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भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना (CJI NV Ramana) ने कहा है कि 'मीडिया ट्रायल केस का फैसला करते हुए गाइडिंग फैक्टर' नहीं हो सकता है. CJI रमना ने कहा कि 'सोशल मीडिया के जरिए बढ़ाई गई पब्लिक ओपिनियन की भावुकता' से जजों पर प्रभाव नहीं होना चाहिए.
CJI एनवी रमना ने दिल्ली में जस्टिस पीडी देसाई मेमोरियल लेक्चर देते समय ये सब बातें कही. उन्होंने कहा, "जजों को ये ध्यान रखना चाहिए कि तेज आवाज हमेशा सही बात नहीं कहती है."
CJI रमना ने कहा कि 'कार्यपालिका से दबाव' पर काफी चर्चा हो रही है, 'लेकिन संस्थानों पर सोशल मीडिया ट्रेंड के असर पर भी बातचीत शुरू करने की जरूरत है.' उन्होंने कहा, "ऐसा नहीं मानना चाहिए कि जज और न्यायपालिका आसपास चल रही चीजों से बिलकुल अछूता रहेंगे."
CJI एनवी रमना ने कहा कि न्यायपालिका के लिए सरकार की ताकत और गतिविधि पर एक चेक बनाने रखने के लिए उसकी संपूर्ण आजादी जरूरी है. CJI ने कहा, "न्यायपालिका को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप, विधायिका या कार्यपालिका से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है."
उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका सामान तरह से 'संवैधानिक विश्वास का कोष' हैं.
CJI रमना ने कहा कि न्यायपालिका की भूमिका सीमित है और वो सिर्फ 'उसके सामने रखे तथ्यों से मतलब रखती है.' उन्होंने कहा, "न्यायपालिका की सीमाएं बाकी अंगों को संवैधानिक मूल्यों को बरकरार रखने की जिम्मेदारी याद दिलाती है."
CJI रमना ने कहा कि जनता के पास हर कुछ साल में 'शासक' बदलने का अधिकार होना 'तानाशाही' के खिलाफ कोई गारंटी नहीं है.
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से 17 आम चुनावों में 'जनता ने अपना दायित्व अच्छे से निभाया है' और अब 'राज्य के प्रमुख अंगों की रक्षा कर रहे लोगों की बारी है कि वो सोचें कि क्या वो संवैधानिक आदेशों पर खरे उतारते हैं.'
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