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यौन उत्पीड़न का आरोप झेल रहे देश के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को क्लीन चिट मिल गई है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा है कि जस्टिस एस.ए.बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की कमेटी ने CJI के खिलाफ लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों में कोई दम नहीं पाया है.
सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल के ऑफिस की एक नोटिस में कहा गया है कि जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाएगी. समिति में दो महिजा जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी भी शामिल थीं.
कमेटी ने एकपक्षीय रिपोर्ट दी क्योंकि इस महिला ने 3 दिन जांच कार्यवाही में शामिल होने के बाद 30 अप्रैल को इससे अलग होने का फैसला कर लिया था. महिला ने इसके साथ ही एक प्रेस रिलीज जारी करके समिति के माहौल को बहुत ही भयभीत करने वाला था और अपना वकील ले जाने की अनुमति नहीं दिए जाने समेत कुछ आपत्तियां भी उठाई थीं.
सुप्रीम कोर्ट की एक महिला कर्मचारी ने सीजेआई पर सेक्शुअल हैरेसमेंट के आरोप लगाए थे. आरोप था कि महिला कर्मचारी ने 19 अप्रैल को लगाए आरोप में कहा था कि चीफ जस्टिस ने पहले उसका सेक्सुअल हैरेसमेंट किया, फिर उसे नौकरी से बर्खास्त करवा दिया. 22 जजों को भेजे गए शपथपत्र में महिला ने कहा है कि रंजन गोगोई ने पिछले साल 10 और 11 अक्टूबर को अपने घर पर उसके साथ यौन दुर्व्यवहार किया.
महिला ने कोर्ट में जो हलफनामा दाखिल किया था उसकी एक कॉपी क्विंट के पास है. इसमें कहा गया है कि जब चीफ जस्टिस की यौन प्रताड़ना की कोशिश का उसने विरोध किया तो उन्होंने उसे अपने रेजिडेंस ऑफिस से हटा दिया. इस ऑफिस में वह अगस्त 2018 से ही काम कर रही थी.
वहां से हटाए जाने के दो महीने बाद उसे दिसंबर महीने में बर्खास्त कर दिया गया. उसे हटाने की तीन वजहों में एक ये थी उसने बगैर पूर्व अनुमति के कैजुअल लीव ले ली थी . इसके बाद उसके पूरे परिवार को शिकार बनाया गया . दिल्ली पुलिस में काम कर रहे उसके पति और देवर दोनों को 28 दिसंबर 2018 को सस्पेंड कर दिया गया.
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