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Chhattisgarh: नृत्य महोत्सव में दिखी सतरंगी आदिवासी संस्कृति, 10- तस्वीरें

Chhattisgarh Bhupesh Baghel,छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव

सुजीत कुमार
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>दिवाली खास त्रिपुरा का लोकनृत्य, </p></div>
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दिवाली खास त्रिपुरा का लोकनृत्य,

फोटो: क्विंट हिंदी 

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छत्तीसगढ़ के रायपुर में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में देश भर की लोकनृत्य की प्रतिभाओं द्वारा प्रस्तुति की जा रही है. राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के दूसरे दिन कई लोक कलाकारों ने शिरकत की. लोकनृत्य के माध्यम से जनजातीय क्षेत्रों के आकर्षक और सुंदर वेशभूषा की खास झलक दिख रही है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में देश के विविध राज्यों के लोक रंग की झलक मिल रही है.

डाना वाद्य यंत्र की सुंदर धुनों के साथ मेघालय के वांगला नृत्य की सुंदर प्रस्तुति. गारो जनजाति के पुरुष परंपरागत वस्त्र कांथा एवं स्त्रियां रेफल वस्त्र पहनती हैं

लंबाड़ी तेलंगाना के नालगोंडा के बंजारा समुदायों द्वारा किया जाता है. नृत्य के माध्यम से बंजारा लोग अपनी जीवनशैली का प्रदर्शन कर

साल के पत्ते, तेंदू के पत्ते, महुआ के फूल आदि चीज़ें लगाए पूरे वेशभूषा में आदिवासी नृत्य 

उत्तराखंड के कलाकारों ने छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया गीत गाकर की अपने नृत्य की शुरूआत हारूल नृत्य का प्रदर्शन कर कलाकारों ने जीता सबका दिल, हारुल नृत्य मेला,शादी- विवाह व खुशियों के अवसर पर करते हैं.

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80 कली का घाघरा पहनकर राजस्थान की कंजर जाति की महिलाएं नृत्य करते हुए, वे बेहद तेज रफ्तार से गोल चक्कर लगाते हुए नृत्य करती हैं लेकिन उनका संतुलन अद्भुत होता है 

असमिया लोक कलाकारों की बोरो नृत्य की सुंदर प्रस्तुति, लोककलाकारों ने गले में मोतियां पहनी थीं और बालों में फूलों की सज्जा की थीं.

राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में मणिपुर के कलाकारों ने खरिमखरा नृत्य के माध्यम से झूम खेती की तैयारी को सजीव किया, इसे डांस आफ लाइवलीहुड भी कहा जाता है।.

उड़ीसा की घुमंतु जनजाति ने लकड़ी और चमड़े से बने वाद्ययंत्रों के साथ मनमोहक प्रस्तुति दी. नृत्य में लकड़ी चमड़े से बने वाद्य यंत्र घुड़का का उपयोग करती है. नृत्य में पुरूष और महिला दोनों शामिल होते है

देश के सबसे शीर्ष हिस्से लद्दाख से आये कलाकारों ने बल्की नृत्य की प्रस्तुति दी.  पहाड़ी क्षेत्र के अनुरूप खास तरह की वेशभूषा और वाद्ययंत्रों के माध्यम से दी गई प्रस्तुति से लद्दाख का लोकजीवन दर्शकों के आँखों के सामने जीवंत हो गया.

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