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संडे व्यू: अल्पसंख्यकों पर अत्याचार,चुप रहते हैं PM ? चीन पर चर्चा क्यों नहीं

Sunday View: पढ़ें आज पी चिदंबरम, टीएन नाइनन, शोभा डे, रामचंद्र गुहा, तवलीन सिंह के विचारों का सार.

क्विंट हिंदी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>Sunday View:&nbsp;संसद में चीन पर चर्चा क्यों नहीं? बेशरम कौन है सरजी?</p></div>
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Sunday View: संसद में चीन पर चर्चा क्यों नहीं? बेशरम कौन है सरजी?

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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चीनी हमले पर सदन में चर्चा क्यों नहीं?

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मंशा भांप नहीं पाए जब वे 11 अक्टूबर 2019 में महाबलीपुरम में उन्हें झूले झुला रहे थे. 1 जून 2020 को राष्ट्रपति शी सैन्य कार्रवाई को अंजाम देन वाले आदेश पर हस्ताक्षर कर चुके थे. मार्च-अप्रैल 2020 में पीएलए के जवान भारतीय क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा पार कर चुके थे.

19 जून 2020 को सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा था कि किसी भी बाहरी व्यक्ति ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ नहीं की है. इस पर यकीन कर पाना इसलिए मुश्किल है क्योंकि सारे तथ्य इस बयान के खिलाफ हैं.

चिदंबरम लिखते हैं कि ऐसा लगता है कि लोग बुरे फैसलों को भूल गये हैं. नोटबंदी, बगैर चेतावनी के लॉकडाउन, गरीबों का सबसे बड़ा पलायन, मानव निर्मित ऑक्सीजन की कमी, नदी में तैरती लाशें, नमस्ते ट्रंप रैली और यहां तक कि सबसे ताजा आपदा मोरबी नदी में पुल का गिरना.

मार्च-अप्रैल 2020 के बाद भारत और चीन की 3,488 किमी लंबी सीमा पर हालात बदतर हो गये हैं. अरुणाचल प्रदेश के तवांग की घटना कड़वी सच्चाई बयां करती है. चीन ने समय और स्थान तय करके भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर दी, मगर सरकार को इसकी भनक नहीं लगी.

आश्चर्य है कि सदन में इस विषय पर चर्चा से इसलिए मना कर दिया गया कि यह संवेदनशील है. क्या सदन में गैर संवेदनशील विषयों पर चर्चा हुआ करेगी?

लेखक ने ध्यान दिलाया है कि कई दौर की बातचीत के बावजूद चीन ने हॉट स्प्रिंग पर कुछ भी स्वीकार नहीं किया है. देप्सांग के मैदानी भागों और डेमचॉक जंक्शन से सैनिक वापसी पर चर्चा करने से चीन ने इनकार कर दिया है. द हिन्दू के हवाले से लेखक बताते हैं कि इन दोनों जगहों पर चीनी सेना एलएसी पर भारत की तरफ बनी हुई है. अमेरिका लगातार सूचना दे रहा है कि चीनी सैनिकों की तैनाती और एलएसी के पास सैन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण जारी है. इधर चीन से आयात लगातार बढ़ता हुआ यह निर्यात से चार गुणा ज्यादा हो चुका है. 174 चीनी कंपनियां भारत में पंजीकृत हैं. 3,560 भारतीय कंपनियों में चीनी निदेशक हैं.

बेशर्म कौन है सर जी?

शोभा डे एनडीटीवी.कॉम पर लिखती हैं कि संभावित ब्लॉक बस्टर ‘पठान’ का हाल में रिलीज हुआ गाना ‘बेशर्म रंग’ को उन्होंने संभवत: प्रदूषित मानसिकता के साथ एन्जवॉय किया. दो बॉलीवुड सुपरस्टार को डांस करते हुए देखा. अब लेखिका को लगता है कि वह ‘जमा हुए जहर’ का क्या करे, कैसे उससे छुटकारा पाए?  दिमाग किसी कटोरे में जमा नूडल्स से अधिक जटिल हो गया लगता है. मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने प्रोड्यूसर को कॉस्ट्यूम बदलने की चेतावनी दी है. न सिर्फ कॉस्ट्यूम, बल्कि उसके रंग में भी उन्हें साजिश लगती है. 

शोभा डे लिखती हैं कि सर जी, लोकतंत्र के मतलब पर फिर से नजर क्यों नहीं डाल लेते? क्या फिल्म निर्माताओं और कलाकारों को धमकी देना लोकतांत्रिक प्रक्रिया है? सर जी आप देखते हैं ‘भगवा’, दर्शकों को दिखता है नारंगी. आप साजिश देखते हैं, दर्शकों को दिखता है मनोरंजन.

आपकी यह सोच बहुत बुरी है कि हरे रंग के कपड़े में एक मुसलमान ने भगवा बिकनी पहनी हिदू महिला के साथ फिल्माया गया दृश्य राष्ट्रीय भावना को आहत करता है. रंग में ‘सुधार’ और दृश्यों में ‘बदलाव’ और गाने के टाइटल में ‘परिवर्तन’ की बात मांग करने से पहले जरा सोचिए.

लेखिका पूछती हैं कि क्या यह बॉलीवुड में पहला गाना है, जिसमें भगवे रंग में बिकनी पहनी गयी है? डिंपल कपाड़िया की ‘बॉबी’ याद है? तब आप 13 साल के होंगे. 16 साल की भगवे बिकनी वाली लड़की को हरे रंग के कपड़े पहना ऋषि कपूर निहारता है. तब कोई पुतले नहीं जले थे और न ही किसी बदलाव की मांग की गयी थी. 49 साल बाद भी यह फिल्म लोगों को आकर्षित करती है.

आपकी राय कि शाहरुख खान को वैष्णो देवी नहीं जाना चाहिए भी विचित्र है. दीपिका पादुकोण को ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग का आप हिस्सा बताते हैं. जब इतने वरिष्ठ नेता ऐसी बात कहेंगे तो उसका असर दिखेगा.
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सब्सिडी और मुफ्त अनाज पर गिरेगी गाज!

टीएन नाइनन बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि निर्मल सीतारमन ने बजट निर्माण के तौर तरीके में बदलाव किया है. शुरू में आंकड़ों की गड़बड़ी दिखी. कर राजस्व में 18.4 फीसदी की कमी देखने को मिली. कोविड से पहले की आर्थिक मंदी भी इसकी वजह रही थी. एक और वजह थी कि कॉरपोरेट टैक्स में असाधारण कटौती की गयी थी. इसकी वजह प्रधानमंत्री का अमेरिका दौरा और वहां कारोबारी जगत के शीर्ष लगों से मुलाकात थी. राजकोषीय घाटा बढकर 4.6 फीसदी हो गया.

नाइनन लिखते हैं कि अगले वर्ष भी कोविड के कारण जीडीपी घटी. कॉरपोरेशन टैक्स 17.8 फीसदी घट गया, जबकि जीएसटी कलेक्शन भी 8.3 फीसदी गिर गया. तीसरे बजट में वास्तविक राजस्व संग्रह अनुमान से 13.4 फीसदी अधिक रहा. इसी वजह से कोविड के दौरान मुफ्त खाद्यान्न वितरण आदि जारी रह सका.

इस साल भी पेट्रोलियम टैक्स में कमी के बावजूद अनुमान से बेहतर है राजस्व. हालांकि सब्सिडी बढ़ गयी. इसकी वजह यूक्रेन युद्ध है. वित्तमंत्री ने 6.4 फीसदी घाटे का अनुमान जताया है.

राजकोषीय घाटा लगातार ऊंचा बना हुआ है और वह कोविड के पहले के 6.5 फीसदी के उच्चतम स्तर के करीब है. यह 2009-10 के वित्तीय संकट की याद दिलाता है. सब्सिडी और मुफ्त अनाज जैसी योजनाओं में कटौती के अलावा रास्ता नहीं दिखता. ऐसा करने से घाटा जीडीपी के 6 फीसदी से नीचे आ कता है.

अल्पसंख्यकों पर अत्याचार: चुप रहते हैं मोदी!

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि विदेश में ऐसी धारणा बन रही है कि भारत में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ रहे हैं, गिरिजाघर तोड़े जा रहे हैं वगैरह. अमूमन घटनाओं को विकृत कर पेश किया जाता है. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही झूठे प्रचार किए जाते रहे हैं. मोदी की छवि विदेश में तानाशाह की बन रही है. लेखिका का मानना है कि इसमें कुछ दोष खुद मोदी का है और कुछ उनके समर्थकों का.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि मोदी का दोष यह है कि जब भी मुसलमानों पर अत्याचार करते हैं उनके समर्थक और संघ की विचारधारा से प्रभावित लोग, वे चुप रहते हैं.

महाराष्ट्र सरकार अंतर्धार्मिक शादी करने वालों की तफ्तीश करेगी. सरकारों को कोई अधिकार नहीं होना चाहिए कि आम लोगों के निजी रिश्तों में वे दखल दें. प्रधानमंत्री चुप हैं ठीक वैसे ही जैसे वे तब चुप रहे थे जब गृहमंत्री ने बांग्लादेशी घुसपैठियों को दीमक कहा था. अब ‘बेशरम रंग’ पर शाहरूख खान के खिलाफ अभियान पर चुप हैं. विदेश में प्रधानमंत्री मोदी की छवि बिड़ने के और भी कारण हैं.

मोदी सरकार की आलोचना के बाद पत्रकारों के घर छापे पड़ने लग जाते हैं. भारत विश्वगुरु तभी बन पाएगा जब मोदी यह स्पष्ट कर सकेंगे कि वे ऐसा भारत बना रहे हैं जिसमें हर नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकार पूरी तरह सुरक्षित हैं.

जब टूटा था मीरा बेन का सपना

रामचंद्र गुहा ने टेलीग्राफ में लिखा है कि 30 नवंबर 1947 को ‘हरिजन’ में एक अपील प्रकाशित हुई थी. यह अपील अंग्रेज से भारतीय नागरिक बनीं महिला की थी, “22 साल पहले, मेरा भ्रमण खत्म हुआ. मुझे मेरी आध्यात्मिक भूमि भारत मिल गयी जिसका ऐतिहासिक अतीत आध्यात्मिक भव्यता के महाकाव्य में खुद को दोहरा रहा था. किस असीम प्रेरणा और उत्साह से उम्मीद और प्रकाश के महान कृत्य में शरीक हुई और बेशक उसकी कलई युद्धग्रस्त डूबती दुनिया में खुल रही है. मुझे बापू में मार्गदर्शन, हिन्दूपंथ में सच्चाई, भारत में मां मिली”.

आगे उस अपील में लिखा था, “शायद ही मैं जानती थी कि 22 साल बाद मुझे मां की फटी हुई छाती और अपने ही बच्चों द्वारा किए गये टुकड़ों से उसके बहते हुए खून और सच्चाई को रौंदते हुए अपने ही लोग मिलेंगे जो खुद को हिन्दू कहते हैं.”

रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि यह महिला मीरा बेन थी. वह ब्रिटिश एडमिरल की बेटी थी जो नवंबर 1925 में गांधी के साथ काम करने भारत आयी थी. वह बापू के साथ साबरमती के सेवाग्राम में रही. अमेरिका और इंग्लैंड जाकर भारतकी आजादी के लिए प्रचार किया. उसने अपनाए हुए देश के लिए कई बार जेलों की यात्राएं कीं. उसने गांधी के आदर्शों के लिए, छुआछूत मिटाने, खादी की उन्नति और हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया. मीरा बेन के आदर्श गांधी ने बंटवारे के बाद फैली हिंसा और नफरत मिटाने के लिए एक नायक की तरह लगातार काम में जुटे थे.

कोलकाता से दिल्ली आए जहां पाकिस्तान से लौटे रिफ्यूजी बदले की भावना से स्थानीय मुसलामानों से व्यवहार कर रहे थे. गांधी उत्तर भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के बाद सीमा लांघ कर पाकिस्तान जाना चाहते थे और वहां हिन्दू-सिख अल्पसंख्यकों के लिए काम करना चाहते थे. लेकिन, यह काम दुष्कर साबित हुआ.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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