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भारत के चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) ने चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कर इतिहास रच दिया है. 23 अगस्त को शाम 06 बजकर 04 मिनट पर देश इस ऐतिहासिक पल का गवाह बना. ISRO अपने मिशन में कामयाब रहा. इसरो चीफ के साथ इस मिशन में कुछ और ऐसे चेहरे शमिल हैं, जिनकी वजह से इसरो और पूरे देश को यह कामयाबी मिली है. आइए आपको इन चेहरों के बारे में बताते हैं.
भारत के महत्वाकांक्षी चंद्रमा मिशन के पीछे इसरो (ISRO) प्रमुख एस सोमनाथ का अहम् योगदान है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सोमनाथ को गगनयान और सूर्य-मिशन आदित्य-एल1 सहित इसरो के अन्य मिशनों को तेजी देने का श्रेय भी दिया गया है.
भारत के अंतरिक्ष संगठन का नेतृत्व करने से पहले, सोमनाथ ने विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC) और तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र (Liquid Propulsion Systems Center) जो की इसरो के लिए रॉकेट प्रौद्योगिकियों के विकास का प्राथमिक केंद्र है, यहां के निदेशक के रूप में भी काम किया है.
पी वीरमुथुवेल एक पूर्व रेलवे कर्मचारी के बेटे हैं. वह कई इसरो केंद्रों के समन्वय में चंद्रयान-3 को पूरा करने के समग्र मिशन के प्रभारी रहे हैं.
14 जुलाई को एलवीएम 3 (LVM3) रॉकेट द्वारा चंद्रयान -3 के प्रक्षेपण के बाद से, वीरमुथुवेल और उनके वैज्ञानिकों की टीम स्पेसक्राफ्ट की स्थिति और संचालन की लगातार निगरानी करने के लिए इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क सेंटर (ISTRC) में मिशन नियंत्रण कक्ष में हैं.
तमिलनाडु के विल्लुपुरम क्षेत्र के मूल निवासी, वीरमुथुवेल 2014 में इसरो में शामिल हुए.
चित्तूर जिले की कल्पना कालाहस्ती ने चेन्नई में बीटेक ईसीई की पढ़ाई की. उनके पिता मद्रास हाई कोर्ट के कर्मचारी हैं. मां हाउसवाइफ हैं. कल्पना बचपन से ही इसरो में नौकरी करने की ख्वाहिश रखती थीं और उन्होंने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया.
बी.टेक पूरा करने के बाद वह 2000 में एक वैज्ञानिक के रूप में इसरो में शामिल हुई. उन्होंने सबसे पहले श्रीहरिकोटा में पांच साल तक काम किया. 2005 में, उन्हें बेंगलुरु के एक उपग्रह केंद्र में ट्रांसफर कर दिया गया था, जहां उन्होंने पांच उपग्रहों के डिजाइन में हिस्सा लिया.
वह चंद्रयान -2 परियोजना में भी शामिल थीं, जिसे 2018 में श्रीहरिकोटा रॉकेट सेंटर से लॉन्च किया गया था. अब उन्होंने चंद्रयान-3 परियोजना के एसोसिएट डायरेक्टर के रूप में काम किया है.
रामकृष्ण बेंगलुरु में इसरो की सुविधा ISTRAC के सातवें निदेशक हैं. ISTRAC अंतरिक्ष नेटवर्क स्टेशनों से डेटा इकठ्ठा करके अहम अंतरिक्ष मिशनों के लिए मिशन नियंत्रण केंद्र के रूप में काम करता है.
चंद्रयान-3 मिशन के लिए, ISTRAC बेंगलुरु के बाहर बयालू में स्थित है. यह इसरो के अहम अंतरिक्ष नेटवर्क स्टेशन और अमेरिका के जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला और यूरोप के ईएसए जैसे विदेशी अहम अंतरिक्ष निगरानी पृथ्वी स्टेशनों से जुड़ा हुआ है.
रामकृष्ण के पास बेंगलुरु से विज्ञान में मास्टर डिग्री है और उन्हें उपग्रहों का उपयोग करके नेविगेशन और अंतरिक्ष यान की कक्षा निर्धारण के क्षेत्र में विशेषज्ञ माना जाता है.
शंकरन उस ग्रुप के निदेशक हैं, जिसे पहले इसरो सैटेलाइट सेंटर के नाम से जाना जाता था. वह यह एजेंसी है जो अंतरिक्ष अभियानों के लिए अंतरिक्ष यान बनाती है. चंद्रयान-3 अंतरिक्ष यान यूआरएससी में बनाया गया था.
शंकरन जून 2021 से यूआरएससी के निदेशक हैं. वह पहले यूआरएससी में संचार और पावर सिस्टम यूनिट के उप निदेशक थे और उन्होंने इसरो के चंद्रयान 1 और 2 के लिए सौर सरणी, बिजली प्रणालियों और संचार प्रणालियों के विकास में अहम भूमिका निभाई है.
उनके पास भारतीदासन विश्वविद्यालय, तिरुचिरापल्ली से फिजिक्स में मास्टर डिग्री है.
एलएमवी3 रॉकेट पर चंद्रयान-3 के 14 जुलाई के लांच के लिए इसरो के मिशन निदेशक मोहना कुमार ने ही 14 जुलाई को श्रीहरिकोटा में लांच की सफलता की पहली औपचारिक घोषणा की थी.
इसरो के अनुभवी एस मोहना कुमार इस साल मार्च में वन वेब इंडिया 2 सेवा के लिए उपग्रहों के एलवीएम3 लॉन्च के मिशन निदेशक थे.
श्रीकांत मोहना कुमार तिरुवनंतपुरम में इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, जो इसरो के लिए रॉकेट क्षमताओं के निर्माण का केंद्र है. वह 30 साल से अधिक समय से इसरो के साथ हैं.
प्रणोदन प्रणाली विश्लेषण (propulsion system analysis), क्रायोजेनिक इंजन डिजाइन और बड़ी परियोजनाओं के प्रबंधन के विशेषज्ञ, नारायणन ने चंद्रयान -3 पर प्रणोदन प्रणाली को डिजाइन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
चंद्रयान 3 लॉन्च करने वाले LVM3 रॉकेट के क्रायोजेनिक इंजन LPSC में बनाए गए थे.
एस उन्नीकृष्णन मानव अंतरिक्ष उड़ान प्रणालियों के विशेषज्ञ है, वह तिरुवनंतपुरम में इसरो की मुख्य रॉकेट-निर्माण सुविधा के निदेशक हैं. वह 1985 में इसरो में शामिल हुए और पीएसएलवी, जीएसएलवी और एलवीएम3 रॉकेट के लिए विभिन्न एयरोस्पेस प्रणालियों और तंत्रों के विकास में शामिल रहे हैं.
नायर 2004 में अपने स्टडी फेज में भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम से जुड़े थे और इसरो के नए मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र के संस्थापक निदेशक थे.
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