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चांद पर पहुंचने की भारत दूसरी मुहिम शनिवार 7 सितंबर को सुबह करीब 2 बजे तक पूरी हो जाएगी. चंद्रयान-2 के साथ भेजा गया लैंडर विक्रम चांद की सतह पर लैंड करेगा. विक्रम के लैंड होने के बाद इससे जुड़ा हुआ रोवर प्रज्ञान अलग होगा और चांद की सतह पर घूमना शुरू करेगा.
प्रज्ञान 14 दिन तक चांद की सतह पर अलग-अलग डेटा इकट्ठा करेगा. ये 14 दिन चांद पर एक दिन के बराबर होंगे.
रोवर प्रज्ञान के साथ कुछ पेलोड यानी कुछ उपकरण लगाए गए हैं, जो चांद की सतह को परखेंगे और उनकी जानकारी इसरो को भेजेंगे.
इस पर 2 मुख्य उपकरण लगे हैं- अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस) और लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (एलआईबीएस). ये दोनों ही अलग-अलग आंकड़े जुटाकर इसरो को भेजेंगे.
अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (एपीएक्सएस): एक सपाट प्लेट जैसा दिखने वाला ये उपकरण रोवर के आगे के हिस्से में लगा हुआ है. इसका काम है चांद की सतह को परखना.
लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (एलआईबीएस): ये उपकरण हाई पावर लेजर किरणें छोड़ेगा, जिससे सतह पर मौजूद तत्वों से निकलने वाले रेडिएशन से जुड़े हुए आंकड़े और जानकारी इकट्ठा करेगा. इसका काम भी चांद की सतह पर मौजूद खनिज तत्वों (मिनरल्स) का पता लगाना है.
प्रज्ञान के अलावा चंद्रयान का मुख्य हिस्सा ऑर्बिटर भी जरूरी रिसर्च जारी रखेगा. ये ऑर्बिटर अगले एक साल तक चांद की कक्षा में चक्कर लगाता रहेगा और चांद की सतह की तस्वीरें इकट्ठा करता रहेगा, जिससे चांद के बाकी हिस्सों से जुड़ी जानकारी भी जुटाई जा सकेगी और आने वाले मिशन में मदद मिलेगी.
दरअसल, चांद का दक्षिणी ध्रुव (साउथ पोल) हमेशा से उजाले से महरूम रहा है. इसरो के मुताबिक साउथ पोल में मौजूद क्रेटर्स में करोड़ों साल से सूरज की रोशनी नहीं पहुंच पाई है. ऐसे में माना जाता है कि इन क्रेटर्स में लाखों टन पानी मौजूद हो सकता है.
इसके साथ ही चांद की सतह पर हाइड्रोजन, अमोनिया, मीथेन, सोडियम, मर्करी (पारा) और चांदी की मौजूदगी की भी संभावना है, जो भविष्य में होने वाली चांद से जुड़े मिशन में मदद करेगा.
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