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केरल के कोझीकोड जिला सत्र न्यायालय के जज एस कृष्णकुमार द्वारा एक्टिविस्ट सिविक चंद्रन (Civic Chandran) से जुड़े दो यौन उत्पीड़न में जमानत की सुनवाई में की गई टिप्पणियों पर पूर्व जजों से लेकर आम जनता ने आपत्ति जताई है.
71 वर्षीय प्रसिद्ध एक्टिविस्ट, लेखक और पूर्व माओवादी सिविक चंद्रन पर यौन उत्पीड़न के दो मामले दर्ज हैं, पहला 17 जुलाई को दर्ज हुआ और दूसरा 29 जुलाई को. पहले मामले में जहां उन्हें 2 अगस्त को जमानत मिली, वहीं दूसरे मामले में 12 अगस्त को जमानत मिली.
पहला मामला: एक दलित लेखिका ने पुलिस में शिकायत की कि चंद्रन ने 17 अप्रैल को उसकी गर्दन पर किस करने की कोशिश की.
दूसरा मामला: एक महिला ने आरोप लगाया कि चंद्रन ने 2020 में कोझीकोड के नंदी समुद्र तट पर आयोजित एक पोएट्री कैम्प में उसका यौन उत्पीड़न किया.
दूसरे मामले में जमानत देते हुए जज द्वारा की गयी टिप्पणी की जमकर आलोचना हुई कि "भारतीय दंड संहिता की धारा 354 ए के तहत प्रथम दृष्टया यौन उत्पीड़न का अपराध नजर नहीं आता है क्योंकि महिला ने यौन उत्तेजक कपड़े पहन रखे थे". जज ने पहले मामले में भी 2 अगस्त को सिविक चंद्रन को जमानत देते हुए अपने आदेश में कहा था कि
कोर्ट ने माना कि चंद्रन को पीड़िता की जाति के बारे में "कोई जानकारी नहीं" थी और इसीलिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप नहीं लग सकते.
मालूम हो कि दलित महिला पर हमला करने और एक महिला की मॉडेस्टी को भंग करने से संबंधित धाराओं के साथ-साथ अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत सिविक चंद्रन पर मामला दर्ज किया गया था.
जमानत देते समय कोर्ट ने यह भी कहा कि जहां चंद्रन "74 साल के हैं वहीं महिला अच्छी कठ-काठी और 42 वर्ष की थी", वह चंद्रन की तुलना में "लम्बी" थी. आदेश में कहा गया है कि आरोपी की उम्र और खराब स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए यह विश्वास नहीं किया जा सकता है कि आरोपी ने पीड़िता की सहमति के बिना उसे चूमा.
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