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पैंगोंग झील पर बना चीनी पुल "अवैध कब्जे" वाले क्षेत्र में है- संसद में सरकार

सरकार ने कहा कि वह अन्य देशों से भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की अपेक्षा करती है.

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>भारत-चीन विवाद</p></div>
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भारत-चीन विवाद

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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सरकार की ओर से शुक्रवार, 4 फरवरी को संसद को सूचित किया गया कि पूर्वी लद्दाख (Eastern Ladakh) में पैंगोंग झील (Pangong Lake) पर चीन (China) द्वारा पुल को अवैध रूप से कब्जा किए गए क्षेत्र में बनाया जा रहा है. सरकार ने कहा कि वह अन्य देशों से भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने की अपेक्षा करती है.

सरकार ने एक लिखित जवाब में संसद को बताया कि, "चीन द्वारा पैंगोंग झील पर बनाए जा रहे पुल पर सरकार ने संज्ञान लिया है. इस पुल का निर्माण उन क्षेत्रों में किया जा रहा है जो 1962 से चीन के अवैध कब्जे में हैं."

जवाब में आगे लिखा गया "भारत सरकार ने इस अवैध कब्जे को कभी स्वीकार नहीं किया है. सरकार ने कई मौकों पर यह स्पष्ट किया है कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख भारत का अभिन्न अंग हैं और हम उम्मीद करते हैं कि अन्य देश भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करेंगे."

पैंगोंग ढील पर चीन द्वारा बनाया जा रहा पुल 8 मीटर चौड़ा है और पैंगोंग के उत्तरी तट पर एक चीनी सेना के मैदान के ठीक दक्षिण में स्थित है. यहां 2020 में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प के दौरान चीनी क्षेत्र के अस्पतालों और सैनिकों के आवास देखे गए थे.

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सरकार ने सफाई देत हुए कहा, "चीन के साथ जारी डिसइंगेजमेंट प्रोसेस में हमारा दृष्टिकोण तीन प्रमुख सिद्धांतों पर है और आगे भी रहेगा- पहला, दोनों पक्षों को एलएसी का कड़ाई से सम्मान और पालन करना चाहिए; दूसरा, किसी भी पक्ष को यथास्थिति को एकतरफा बदलने का प्रयास नहीं करना चाहिए; और तीसरा, दोनों पक्षों के बीच सभी समझौतों का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए."

बता दें कि, भारत और चीन के वरिष्ठ कमांडरों के बीच अंतिम दौर की वार्ता 12 जनवरी को हुई थी. वे इस बात पर सहमत हुए कि दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति बहाल करते हुए शेष मुद्दों के समाधान के लिए जल्द से जल्द काम करेंगे.

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