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नारायणपुर: अपने घरों से निकाले जाने के एक महीने बाद लौटे आदिवासी ईसाई-तस्वीरें

18 दिसंबर, 2022 को ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों को उनके गांवों से निकाल दिया गया था.

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भारत
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<div class="paragraphs"><p>18 दिसंबर, 2022 को  ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों को उनके गांवों से निकाल दिया</p></div>
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18 दिसंबर, 2022 को ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों को उनके गांवों से निकाल दिया

(फोटो: रौनक शिवहरे/द क्विंट)

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छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में कथित रूप से अपने घरों से निकाले जाने के एक महीने बाद आदिवासी ईसाई अपने गांव लौटने लगे हैं. हालांकि, वे कहते हैं कि चीजें वैसी नहीं हैं, जैसी पहले थी और अब भी घरों से निकाले जाने के डर में जी रहे हैं. पलायन के एक महीने बाद क्विंट हिंदी ने नारायणपुर के कुछ गांवों का दौरा किया.

18 दिसंबर, 2022 को ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों को उनके गांवों से निकाल दिया गया था. जिसके बाद इन लोगों ने कलेक्टोरेट पहुंचकर इंसाफ की गुहार लगाई थी. प्रशासन ने इन बेघर कर दिए गए लोगों को नारायणपुर के एक इंडोर स्टेडियम में ठहराया था. जबकि कई अन्य लोगों को चर्च सहित अन्य स्थानों पर ठहराया गया था.रमाला जो एक विधवा महिला है और अकेली रहती है. वो कहती है कि, हिंसा के बाद अपना घर छोड़ने से डरती हैं. इतना ही नहीं रात में अकेले रहने से भी डरती है. हालांकि नारायणपुर के रेमावंड गांव के कुछ ग्रामीण रमाला के घर पर एक साथ रह रहे हैं.

(फोटो: रौनक शिवहरे/द क्विंट)

रेमवंद गांव की सुख दाई सलाम और उसके बच्चे ये तीनों रमाला के घर में रात गुजार रहे हैं.

(फोटो: रौनक शिवहरे/द क्विंट)

43 साल के बैजू नाथ सलाम (दाएं) आदिवासी हैं, जिन्होंने कुछ साल पहले ईसाई धर्म अपना लिया था. बैजू नाथ ने कहा कि, हमें अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया. पहले उन्होंने हम पर हमला किया. फिर उन्होंने हमें पूजा करने के लिए रोका. और फिर घर वापस नहीं आने की चेतावनी दी. 23 दिसंबर को हम अपने घर से भागे थे. भले आज हम अपने गांव में हैं, लेकिन हम अपने घर में नहीं सोते हैं. हम रमाला के घर एक साथ सो रहे हैं क्योंकि हम अभी भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.

(फोटो: रौनक शिवहरे/द क्विंट)

सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म के दल ने पाया कि 'नारायणपुर जिले के करीब 18 गांवों और कोंडागांव जिले के 15 गांवों में हमला हुआ था, जिसमें लगभग 1,000 लोग विस्थापित हुए थे. अपने ही गांव के ईसाई आदिवासी नारायणपुर के एक इंडोर स्टेडियम में शरण लेने के लिए कई लोग सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर आए थे.'

(फोटो: रौनक शिवहरे/द क्विंट)

50 साल के नागनू कोर्रम ने द क्विंट को बताया कि 'हमें या तो ईसाई धर्म को छोड़ने या फिर गांव छोड़ने के लिए कहा था. मैंने अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ अपना घर छोड़ दिया और नारायणपुर के इंडोर स्टेडियम में शरण ली. हमारी फसलें नष्ट हो गई हैं. बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़ा. ये हमारे लिए एक बहुत बड़ी क्षति है, जिसे सत्ता में बैठे लोग नहीं समझेंगे'

(फोटो: रौनक शिवहरे/द क्विंट)

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कई महिलाओं से द क्विंट ने बात की. उन्होंने कहा कि वे अभी भी अपने बच्चों के लिए डरती हैं, और वे किसी को अकेला छोड़ने से बचने के लिए साथ में खाना बनाती हैं.

(फोटो: रौनक शिवहरे/द क्विंट)

इंडोर स्टेडियम में रह रहे नारायणपुर जिले के देवगांव गांव के 17 साल के रंजीत मंडावी ने कहा कि, हम चावल की फसल नहीं काट पाए. इस साल हमारी फसल खराब हो गई. जब हमें कहा गया कि हम अपना घर छोड़ दें और कभी वापस न आएं, तो हम नारायणपुर में अपने चाचा के घर गए, लेकिन वो भी डर गए थे, और इसलिए हमें यहां शिफ्ट करना पड़ा. 

(फोटो: रौनक शिवहरे/द क्विंट)

बीस साल की फगनू उसेंडी, जिनका परिवार उन 14 परिवारों में से एक था, जिन्हें नारायणपुर जिले के बोरावंड गांव से निष्कासित कर दिया गया था. उन्होंने  अपना दिन बोरावंड गांव के पंचायत भवन में अपने सामानों को छांटने में बिताया. फगनू ने कहा कि उनका परिवार अपने सामानों का केवल एक प्रतिशत ही वापस पा सका है और वह भी जीर्ण-शीर्ण परिस्थितियों में. 

(फोटोः विशेष व्यवस्था/द क्विंट द्वारा)

कई ग्रामीणों ने कहा कि बच्चों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है.उन्हें अपनी पढ़ाई से हाथ धोना पड़ा.

(फोटोः विशेष व्यवस्था/द क्विंट द्वारा)

19 दिसंबर को लगभग 300 लोगों को जबरन उनके घरों से निकाल दिया गया था जिसके बाद नारायणपुर के इंडोर स्टेडियम में शरण ली. इस तस्वीर में आदिवासी ईसाई विरोधी हिंसा के वजह से इंडोर स्टेडियम शरण लेते नजर आ रहे हैं.

(फोटोः विशेष व्यवस्था/द क्विंट द्वारा)

जब आदिवासी ईसाई लगभग एक महीने बाद अपने घर लौटे तो बाकि गांवों की अपेक्षा उनका गांव सन्नाटा दिखा.

(फोटो: रौनक शिवहरे/द क्विंट)

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