जस्टिस रमन्ना की कहानी: घर के पहले वकील से अगले CJI तक

जस्टिस रमन्ना का कार्यकाल 26 अगस्त 2022 तक होगा

करन त्रिपाठी
भारत
Updated:
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जस्टिस रमन्ना का कार्यकाल 26 अगस्त 2022 तक होगा

(फोटो: कामरान अख्तर/क्विंट)

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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 6 अप्रैल को जस्टिस नुथालापति वेंकट रमन्ना को भारत का अगला चीफ जस्टिस (CJI) नियुक्त करने पर अपनी सहमति दे दी थी. जस्टिस रमन्ना इस पद को संभालने वाले 48वें जज हैं और उनका कार्यकाल 26 अगस्त 2022 तक होगा.

जस्टिस रमन्ना दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के कार्यकारी चीफ जस्टिस रह चुके हैं. उन्हें 17 फरवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त किया गया था.

जस्टिस रमन्ना देश के चीफ जस्टिस बनने वाले आंध्र प्रदेश से दूसरे जज हैं. उनसे पहले 1966 से 1967 तक जस्टिस के सुब्बा राव इस पद को संभाल चुके हैं. जस्टिस सुब्बा राव नौवें CJI थे.

शुरुआती साल

जस्टिस एनवी रमन्ना का जन्म आंध्र प्रदेश के पोन्नावरम गांव में 27 अगस्त 1957 को एक कृषि परिवार में हुआ था. उन्होंने अपना स्नातक साइंस और लॉ से पूरा किया था और फिर एक स्थानीय अखबार के लिए दो साल तक पत्रकार के तौर पर काम किया था. 10 फरवरी 1983 को उन्होंने बार में वकील के तौर पर अपना नाम दर्ज कराया.

जस्टिस रमन्ना अपने परिवार में पहले वकील थे.

तब से अब तक जस्टिस रमन्ना ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट, सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल, आंध्र प्रदेश एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर चुके हैं. वो रेलवे समेत कई सरकारी संगठनों के लिए पैनल काउंसल रह चुके हैं. इसके अलावा वो आंध्र प्रदेश राज्य के लिए एडिशनल एडवोकेट जनरल भी रह चुके हैं.

उन्हें सिविल और क्रिमिनल लॉ का एक्सपर्ट माना जाता है. जस्टिस रमन्ना को आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में 27 जून 2000 को स्थायी जज नियुक्त किया गया था. इसके बाद 2 सितंबर 2013 में वो दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने थे.

बार के सदस्य रहते हुए वो संवैधानिक कानून, लेबर कानून, सर्विस कानून, इंटर-स्टेट रिवर डिस्प्यूट समेत चुनावी डिस्प्यूट के केस लड़ चुके हैं.

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जस्टिस रमन्ना की बेंच के ऐतिहासिक मामले

अनुराधा भसीन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस (जिसे कश्मीर इंटरनेट शटडाउन केस भी कहा जाता है) में जस्टिस रमन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को निर्देश दिया था कि कश्मीर में टेलीकॉम और इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने वाले आदेशों की समीक्षा की जाए और उन्हें पब्लिक डोमेन में पब्लिश किया जाए.

इसके बाद कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन के एक और केस में जस्टिस रमन्ना की इसी बेंच ने तीन-सदस्यों की कमेटी बनाई थी और उसे जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में 4G मोबाइल इंटरनेट की मांग को देखने का निर्देश दिया था. ये केस मीडिया प्रोफेशनल्स एसोसिएशन ने दायर किया था.

जस्टिस रमन्ना सुप्रीम कोर्ट की उस नौ जजों वाली बेंच की सदस्य थे, जिसने 7:2 के बहुमत से आदेश दिया था कि राज्य सरकारों को अपना फिस्कल कानून बनाने की इजाजत है.

देश का संघीय ढांचा बनाए रखने की जस्टिस रमन्ना की प्रतिबद्धता नबाम रेबिया केस के फैसले में भी दिखता है. इसमें पांच जजों की बेंच ने राज्यपाल के आदेश को संविधान के आर्टिकल 163 और आर्टिकल 174 के उल्लंघन में रद्द कर दिया था. राज्यपाल ने अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के छठे सत्र को कैबिनेट या स्पीकर से बिना सलाह किए एक महीने आगे बढ़ा दिया था.

जेंडर जस्टिस के मुद्दे में एक डिवीजन बेंच ने कहा था कि महिला का घर पर काम उसके दफ्तर जाने वाले पति से कम नहीं है. बेंच की अध्यक्षता जस्टिस रमन्ना ने की थी.

विवाद

अक्टूबर 2020 में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने CJI एसए बोबडे को खत लिखकर आरोप लगाया था कि जस्टिस रमन्ना और उनके रिश्तेदार अमरावती में एक जमीन के अधिग्रहण के मामले में भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं. जगन ने आरोप लगाया था कि जस्टिस रमन्ना ने एक लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार को आंध्र हाई कोर्ट में सुनवाई और फैसलों पर प्रभाव डालकर 'अस्थिर और गिराने' की कोशिश की थी.

हालांकि, जिस दिन CJI बोबडे ने जस्टिस रमन्ना का नाम अगले CJI के लिए सुझाया था, उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने रेड्डी की शिकायत को खारिज करते हुए एक छोटा सा बयान जारी किया था, जिसमें आरोपों को 'मूल्यहीन' करार दिया था.कोरोना का कहर: कैदी-वकील दोनों खतरे में, 'कानून' क्यों 'अंधा' है?

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Published: 24 Apr 2021,07:04 AM IST

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