार ने डायरेक्टर को हटा दिया. उनका आरोप यही है कि राकेश अस्थाना गुजरात कैडर के हैं और पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह उन्हें हर कीमत पर बचाना चाहते हैं, क्योंकि आलोक वर्मा राफेल मामले की जांच भी करा सकते थे.
ये मत समझिए सीबीआई में जारी घमासान खत्म हो गया. लड़ाई अब अदालतों में लड़ी जानी है. सरकार को भी ये मालूम है. शुक्रवार 26 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में आलोक वर्मा की याचिका पर सुनवाई है. वर्मा की दलील है कि सरकार के पास उन्हें हटाने का अधिकार ही नहीं है.
इसी तरह राकेश अस्थाना की अर्जी पर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई होगी, जिसमें वो एफआईआर रद्द कराने की गुहार लगा चुके हैं. खबर करने वालों के लिए ये एक्शन पैक्ड हो सकते हैं, लेकिन सीबीआई की साख तो फिलहाल बहुत नीचे चली गई है.
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