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टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि चीन (China) से दूरी बनाने यानी चेक्जिट का दौर कंपनियों में दिख रहा है. कई फैक्टरियां और आपूर्ति श्रृंखलाएं अब चीन पर निर्भरता समाप्त कर उससे दूरी बना रही हैं. मगर, विनिर्माण और व्यापार में चीन की चार दशक की सफलता इतनी गहन और व्यापक है कि दुनिया भर की कंपनियों के बोर्ड रूम में चल रही हवा के बावजूद ‘दुनिया की फैक्टरी’ होने का उसका दर्जा शायद ही प्रभावित हो. जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान चीन को निशाने पर रखते हुए नीतियां बना रहे हैं. चीन स्थित कंपनियों को आर्थिक मदद देकर वहां से कारोबार समेटकर स्वदेश लौटने को प्रोत्साहित कर रहे हैं.
गूगल भी अपने पिक्सेल फोन वहीं बना रही है. एपल की मैकबुक और आईफोन के अलावा नाइकी और एडिडास भी अपने उत्पाद वहीं बना रही हैं. चीन से 32 परियोजनाएं मलेशिया गयी हैं. ह्यूंडै ने भी अपना इलेक्ट्रिक वाहन और बैटरी संयंत्र अमेरिका के जॉर्जिया में लगाने की घोषणा की है. लेखक का मानना है कि चीन का आक्रामक व्यवहार उसके खिलाफ गया है. दोतरफा वीजा प्रतिबंध ने जापान और दक्षिण कोरिया को प्रभावित किया. भारत संयुक्त राष्ट्र की विदेशी निवेश सूची में भले ही सातवें स्थान पर है लेकिन वह अधिकांश वैश्विक कंपनियों के लिए चीन का स्वाभाविक विल्प नहीं है.
तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा कि दावोस (Davos) में कहने को ‘जश्न-ए-हिंदुस्तान’ था. इस छोटे से शहर के छोटे से बाजार में दोनों तरफ अपने प्रिय प्रधानमंत्री के बहुत सारे पोस्टर लगे दिखे. ‘प्रोमेनाड’ पर भारत छाया रहा. निवेशकों को आकर्षित करने के लिए तेलंगाना, महाराष्ट्र और तमिलनाडु ने अपनी दुकानें खोली थीं. अलग से भारत का ‘इंडिया लाउंज’ भी था.
इन्फोसिस, विप्रो और टीसीएस जैसी भारतीय साफ्टवेयर कंपनियों की दुकानें भी थीं. इतनी बड़ी संख्या में पत्रकार भी कभी न देखे गये थे. इन सबसे उलट सम्मेलन कक्ष के अंदर भारत का जिक्र इतना कम था कि न होने के बराबर. यहां यूक्रेन पर ब्लादिमीर पुतिन का क्रूर, नाजायज युद्ध और इस युद्ध के कारण हुई विश्व के लिए गंभीर समस्याएं चर्चा में थीं.
तवलीन लिखती हैं कि यूक्रेन से अफ्रीका और अरब देश में होने वाला अनाज का निर्यात बंद है. इसका गंभीर असर आने वाले महीनों में बढ़ता जाने वाला है. आगे यूक्रेन के शहरों और ऊर्जा व्यवस्था को बर्बाद करने की रणनीति है. कहना गलत न होगा कि इस दौर के हिटलर हैं पुतिन. उसके साथ ईरान और चीन हैं. यूक्रेन के साथ खड़े हैं दुनिया के सारे लोकतांत्रिक देश. लेकिन, भारत न इस तरफ है और न उस तरफ. इसलिए इस साल की अहम चर्चाओँ में भारत का नाम तक नहीं आया. वैश्विक समस्या यह है कि पुतिन की जीत हुई तो चीन के हौंसले बढ़ेंगे और ताइवान भी संकट में होगा. भारत पर भी चीन आक्रामक रहा है. युद्ध के बाद रूस से जरूर सस्ता कच्चा तेल मिल रहा है लेकिन हम देख नहीं पा रहे हैं कि रूस अब बन गया चीन का कनिष्ठ साझेदार और पाकिस्तान का सबसे बड़ा दोस्त. अगर रूस सफल हुआ तो चीन कल को हमारे साथ भी ऐसा ही कर सकता है.
द पायनियर में ग्वैन डायर ने लिखा है कि गठबंधन सभ्यता के आरंभ से होते रहे हैं. हर शिकारी समूहों ने खुद को बचाने की कोशिश करते हुए दूसरे समूहों के साथ गठजोड़ किया है. वे अक्सर ऐसे लोगों से लड़ते थे जिनसे वास्तव में उनका कोई झगड़ा नहीं हुआ करता ता. “मेरे दुश्मन का दुश्मन मेरा दोस्त है” की मान्यता मजबूत रही है. अब नयी अवधारणा है कि “मेरे सहयोगी का दुश्मन भी मेरा दुश्मन है.“
बदलाव की शुरुआत शी जिनपिंग के आजीवन राष्ट्रपति घोषित होने के बाद से हुई. 2017 में औपचारिक रूप से बना क्वाड वास्तव में 2020 में सक्रिय हो गया जब भारत और चीन के सैनिकों में झड़प हुई. भारत ने क्वाड सदस्यों के साथ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास में भाग लिया. फिर एयूकेयूएस भी अस्तित्व में आया. इसमें अमेरिका, युनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया शामिल हे. रूस की ओर से यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से दुनिया युद्ध के मुहाने पर आ खड़ी हुई है. लेखक इतिहास के हवाले से कहते हैं कि दक्षिण चीन सागर या पूर्वी चीन सागर से अगले युद्ध की खबर आ सकती है.
पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में ऐतिहासिक उद्धरणों के हवाले से लिखा है कि इतिहास खुद को दोहराता है, पहले एक त्रासदी के रूप में, फिर एक प्रहसन के रूप में. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला और केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजीजू अलग-अलग दौर में जन्मे व्यक्ति हैं जिन्होंने आपातकाल को क्रमश: अनुभव किया, सुना-पढ़ा और अध्ययन किया है.
चिदंबरम लिखते हैं कि दुर्भाग्य से धनखड़ द्वारा छेड़ी गयी बहस ने कई सवाल पैदा किए हैं जो भारत के संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य के विचार के लिए महत्वपूर्ण हैं. रिजीजू ने कालेजियम प्रणाली में सरकार के लिए एक सीट की मांग के साथ बहस में पड़कर भ्रम को और भी बढ़ा दिया है. खतरे की घंटी बजनी शुरू हो गयी है कि संविधान का कायाकल्प करने के लिए एक भयावह योजना बनाई जा रही है. लेखक लिखते हैं कि आज संसद चाहे जो कानून बनाए वह न्यायिक समीक्षा के अधीन होंगे. वहीं संसदीय सर्वोच्चता और न्यायिक सहनशीलता के सिद्धांत के तहत सभी कानूनों की समीक्षा और उन्हें रद्द करना भी न्यायालय के वश में नहीं है.
असीम अली टेलीग्राफ में लिखते हैं लव जिहाद के बारे में जो धारणा प्रचलित हो रही है वह यह कि यह हिन्दू महिलाओं को साजिशन मोहब्बत में उलझाना और उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करना है. स्वाभाविक मोहब्बत की प्रकृति को नकारा जा रहा है जैसे कहीं भी कुछ भी अचानक जैसी बातें काल्पनिक हैं. यह सच हो ही नहीं सकती. हिन्दुत्व में और मुख्य धारा की मीडिया के विमर्श में किसी हिन्दू महिला और मुस्लिम पुरुष का रोमांस में पड़ना लव जिहाद है. असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा कहते हैं कि जब कभी हिन्दू लड़की को मुसलिम युवक मारेगा तो उसका विश्लेषण आपराधिक नजरिए से होने के साथ-साथ लव जिहाद के नजरिए से भी होगा.
असीम अमला लिखते हैं कि करीना कपूर के उदाहरण में जहां रोमांस मरा नहीं है, लव जेहाद खोजा जा सकता है. दुर्गा वाहिनी के कवरपेज पर करीना कपूर को लव जिहाद के चेहरे के तौर पर पेश किया गया है. फिल्म पठान में शाहरूख खान और दीपिका पादुकोण की तस्वीरों को भी इसी नजरिए से देखा जा सकता है.
विभिन्न सर्वे के हवाले से लेखक लिखते हैं कि यह विडंबना है कि 99 प्रतिशत हिन्दू मानते हैं कि उनकी शादी अपने धर्म में हुई है वहीं 54 प्रतिशत हिन्दू लव जिहाद के फैलाव को मानते हैं. बीजेपी शासित एक दर्जन से ज्यादा राज्यों में लव जिहाद को लेकर कानून बन गये हैं. इतिहासकार डेविड लडेन को उद्धृत करते हुए लेखक लिखते हैं कि हिन्दुत्व खास समय और स्थान पर खास समूह द्वारा रखी गयी अवधारणा रही है. कुछ समय पहले मोहन भागवत ने कहा था कि हम किसी विचारों में बंधकर नहीं रह सकते. भारत हिन्दू राष्ट्र है. इसके अलावा बाकी सारे विचार परिवर्तनीय हैं.
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