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हम भारतवासी दुनिया में सबसे बड़ा लिखित संविधान वाले देश के नागरिक होने पर गर्व करते हैं. 26 जनवरी, 1950 को अधिनियमित होने के बाद से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, यानी भारत के संविधान में 106 से अधिक बार संशोधन किया गया है. इनमें से कई संशोधनों ने भारतीय समाज का चेहरा ही बदल दिया है. 26 नवंबर, संविधान दिवस पर (Constitution Day, 2022) हम संसद द्वारा 2015 से अब तक पारित किए गए सभी संवैधानिक संशोधनों पर एक नजर डालते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि उससे क्या बदला.
2015 में हुआ 100वां संवैधानिक संशोधन भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौते से संबंधित है, जिसे 1974 के भारत-बांग्लादेश समझौते के अनुसार भारत सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया था. संविधान की अनुसूची 1 में संशोधन कर दोनों देशों के बीच विवादित भूमि के आदान-प्रदान को संभव बनाया गया था.
इस संसोधन से जहां भारत को 7,110 एकड़ भूमि मिली, वहीं इसमें 17,160 एकड़ जमीन बांग्लादेश को मिली. इस प्रकार इस संसोधन ने विवादित क्षेत्रों में रहने वाले लगभग 100,000 लोगों के सामने आने वाली अस्पष्टता को समाप्त कर दिया, जिसने उन्हें उनके संबंधित घरेलू देशों की सरकारी सुविधाओं से काट रखा था.
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) से संबंधित लंबे समय से लंबित बिल को सबसे पहले वाजपेयी सरकार द्वारा आगे बढ़ाया गया था, यूपीए सरकार द्वारा उसमें आगे रिसर्च हुआ और उसपर बहस की गई. अंत में सितंबर, 2016 में पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में इसे पारित किया गया.
इस संसोधन के तहत भारतीय संविधान के खंड 1 में अनुच्छेद 249, 268, 269, 270 और कई अन्य में बदलाव किए गए. इस प्रकार देश में अप्रत्यक्ष टैक्स को नियंत्रित करने वाले मौलिक कानूनों में एक बड़ा बदलाव किया गया था.
अगस्त 2018 में राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत इस संशोधन ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा दिया. NCBC को1993 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के सामने आने वाली कठिनाइयों से संबंधित सिफारिशों के साथ स्थापित किया गया था.
इसमें अनुच्छेद 338B और 342A को संविधान में जोड़ा गया था. इसने NCBC को कुछ शक्तियां प्रदान करने और उसके कर्तव्यों को स्पष्ट करने के अलावा, राष्ट्रपति को एक राज्य / केंद्र शासित प्रदेश में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट करने का अधिकार दिया. साथ ही समुदायों की पिछड़ी सूची में एक समुदाय को जोड़ने या हटाने के लिए संसद की मंजूरी को अनिवार्य बना दिया.
103वें संवैधानिक संशोधन ने भारत के नागरिकों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को 10% आरक्षण का दिया. यह 10% आरक्षण सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए पहले से ही मौजूदा आरक्षण कोटा से अलग है. संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किया गया जो केंद्र सरकार की नौकरियों के साथ-साथ केंद्र सरकार द्वारा संचालित और निजी शिक्षा संस्थानों में एडमिशन में आरक्षण प्रदान करता है.
विवाद और विरोध के बीच, इस संशोधन ने देश में कुल आरक्षण को बढ़ाकर 59.5 प्रतिशत कर दिया. इस संसोधन को 2019 में मद्रास हाई कोर्ट में कई संगठनों और DMK द्वारा चुनौती दी गई थी. हालांकि, 7 नवंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आरक्षण की वैधता को बरकरार रखा.
इसके तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए संसद में आरक्षित लोकसभा सीटों की समाप्ति की समय सीमा को बढ़ाने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में परिवर्तन किए गए. यह आरक्षण 26 जनवरी, 2020 को समाप्त होने वाला था और 104वें संविधान संशोधन के बाद इसे 10 साल का विस्तार मिल गया.
हालांकि, एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्यों के लिए दो लोकसभा सीटों (और राज्य विधान सभा सीटों) के आरक्षित करने के प्रावधान को विस्तार नहीं दिया गया.
मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने 102वें संविधान संशोधन के एक प्रावधान को रद्द करते हुए कहा कि SEBC को मान्यता देने की राज्य की शक्ति को फिर से बहाल किया जाए. 102वें संविधान संशोधन ने भारत के राष्ट्रपति को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) की पहचान करने की शक्तियां दी थीं.
राष्ट्रपति की शक्तियों को बहाल करने की सर्वसम्मत मांग के बीच अगस्त 2021 में 105वें संविधान संशोधन अधिनियम को राष्ट्रपति ने मंजूरी दी थी.
संवैधानिक संशोधन नहीं बल्कि एक अस्थायी प्रावधान के रूप में परिभाषित, विवादास्पद अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35A को अगस्त 2019 में बड़े हंगामे के बीच रद्द कर दिया गया था. इसने जम्मू और कश्मीर को एक विशेष दर्जा दिया और राज्य को अपने स्थायी निवासियों (उनके अधिकारों सहित) को परिभाषित करने की अनुमति दी थी.
संसद ने इसके साथ जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 भी पारित किया था.
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