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भारत में कोविड वैक्सीनेशन प्रोग्राम शुरु होने के साढ़े चार महीने बाद, देश में महिलाओं की तुलना में, 1.2 करोड़ ज्यादा पुरुषों को वैक्सीन का कम से कम एक डोज लग चुका है. वैक्सीनेशन प्रोग्राम में ये जेंडर गैप चिंता का विषय है.
2 जून तक, भारत में करीब 17 करोड़ लोगों को कोरोना वायरस वैक्सीन का कम से कम एक डोज लग चुका था. इसमें से 9.29 करोड़ पुरुषों को वैक्सीन लगी थी, और 8.04 करोड़ महिलाओं को. इसका मतलब है कि देश में कम से कम एक वैक्सीन पाने वालों में से- 53.61 फीसदी पुरुष हैं.
लेकिन महिलाओं के मुकाबले, ज्यादा पुरुषों को वैक्सीन क्यों लग रही है?
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया में नॉलेज मैनेजमेंट एंड पार्टनरशिप में हेल्थ साइंटिस्ट और सीनियर मैनेजर, डॉ संगमित्रा सिंह का कहना है कि वैक्सीनेशन से संबंधित लैंगिक असमानता को अलग करके नहीं देखा जा सकता. उन्होंने कहा, “अगर हम भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य के बारे में पुरानी प्रवृत्तियों को देखें, तो हम देखेंगे कि महिलाओं के स्वास्थ्य को असल में कभी भी परिवारों में या खुद महिलाओं द्वारा उतनी प्राथमिकता नहीं दी गई है.”
इस स्थिति को जो चीज और बदतर बनाती है, वो है महिलाओं की आजादी पर पाबंदियां.
चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015-16 के मुताबिक, केवल 40 प्रतिशत महिलाओं को अकेले बाहर जाने की अनुमति है. इसमें स्वास्थ्य सुविधा केंद्र भी शामिल हैं. सिंह बताती हैं, “वैक्सीनेशन ट्रेंड्स में पुरुषों और महिलाओं के बीच का अंतर पहले से मौजूद चुनौतियों का विस्तार है.”
18-44 आयु वर्ग के लोगों के लिए डिजिटल रजिस्ट्रेशन और वैक्सीन को लेकर डर भी महिलाओं में कम वैक्सीनेशन का एक कारण हो सकता है.
क्विंट से बात करते हुए, ऑक्सफैम इंडिया में जेंडर जस्टिस प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर, अनुश्री जयरथ ने कहा,
दिसंबर 2020 में जारी पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चलता है कि 12 राज्यों में 60 प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने कभी इंटरनेट का उपयोग नहीं किया है. ग्रामीण भारत में 1० में से 3 से भी कम और शहरी भारत में 1० में से 4 महिलाओं ने केवल इंटरनेट का उपयोग किया है.
वीडियोलॉग और क्विंट ने वैक्सीन को लेकर लोगों के मन में शंकाओं को लेकर एक सर्वे किया था, इसमें 50% रिस्पॉन्स महिलाओं के थे. सर्वे में सामने आया कि महिलाओं के मन में वैक्सीन को लेकर ज्यादा शंकाएं हैं. 61% महिलाओं ने बताया कि वैक्सीन को लेकर उन्हें डर है. वहीं पुरुषों में ये आंकड़ा 49% है.
ये संभव है कि वैक्सीन को लेकर ये झिझक कहीं न कहीं वैक्सीन से जुड़ी भ्रामक सूचनाओं की वजह से ही पैदा होती है. फिर चाहे वह वैक्सीन से मेंसट्रुअल साइकिल बिगड़ने का झूठा दावा हो, या फिर ये अफवाह हो कि वैक्सीन से संतानहीनता जैसी समस्या हो सकती है. महिलाओं के बीच वैक्सीन को लेकर बैठे डर की बड़ी वजह इस तरह की भ्रामक सूचनाएं हैं, खासतौर पर पिछड़े शहरी इलाकों में.
लेकिन, फिर समाधान क्या है?
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया से जुड़ी संघमित्रा सिंह ने क्विंट से बातचीत में कहा, “सरकार को महिलाओं के बीच वैक्सीन को लेकर फैली गलतफहमियों को दूर करने के लिए अभियान चलाकर इस दिशा में ध्यान देना चाहिए. हमें याद रखना चाहिए कि कोरोना वायरस से जुड़ी नई जानकारी आने का सिलसिला अब भी जारी है, जिस वजह से स्वास्थ्य से जुड़ी गाइडलाइंस में भी लगातार बदलाव हुए हैं. हर एक के लिए ये संभव नहीं है कि वो वेरिफाइड सोर्स से जानकारी जुटाकर खुद को अपडेट रखे.”
ऑक्सफैम की जयरथ कहती हैं कि टीकाकरण अभियान में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है.
Co-WIN के डेटा के मुताबिक, भारत के सिर्फ तीन राज्यों में ही वैक्सीन लेने वाली महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में ज्यादा है.
छत्तीसगढ़ में 1000 पुरुषों पर 1045 महिलाओं ने वैक्सीन ली. हिमाचल प्रदेश में काफी मामूली अंतर ही सही पर वैक्सीन लेने वाली महिलाओं की संख्या ज्यादा है. 1000 पुरुषों की तुलना में 1003 महिलाओं का यहां वैक्सीनेशन हो रहा है.
महिलाओं और पुरुषों के वैक्सीनेशन में सबसे बड़ा अंतर जम्मू-कश्मीर, नगालैंड और दिल्ली में देखने को मिला है. इसके बाद पंजाब, उत्तरप्रदेश और तमिलनाडु में भी पुरुषों की तुलना में वैक्सीन लेने वाली महिलाओं की संख्या कम है.
नगालैंड में 1.13 लाख पुरुषों पर 94,000 महिलाओं ने ही वैक्सीन ली है.
राजधानी की तस्वीर और भी बदतर है, जहां दिल्ली में प्रति 1000 पुरुषों पर 869 महिलाएं हैं. 1000 पुरुषों पर केवल 725 महिलाओं का ही वैक्सीनेशन हो रहा है.
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