देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले पर पूर्व जज दीपक गुप्ता ने बुधवार, 11 मई को कहा कि मुझे लगता है यह सही कदम है. जस्टिस (रिटायर्ड) गुप्ता ने द क्विंट को यह भी बताया कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर फैसला किया होता तो उन्हें ज्यादा खुशी होती, लेकिन सरकार के अनुरोध को स्वीकार करने के बाद, मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश बिल्कुल सही है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने बुधवार को कहा कि देशद्रोह के प्रावधान को स्थगित करना उचित होगा और इस प्रावधान का उपयोग तब तक नहीं करना चाहिए, जब तक कि देशद्रोह कानून की फिर से जांच पूरी नहीं हो जाती.
कोर्ट के अगले आदेश तक ये प्रावधान लागू रहेंगे:
केंद्र और राज्य सरकारों से आईपीसी की धारा 124 ए (देशद्रोह) के तहत कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने से परहेज करने का आग्रह किया.
कोर्ट ने फैसला सुनाया कि यदि कोई नया केस दर्ज किया जाता है, तो उपयुक्त पक्ष राहत के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं.
कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों पर पहले ही देशद्रोह कानून के तहत मामला दर्ज किया जा चुका है और वे जेलों में बंद हैं, वे जमानत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं.
कोर्ट ने निर्देश दिया कि धारा 124ए के तहत सभी अपीलों और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए.
'उत्कृष्ट', 'ऐतिहासिक': कोर्ट के फैसले की हुई प्रशंसा
पटना हाईकोर्ट की पूर्व जज और मौजूदा वक्त में सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट अंजना प्रकाश ने कोर्ट के आदेश को एक्सीलेंट बताया.
मुझे लगता है कि यह एक उत्कृष्ट आदेश है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पारित करना उचित समझा है. यह अच्छा है कि उन्होंने सरकार द्वारा 124ए की समीक्षा करने के कारण किसी भी आदेश पर रोक नहीं लगाई. यह एक बहुत ही अच्छा कदम है और वक्त के मुताबिक है.अंजना प्रकाश, सीनियर एडवोकेट
अंजना ने इस बात की भी सराहना की कि कोर्ट ने न केवल सरकार से देशद्रोह कानून के तहत नए मामले दर्ज करने से परहेज करने की गुजारिश की है, बल्कि लंबित मामलों को भी ध्यान में रखा.
उन्होंने आगे कहा कि सीजेआई ने खुद इस ओर इशारा किया था कि देशद्रोह कानून मौजूदा वक्त के अनुरूप नहीं है और मैं उनसे पूरी तरह सहमत हूं.
लोकतंत्र में, राजद्रोह कानून का कोई स्थान कहां होता है? मुझे नहीं पता कि इसे क्यों रखा गया और यह अर्थहीन था. सबसे बुरा यह है कि इसे चुनिंदा रूप से इस्तेमाल किया जा रहा था, इसके सही उपयोग से अधिक दुरुपयोग था.
इस बीच सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण और जयवीर शेरगिल ने भी इस आदेश को ऐतिहासिक, स्वागत योग्य और संतुलित बताया है.
लेकिन रुकें...
जब आदेश की सराहना की गई, इस दौरान कानूनी विशेषज्ञों की कुछ चिंता भी सामने आई, जिन्होंने बताया कि अभी भी उम्मीद है कि धारा 124 ए के तहत एफआईआर दर्ज की जाती रहेगी.
वकील राधिका रॉय ने कहा कि आरोपियों को अभी भी जांच को रद्द करने/रोकने के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाना होगा, जबकि एक अन्य वकील पारस नाथ सिंह ने कहा कि प्रावधान (124 ए) पर कोई स्पष्ट रोक भी नहीं है.
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