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प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में "किसान न्याय रैली" के साथ उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के चुनाव अभियान की शुरुआत की. उन्होंने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर लखीमपुर खीरी मामले में केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्रा और उनके बेटे आशीष मिश्रा को 'बचाने' का आरोप लगाते हुए तीखा हमला किया.
पार्टी के सॉफ्ट हिंदुत्व दृष्टिकोण को जारी रखते हुए, प्रियंका ने अपने भाषण में देवी दुर्गा का आह्वान किया और दर्शकों से "जय माता दी" का जाप करने का आग्रह किया. इस त्योहार के दौरान उपवास रखने वाले नरेंद्र मोदी को पछाड़ने के लिए, उन्होंने कहा, "मैं उपवास पर हूं और मैं अपने भाषण की शुरुआत मां की स्तुति (प्रार्थना) से करूंगी."
उत्तर प्रदेश एक महत्वपूर्ण राज्य है और यहां कोई भी पार्टी मजबूत प्रदर्शन के बिना आम चुनाव नहीं जीत सकती है. मंडल और कमंडल के आगमन के बाद से कांग्रेस ने राज्य में महत्वपूर्ण समर्थन और वोट शेयर खो दिया है.
कांग्रेस की सीटे 10 से भी कम हो चुकी हैं और चुनावों में 5% वोट शेयर पर सिमट गई है. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी अपनी अमेठी सीट नहीं बचा सके.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी संगठन के आधार पर मजबूत नहीं है. प्रियंका राज्य में पार्टी के पुनर्निर्माण के मिशन पर हैं. उन्हें लगता है कि यहां एक मौका है क्योंकि बहुजन समाज पार्टी (BSP) दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही है. क्षेत्रीय पार्टी अस्तित्व के संकट से जूझ रही है. बीएसपी में अब कोई दूसरा बड़ा नेता भी नहीं बचा है.
कुछ ब्राह्मण कथित तौर पर बीजेपी की उपेक्षा के कारण नाखुश हैं, जिसके कारण जितिन प्रसाद को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. अल्पसंख्यकों के लिए, कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी को हराने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है. प्रियंका की इस तरह की रैलियां कैडर को मजबूती देती हैं और पार्टी मशीनरी को प्रेरित करती हैं.
पार्टी एक तरह से 2024 के लिए पिच तैयार कर रही है और उम्मीद है कि 2009 के अपने प्रदर्शन को दोहराएगी जब उसने 21 सीटें जीती थीं. यह मान लेना नासमझी है कि पार्टी अगले साल राज्य के चुनावों में चमत्कार होने की उम्मीद कर रही है, लेकिन छोटे कदम मायने रखते हैं.
इस रैली की वजह से और लखीमपुर खीरी में जो प्रियंका ने सुर्खियां बटोरीं है, इसने बीएसपी और समाजवादी पार्टी (SP) को बेचैन कर दिया है. एसपी ने बहुत पुरानी पार्टी पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस और बीजेपी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.
प्रियंका जानती हैं कि कांग्रेस अकेले उत्तर प्रदेश में बहुत कुछ नहीं कर सकती, लेकिन उन्हें लगता है कि यह सक्रियता एसपी-बीएसपी का ध्यान आकर्षित करने और गठबंधन बनाने के लिए मजबूर करेगी. नहीं तो वे विपक्ष के वोट को काटने का काम करेंगे, जिसके लिए कांग्रेस को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
बीएसपी ने 1990 के दशक में कांग्रेस से हाथ मिलाया था, लेकिन बाद में गांधी परिवार के नेतृत्व वाली पार्टी पर वोट ट्रांसफर नहीं कर पाने का आरोप लगाते हुए वॉकआउट कर दिया. सपा ने 2017 के पिछले चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, लेकिन परिणाम विनाशकारी थे.
कोई यह तर्क दे सकता है कि कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में चौथे स्थान पर है. उत्तर प्रदेश को कांग्रेस को अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाने के लिए बहुत मेहनत करने की आवश्यकता है और कोई भी त्वरित परिणाम तब तक संभव नहीं है जब तक कि बीएसपी महत्वपूर्ण रूप से टूट न जाए. 2022 में इसे कांग्रेस के वोट शेयर का दो-तीन गुना मिलने का अनुमान है.
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को भी लगता है कि सभी प्रयास उत्तर प्रदेश पर हैं, जहां कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन की संभावना नहीं है. उन्हें लगता है कि पार्टी के पास उत्तराखंड में अच्छा मौका है. पंजाब में, पार्टी जनमत सर्वेक्षणों के अनुसार आम आदमी पार्टी (AAP) से पीछे है, जो गलत हो सकता है लेकिन चरणजीत सिंह चन्नी की मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति के बाद फिर वैसी ही स्थिति हो गई है.
प्रियंका की रैलियां कैडर को फिर से जीवंत कर सकती हैं और संभवत: पार्टी को फायदा भी दिला सकती हैं. यह तर्क बताता है कि उसे पंजाब में अधिक समय बिताना चाहिए क्योंकि इस तरह वह सिद्धू के साथ चल रहे विवाद को भी सुलझा सकती है.
संक्षेप में बात करें तो प्रियंका लंबी अवधि के लिए पार्टी को बनाने के लिए उत्तर प्रदेश पर ध्यान केंद्रित करके एक जोखिम उठा रही हैं. भविष्य के लिए, कांग्रेस अखिलेश और मायावती को संदेश भेज रही है कि वे "मदद के हाथ" के बिना उत्तर प्रदेश जीतने का सपना नहीं देख सकते.
कुल मिलाकर केवल उत्तर प्रदेश पर बहुत अधिक ध्यान देना और दूसरे राज्यों की उपेक्षा करना एक बुरा विचार होगा.
(Crowdwisdom360 के अनुसार, बीजेपी 244 सीटें जीत सकती हैं, एसपी 112 और बीएसपी 27 सीटें.)
(लेखक एक स्वतंत्र राजनीतिक टिप्पणीकार हैं और उनसे @politicalbaaba पर संपर्क किया जा सकता है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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