The Climate Change Dictionary: आजकल कभी भी बारिश क्यों हो जाती है?

2022 में प्री-मॉनसून बारिश इतनी देर से हुई, जो इस लू की मुख्य वजह बनी. बारिश का शेडयूल इतना खराब क्यूं हो गया है?

साधिका तिवारी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>Climate Change Dictionary</p></div>
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Climate Change Dictionary

(फोटो- द क्विंट)

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आज 'द क्लाइमेट चेंज डिक्शनरी' में हम बात कर रहे हैं अनिश्चित, अनियमित और अपर्याप्त बारिश की. आपको भी ख्याल आता होगा कि भला अप्रैल-मई में कहीं इतनी बारिश होती है? और जब गर्मी पड़ने लगे तो इतनी की AC काम करना बंद कर दे. आखिर मौसम इतना अनिश्चित क्यों होता जा रहा?

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बार महाराष्ट्र के कई इलाकों को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ेगा. कई इलाकों में बाढ़ आएगी और कई जगहों पर सूखे का संकट रहेगा, यानी मौसम धोखा देता रहेगा.

IMD द्वारा जारी '2022 के दौरान भारत की जलवायु' रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 2022 में मौसम के प्रभाव के कारण 2,227 लोगों की मौतें हुई. ये 1901 के बाद से देश में पांचवां सबसे गर्म साल था.

दरअसल, मार्च 2022 में भारत में शुरू हुई हीट वेव, जिसने पिछले कई सालों के रिकॉर्ड तोड़ दिए. ये हीटवेव काफी ज्यादा खतरनाक थे. इसके सामने हमारी तैयारी काफी कम थी. देश भर में अलर्ट जारी किए गए और बचाव के तरीके बताए गए.

साल 2022 में प्री-मॉनसून बारिश इतनी देर से हुई, जो इस लू की मुख्य वजह बनी. बारिश का शेडयूल इतना खराब क्यों हो गया है? हमेशा की तरह मेरा जवाब है जलवायु परिवर्तन.

आज कल हालात ये हैं कि अक्सर प्री-मानसून बारिश आने में में देरी होती है, ज्यादातर हिस्सों में जुलाई और अगस्त भी बिना बारिश के कारण सूखे निकल जाते हैं. कुछ इलाकों में भीषण बारिश होती है और बाढ़ आती है, कुछ इलाकों में नवंबर और दिसंबर में बेमौसम भारी बारिश आ जाती है.

हालांकि, हमारी आम जिंदगियों पर इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता. ज्यादा से ज्यादा ऑफिस के रास्ते में ट्रैफिक बढ़ जाता है, वेकेशन पर जाने की जगह बदलनी पड़ती है और अक्सर पकौड़े खाने का मन ज्यादा करता है. लेकिन इसका असर होता है उस किसान पर जिसकी पूरी उपज और आजीविका बारिश पर ही निर्भर है.

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भारत काफी हद तक एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है. हमारी आधी से अधिक आबादी खेती पर निर्भर है. इसका मतलब है कि या तो आप किसान हैं या आप एक किसान परिवार से आते हैं, या आपके परिवार में कोई ना कोई खेती करता है और ये भी नहीं तो आप ऐसे किसी व्यक्ति को तो जानते ही होंगे.

मेरी समझ में, किसान किसी भी जलवायु विशेषज्ञ से ज्यादा और काफी पहले से जमीन से जुड़े हुए हैं और वो जलवायु परिवर्तन को जानते, समझते और जीते हैं. वो शायद उन जटिल शब्दों में बात नहीं कर सकते जिनका इस्तेमाल वैज्ञानिक करते हैं, लेकिन वे इस बात से पूरी तरह वाकिफ हैं कि जलवायु परिवर्तन उनकी वास्तविक हालात को कैसे बदल रहा है.

उत्तर प्रदेश में रिपोर्टिंग के दौरान मुझसे एक किसान ने कहा था:

पहले साधारण बारिश नियमित तौर पर होती थी और मॉनसून के महीनों में समान रूप से होती थी. अब कुछ दिनों तक जमकर बारिश होती है, और फिर बिल्कुल नहीं होती. इस वजह से फसलों को काफी नुकसान होता है.

अगर भारतीय उपमहाद्वीप में पिछले कुछ सालों के बारिश के पैटर्न को देखें, तो यही नजर आता है. कुछ दिनों के लिए भयंकर और तीव्र बारिश होती है, जिससे बाढ़ आ जाती है. इससे हमें ऐसा लगता है कि शायद पहले की तुलना में अब बहुत अधिक बारिश हो रही है. लेकिन वास्तव में, पिछले छह दशकों में औसत मॉनसून की बारिश में लगभग 6% की कमी आई है. इसलिए बारिश अब पहले से कहीं अधिक असमान और बेमौसम है. लेकिन यहां जलवायु परिवर्तन की क्या भूमिका है?

हम आपको फटाफट पूरी कहानी रीवाइज करवाते हैं.

हमने सालों तक पर्यावरण को कई तरह से बर्बाद किया जैसे वायु को प्रदूषित करना, इस सब के कारण ग्रीनहाउस गैसेज बढ़ गयी, जिससे ग्लोबल वार्मिंग हुई और हमारी दुनिया बहुत गर्म हो गई. हमारा वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री ऊपर है और यह गर्मी इन सब के मूल में है. अब इसी की वजह से ये सब हो रहा है.

लेकिन इन सबका मतलब है अधिक गर्मी, और अगर गर्मी ज्यादा है, तो इसकी वजह से वाष्पीकरण (भाप बनकर उड़ना) बढ़ेगा और बारिश ज्यादा होगी. लेकिन ऐसा इसलिए नहीं हो रहा क्योंकि ग्रीनहाउस गैसों के साथ, हमने बहुत सारे एरोसोल भी उत्सर्जित किए, जो छोटे-छोटे ठोस कण या छोटी बूंदें वातावरण में तैरती रहती हैं. इनमें से कुछ एरोसोल ने ग्रीनहाउस गैस से होने वाली गर्मी को कम कर दिया और इसी वजह से बारिश को कम कर दिया जिससे 'मानसून की कमी' हो गई.

IPCC रिपोर्ट के मुताबिक, "भारी वर्षा की घटनाएं" यानी कुछ दिन तेज बारिश और कुछ दिन सूखा, ये बढ़ जाएगा और "मध्यम वर्षा की घटनाओं" में कमी आ जाएगी, खासकर भारत में.

यह भारत के लिए बुरी खबर है क्योंकि हमारे खेतों और कृषि उत्पादों की अच्छी उपज के लिए 'मध्यम बारिश' बेहद जरूरी है. जलवायु परिवर्तन का असर जिन देशों पर सबसे ज्यादा होगा, उस सूची में भारत 5 वें स्थान पर है.

बढ़ती गर्मी से भारत की 60 करोड़ आबादी सीधे तौर पर प्रभावित होगी और इसका सबसे ज्यादा असर तटीय और कृषि से जुड़े लोगों पर होगा.

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