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NRC पर बोले CJI गोगोई- यह भविष्य के लिए एक आधार दस्तावेज  

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने असम में एनआरसी की मौजूदा कवायद का बचाव किया

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चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने असम में एनआरसी की मौजूदा कवायद का बचाव किया
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चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने असम में एनआरसी की मौजूदा कवायद का बचाव किया
(फोटो: ANI)

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चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की मौजूदा कवायद का जोरदार बचाव करते हुए कहा कि इससे पहले राज्य में अवैध प्रवासियों की संख्या को लेकर ‘अनुमान’ लगाया जाता था जिससे डर, घबराहट और हिंसा व अराजकता के दुष्चक्र को बल मिलता था. उन्होंने कहा कि एनआरसी भविष्य के लिए एक आधार दस्तावेज होगा. उन्होंने एनआरसी को लेकर यह बात वरिष्ठ पत्रकार मृणाल तालुकदार की किताब 'पोस्ट कॉलोनियल असम' के विमोचन कार्यक्रम में कही. जस्टिस गोगोई सुप्रीम कोर्ट की उस पीठ के अध्यक्ष हैं जो असम में एनआरसी की प्रक्रिया की निगरानी कर रही है.

NRC का विरोध करने वालों पर निशाना

जस्टिस गोगोई ने एनआरसी का विरोध करने वालों पर भी निशाना साधा और कहा कि ऐसे लोगों को जमीनी हकीकत की जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा कि ऐसे लोग न केवल जमीनी हकीकत से दूर हैं, बल्कि विकृत तस्वीर भी पेश करते हैं, जिसकी वजह से असम और उसके विकास का एजेंडा प्रभावित हुआ है. असम के रहने वाले सीजेआई ने कहा कि एनआरसी का विचार कोई नया नहीं है, क्योंकि 1951 में ही इसका जिक्र किया गया था और मौजूदा कवायद 1951 की एनआरसी को अपडेट करने की एक कोशिश है.

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उन्होंने अफसोस जताया कि कुछ मीडिया संस्थानों की लापरवाह और गैर जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग ने स्थिति को और खराब कर दिया. उन्होंने एनआरसी की तैयारी के लिए विभिन्न समय-सीमाओं को बड़े दिल से स्वीकार करने के लिए असम के नागरिकों की तारीफ की.   

‘जमीनी हकीकतों से अनजान टिप्पणीकार'

असम में अपडेट की गयी अंतिम एनआरसी 31 अगस्त को जारी की गयी थी जिसमें 19 लाख से ज्यादा आवेदकों के नामों को शामिल नहीं किया गया था. सीजेआई ने कहा, "इसे बताने और रिकॉर्ड में लाने की जरूरत है कि जिन लोगों ने इन कट ऑफ तारीख सहित आपत्तियों को उठाया है, वे आग से खेल रहे हैं. इस निर्णायक क्षण में हमें यह ध्यान में रखने की जरूरत है कि हमारे राष्ट्रीय संवाद में ‘जमीनी हकीकतों से अनजान टिप्पणीकारों' के उद्भव को देखा गया है, जो न केवल जमीनी वास्तविकताओं से दूर हैं, बल्कि बेहद विकृत तस्वीर पेश करना चाहते हैं.”

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के उद्भव और इसके उपकरणों ने इस तरह के ‘जमीनी हकीकतों से अनजान टिप्पणीकारों' के इरादे को हवा दी है, "जो अपनी दोहरी भाषा के माध्यम से फलते-फूलते हैं.''

जस्टिस गोगोई ने कहा, “वे लोकतांत्रिक कामकाज और लोकतांत्रिक संस्थानों के खिलाफ निराधार और दुर्भावना से प्रेरित अभियान चलाते हैं. उन्हें चोट पहुंचाने और उनकी उचित प्रक्रिया को पलटने की कोशिश करते हैं. ये टिप्पणीकार और उनके घृणित इरादे उन स्थितियों में अच्छी तरह से बचे रहते हैं जहां तथ्य नागरिकों से काफी दूर रहते हैं और अफवाह तंत्र फलता-फूलता है. असम और इसके विकास का एजेंडा ऐसे ‘जमीनी हकीकतों से अनजान टिप्पणीकारों’ का शिकार रहा है.’’   

'NRC भविष्य के लिए एक आधार दस्तावेज'

जस्टिस गोगोई ने कहा कि लोगों को ‘‘हर जगह गलतियां और कमियां ढूंढने'' की इच्छा और ‘‘संस्थानों को नीचा दिखाने'' की इच्छा को रोकना चाहिए. एनआरसी कवायद के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘यह चीजों को उचित नजरिए में रखने का एक मौका है. एनआरसी फिलहाल के लिए कोई दस्तावेज नहीं है. 19 लाख या 40 लाख कोई मायने नहीं रखता. यह भविष्य के लिए एक आधार दस्तावेज है. यह ऐसा दस्तावेज है जिसका भविष्य में दावों के लिए उल्लेख किया जा सकता है. यह मेरी समझ में एनआरसी का स्वाभाविक मूल्य है.'' उन्होंने कहा कि संस्थानों के काम का मूल्यांकन मुख्य रूप से मीडिया और विशेष रूप से सोशल मीडिया द्वारा किया जाता है.

चीफ जस्टिस के अलावा सुप्रीम कोर्ट के जज हृषिकेश रॉय और 1975-बैच के आईपीएस अधिकारी एबी माथुर भी समारोह में मौजूद थे. जस्टिस रॉय ने किताब लिखने के लिए तालुकदार की तारीफ की और कहा कि असम के बारे में कई ऐतिहासिक पहलू इस किताब में सामने आए हैं. उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि उनका मानना

है कि अगर सीजेआई कोई किताब लिखने का फैसला करते हैं तो वह ‘‘बेस्ट सेलर'' होगी.

(इनपुट: PTI)

देखें वीडियो- Assam NRC List: ‘धर्म के आधार पर जानबूझकर लोगों के नाम हटाए गए’

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Published: 03 Nov 2019,03:00 AM IST

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