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Assam NRC List: ‘धर्म के आधार पर जानबूझकर लोगों के नाम हटाए गए’

असम NRC लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए किसी को भी 1971 से पहले के कागजात जमा करने होते हैं

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कैमरा: त्रिदीप के मंडल

क्रिएटिव प्रोड्यूसर और वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया

एक अक्षर आपकी पूरी पहचान बदल सकता है. ऐसा ही असम के कई लोगों के साथ हुआ है. 5 साल के साहिन अश्वर का नाम NRC कर्मचारियों की भूल से सचिन अश्वर दर्ज किया गया और ये गलती साहिन को NRC लिस्ट से बाहर करने के लिए काफी था. अब साहिन के माता-पिता का नाम NRC लिस्ट में दर्ज है यानी वो भारतीय हैं लेकिन साहिन का नाम NRC लिस्ट से बाहर होने की वजह से ये साफ नहीं है कि 'वो भारतीय है या गैरकानूनी माइग्रेंट?'

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डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन में कितनी गंभीरता?

असम NRC लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए किसी को भी 1971 से पहले के कागजात जमा करने होते हैं- ये दस्तावेज या तो उनके खुद के हो सकते हैं या उनके पुरखों के हो सकते हैं. जिससे साबित हो सके कि वो या उनका परिवार 24 मार्च 1971 से पहले भारत में रह रहा है. लेकिन कई लोगों का आरोप है कि सही दस्तवेज जमा करने के बाद भी कई लोगों को NRC के अफसरों ने उन्हें जान-बूझ कर NRC लिस्ट से बाहर रखा है.

हम 1964 में पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) से भारत आए थे. तब जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि भारत हमें शरण देगा. भारत सरकार 1964 से हमारा ख्याल रख रही है और आज हम एकदम से उनके लिए विदेशी हो गए? सरकार विदेशियों को कैंप में क्यों रखेगी? हम कोई बांग्लादेशी नहीं जो अवैध तरीके से बॉर्डर के तार काट कर भारत में घुस आए हों.
आर. रोसेंग हाजोंग, NRC लिस्ट से बाहर

शाहजहां अली अहमद एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो गरीबों और अनपढ़ लोगों को NRC फॉर्म भरने में मदद करते आए हैं, विडंबना ये है कि उनके और उनके परिवार का नाम NRC लिस्ट में शामिल नहीं किया गया है. जब रिपोर्टर ने शाहजहां से उनके घर बक्सा जिले में उनसे मुलाकात की तो उन्होंने आजादी के पहले के रिकॉर्ड रिपोर्टर को बताए.

जिन लोगों को NRC लिस्ट से बाहर किया गया, उनके साथ जानबूझकर ऐसा किया गया है. ये पहले से ही तय था कि भाषा और धर्म के लिहाज से अल्पसंख्यकों को इस लिस्ट से बाहर किया जाएगा पर यही चीज स्थानीय लोगों के साथ नहीं की गई.
शाहजहां अली अहमद, सामाजिक कार्यकर्ता
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असम के नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए 1979 में असम आंदोलन की शुरुआत हुई और 15 अगस्त 1985 को भारत सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच असम समझौता हुआ. इस समझौते में NRC का प्रावधान था ताकि अवैध तरीके से असम में रह रहे विदेशियों की पहचान की जा सके.

होजाई जिले में संवाददाता ने मुलानी बोरदोलोई से मुलाकात की जो असम के मूल निवासी हैं. उनका, उनके पति और उनके बच्चे का नाम NRC लिस्ट से बाहर है. अब उन्होंने पूरी NRC प्रक्रिया पर सवाल उठा दिया है.

इतना पैसा खर्च करने के बावजूद भी अगर सरकार बिना गलती के NRC नहीं ला पाई तो उसका क्या फायदा हुआ? अगर असमी लोग बांग्लादेशी बन सकते हैं और बांग्लादेशी अपने आप को असमी साबित कर सकते हैं तो इतने साल असम में रहने का क्या फायदा हुआ? असम के असल नागरिक होने का हमें कोई फायदा नहीं हुआ.
मुलानी बोरदोलोई, NRC लिस्ट से बाहर

जिन 19 लाख लोगों का नाम NRC लिस्ट से बाहर है उन्हें फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में भेजा जाएगा जहां वो अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने की कोशिश करेंगे. इनमें से कई लोग या तो बहुत गरीब है या अनपढ़, इसका मतलब ये है कि उन्हें इस पेचीदा प्रक्रिया से फिर गुजरना होगा जिसमें उन्हें अपने दस्तावेज साबित करने के लिए वकील नियुक्त करना होगा ताकि वो फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपना केस लड़ सकें. इनमें कई लोग इस प्रक्रिया में लगने वाला खर्च उठा नहीं सकते. कई लोगों ने अब सब कुछ अपनी किस्मत पर छोड़ दिया है अगर वो केस हार जाते हैं तो उन्हें डिटेंशन कैंप में भेजा जाएगा.

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