Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019देश की जेलों में बंद 80 फीसदी कैदी विचारधीन,CJI रमना बोले-रिलीज पर काम करना होगा

देश की जेलों में बंद 80 फीसदी कैदी विचारधीन,CJI रमना बोले-रिलीज पर काम करना होगा

CJI ने कहा विचाराधीन बंदियों को लंबे समय तक जेल में बंद रखने की समस्या पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है

क्विंट हिंदी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>जयपुर में 18वें अखिल भारतीय विधिक सेवा प्राधिकरण के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति रमण</p></div>
i

जयपुर में 18वें अखिल भारतीय विधिक सेवा प्राधिकरण के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति रमण

Image-Quint Hindi

advertisement

चीफ जस्टिस एन वी रमना​​​​​​ ने कहा है कि आपराधिक न्याय प्रणाली में पूरी प्रक्रिया एक तरह की सजा है. भेदभावपूर्ण गिरफ्तारी से लेकर जमानत पाने तक और विचाराधीन बंदियों को लंबे समय तक जेल में बंद रखने की समस्या पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि देश मे इस समय जितने भी कैदी जेलों में हैं, उनमें से 80% अंडर ट्रायल हैं. देश में अभी 6.10 लाख से ज्यादा कैदी हैं. इनके फास्टर रिलीज पर हमें काम करना होगा

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) एक्ट इस दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है. यह एक अच्छा प्रयास है. देश में पांच करोड़ पेंडिंग केसेज में से एक करोड़ केस नालसा ने पिछले एक साल के निपटाए हैं. इसमें हमारे जजों ने शनिवार और रविवार को एक्स्ट्रा काम किया है. हमें यह ध्यान रखना अति आवश्यक है कि नालसा की मूल भावना को नहीं भूलना चाहिए.

जयपुर में 18वें अखिल भारतीय विधिक सेवा प्राधिकरण के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि लोकतंत्र तभी सफल माना जाएगा जब न्याय तक सभी की पहुंच तथा कानून में सभी की भागीदारी सुनिश्चित होगी. उन्होंने कहा कि जब न्याय व्यवस्था तक गरीब की पहुंच रहेगी तभी वह अपने अधिकारों के उल्लंघन पर कानून का उपयोग कर पाएगा. उन्होंने कहा कि न्याय व्यवस्था में संविधान की मूल भावनाओं को निहित करते हुए आधुनिक तकनीकों एवं टूल्स का प्रयोग किया जा रहा है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

समारोह में केंद्रीय विधि मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि कार्यपालिका तथा न्यायपालिका में तालमेल रहेगा तो संविधान में निहित ’’सभी को न्याय’’ का सपना साकार हो पाएगा. उन्होंने कहा कि निचली अदालतों और उच्च न्यायालयों की कार्यवाही में क्षेत्रीय और स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. अदालत की भाषा अगर आम भाषा होगी तो हम कई समस्याओं का समाधान कर सकते हैं

मातृभाषा को अंग्रेजी से कम नहीं आंका जाना चाहिए और कहा कि वह इस विचार से सहमत नहीं हैं कि एक वकील को अधिक सम्मान, मामले या फीस केवल इसलिए मिलनी चाहिए क्योंकि वह अंग्रेजी में अधिक बोलता है.

रिजीजू ने कहा कि उच्चतम न्यायालय में दलीलें और फैसले अंग्रेजी में होते हैं. लेकिन हमारा दृष्टिकोण यह है कि उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में क्षेत्रीय और स्थानीय भाषाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT