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"पूरी खुशहाली, समग्र विकास तब ही संभव है जब आप ये देखें कि मुस्लिम युवाओं के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कम्प्यूटर है."
हां, 01 मार्च 2018 को इस्लामिक स्कॉलर कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यही कहा था. मुसलमानों के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में कंप्यूटर. लेकिन कमाल देखिए. इस बयान के कुछ सालों बाद उनकी ही सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय के हाथ से कंप्यूटर छीनने की या कहें हायर एजुकेशन से दूर करने की एक कोशिश की है. हायर तो दूर बेसिक एजुकेशन हासिल करने के रास्ते में भी एक बड़ी रुकावट खड़ी की गई है. इसलिए हम पूछ रहे हैं, जनाब ऐसे कैसे?
अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने लोकसभा में इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा,
लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप दूसरी कौन सी स्कीम से ओवरलैप हो रही है? जिसकी जानकारी देशभर के अल्पसंख्यक छात्रों को ही नहीं है.
और अगर ये मान भी लिया जाए तो सवाल ये उठता है कि दो स्कॉलरशिप कैसे ओवरलैप हो सकती है जबकि स्कॉलरशिप देने वाली संस्था एक ही है. यूजीसी. स्कॉलरशिप ओवरलैप की दलील के पीछे की कहानी आपको समझाते हैं.
फिर ये तो साफ है कि जिसे जेआरएफ मिलता है उसे मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप छोड़नी पड़ती है, क्योंकि दोनों फेलोशिप यूजीसी ही देती है. फिर ये ओवरलैप कैसे हो सकता है?
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University) के इतिहास विभाग के प्रोफेसर सैयद अली नदीम रजावी ने क्विंट से कहा,
आपको बता दें कि यूपीए सरकार के दौरान शुरू हुई फेलोशिप, सच्चर कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक लागू की गई थी. इसमें भारत के मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का अध्ययन किया गया था. इस बार इस फेलोशिप को बंद करने के लिए कौन सी स्टडी हुई है?
JNU के सेंटर फॉर पॉलिटिकल साइंस में सहायक प्रोफेसर हरीश वानखेड़े ने इसपर क्विंट से कहा,
सरकार के आंकड़ों को ही देखें तो देश में सभी समुदायों के बीच उच्च शिक्षा में मुसलमानों का सबसे कम Gross Enrollment Ratio 16.6% है (राष्ट्रीय औसत 26.3% है). उच्च शिक्षा नामांकन (higher education enrollment) में मुसलमानों की हिस्सेदारी 2010-11 में 2.53% थी, जो बढ़कर 2019-20 में 5.45% हो गई है. इसी दौरान teaching faculty में भी उनकी हिस्सेदारी 2.95% से बढ़कर 5.55% हो गई है. इससे साफ होता है कि अवसर दिए जाने पर, अल्पसंख्यक समुदाय मुख्यधारा में रहने का इच्छुक है. फिर MANF जैसी फेलोशिप को बंद करके इन्हें आगे बढ़ने से क्यों रोका जाए?
अब आते हैं एक और स्कॉलरशिप पर जिसे सरकार ने बंद करने का फैसला किया है. और मीडिया को इसपर डिबेट करने की फुर्सत तक नहीं मिली.
सरकार ने नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल पर एक नोटिस में अपने फैसले को सही ठहराते हुए कहा है कि शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 हर बच्चे को अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा मतलब पहली कक्षा से आठवीं तक की पढ़ाई मुफ्त प्रदान करता है, इसलिए इस योजना को बंद किया जाता है.
अब सवाल ये है कि सरकार ने कौन सी रिसर्च कराई है, जिसके आधार पर इन स्कॉलरशिप को बंद कराया गया है? सरकार के पास कौन से आंकड़े हैं जो ये बताते हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय की हालत अब बेहतर हो गई है इसलिए इन स्कॉलरशिप को बंद कर दी जाए?
अल्पसंख्यकों के स्कॉलरशिप खत्म किए जाने पर जो लोग खुश हो रहे हैं वो ये जान लें कि उनकी पढ़ाई भी अंधेरे से ज्यादा दूर नहीं है. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में एक बताया है कि देशभर के सेंट्रल यूनिवर्सिटी, IIT और IIM में प्रोफेसर के 11,000 से अधिक पोस्ट खाली हैं.
पिछले कुछ वक्त से देशभर की यूनिवर्सिटी में छात्र फीस बढ़ोतरी से लेकर हॉस्टल और मेस फीस को लेकर आवाज उठा रहे हैं. और अब स्कॉलरशिप छीनकर हायर स्टीज से रोकना. ये कैसा सबका साथ-सबका विकास है. जब पिछड़े-अल्पसंख्यक तबके के छात्रों के हाथ से किताब ही छीन ली जाए. इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
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