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CBSE ने 10वीं क्लास के नए पाठ्यक्रम से इंकलाबी शायर फैज की नज्में हटाईं

फैज की जिन 2 नज्मों को हटाया गया है,उनमें से एक उन्होनें तब लिखी,जब वे लाहौर जेल से डेंटिस्ट के पास ले जाए जा रहे थे

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भारत
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<div class="paragraphs"><p>फैज अहमद फैज </p></div>
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फैज अहमद फैज

(फोटो- क्विंट)

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सीबीएसई ने 2022-23 के लिए अपना नया अकादमिक पाठ्यक्रम जारी कर दिया है. लेकिन नए पाठ्यक्रम को लेकर सवाल उठना शुरू भी हो गए हैं.

दरअसल 10वीं क्लास में बीते एक दशक से छात्र "डेमोक्रेटिक पॉलिटक्स II (सामाजिक विज्ञान की किताब)" नाम की किताब में "रिलीजन, कम्यूनेलिज्म एंड पॉलिटिक्स- कम्यूनेलिज्म सेकुलर स्टेट" नाम के चैप्टर में मशहूर कवि फैज अहमद फैज (Faiz Ahmad Faiz) की कुछ पंक्तियां पढ़ा करते थे. लेकिन अब इन पंक्तियों को सीबीएसई ने नए पाठ्यक्रम से हटा दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है कि पाठ्यक्रम का दस्तावेज बताता है कि 10वीं क्लास की सामाजिक विज्ञान की किताब में धर्म, सांप्रदायिकता और राजनीति पाठ्यक्रम का हिस्सा बने रहेंगे, लेकिन इसमें से "पेज 46, 48 और 49 पर दिखाई गईं तस्वीरों को छोड़ दिया जाएगा." जिन तस्वीरों की बात की गई है, उनमें से एक कार्टून और दो पोस्टर हैं.

इनमें पोस्टरों में फैज की पंक्तियां लिखी थीं. पहले पोस्टर को NGO ANHAD ने जारी किया था. इसमें फैज की एक नज्म की यह पंक्तियां लिखी थीं- "हम तो ठहरे अजनबी कितनी मुलाकातों के बाद, खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद"

वहीं दूसरे पोस्टर में फैज की यह पंक्तियां लिखी हुई थीं- "चश्म-ए-जान-ए-शोरीदा काफी नहीं, तोहमत-ए-इश्क-पोशीदा काफी नहीं, आज बाजार में या बजौलां चलो"

एक्सप्रेस की रिपोर्ट में साहित्यिक मंच- रेख्ता पोर्टल के हवाले से बताया गया है कि जिस कविता से फैज की पंक्तियां ली गई थीं, वह उन्होंने तब लिखी थी जब लाहौर में एक जेल से डेंटिस्ट के ऑफिस ले जाया जा रहा था. दूसरे पोस्टर में फैज की जो पंक्तियां हैं, वे उन्होंने 1974 में ढाका यात्रा के बाद लिखी थीं. यह पोस्टर वालेंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने जारी किया था.

जबकि हटाया गया कार्टून अजीत नाइनन ने बनाया था. इसमें एक कुर्सी बनी हुई थी, जिस पर धार्मिक चिन्ह बने हुए थे. कैप्शन में लिखा हुआ था कि यह कुर्सी मुख्यमंत्री बनने वाले शख्स के लिए है, जिसे अपने सेकुलर गुण प्रदर्शित करने होंगे...."

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