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देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपना फैसला सुनाया है, जिसमें देशद्रोह कानून पर अभी के लिए रोक लगाने की बात कही गई है. भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और हेमा कोहली की बेंच ने ये फैसला दिया है. बता दें कि इस बेंच की अध्यक्षता जस्टिस एनवी रमना कर रहे थे. आइए जानते हैं कि जस्टिस एनवी रमना कौन हैं और इससे पहले किस तरह के फैसले दे चुके हैं.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना का जन्म आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के पोन्नावरम गांव में 27 अगस्त 1957 को एक किसान परिवार में हुआ था.
एनवी रमना 1983 में 10 फरवरी को एक वकील के रूप में नामांकित किए गए और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट, केंद्र और आंध्र प्रदेश प्रशासनिक न्यायाधिकरण और सुप्रीम कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस की. इसके अलावा वो रमना सिविल, क्रिमिनल, संवैधानिक, श्रम, सेवा एवं चुनाव मामलों में केस लड़ते थे.
बता दें कि जस्टिस रमना ने आंध्र प्रदेश के एडिशनल एडवोकेट जनरल के रूप में भी काम किया है. साल 2000 में 27 जून को उन्हें आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का स्थायी जज नियुक्त किया गया था. उन्होंने 10 मार्च 2013 से 20 मई 2013 तक आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस के रूप में भी काम किया.
भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता में पांच जजों की पीठ ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को सात जजों की पीठ को भेजने से इनकार कर दिया था.
वो पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने नवंबर 2019 में कहा था कि सीजेआई का पद सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक अथॉरिटी है.
सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2019 के फैसले में यह भी कहा कि ‘जनहित’ में सूचनाओं को उजागर करते हुए ‘न्यायिक स्वतंत्रता को भी दिमाग में रखना होगा.’
जस्टिस रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में जनवरी 2020 में फैसला सुनाते हुए कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इंटरनेट पर बिजनेस करना संविधान के तहत संरक्षित है और जम्मू कश्मीर प्रशासन को प्रतिबंध के आदेशों की तत्काल समीक्षा करने का निर्देश दिया था.
एनवी रमना सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली उस बेंच का भी हिस्सा रहे हैं, जिसने 2016 में अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को बहाल करने का आदेश दिया था.
नवंबर 2019 में एनवी रमना की अगुवाई वाली बेंच ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस को सदन में बहुमत साबित करने के लिए शक्ति परीक्षण का आदेश दिया था.
चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने उस याचिका पर भी सुनवाई की थी, जिसमें पूर्व एवं मौजूदा विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के निस्तारण में बहुत देरी का मुद्दा उठाया गया था.
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